घर फूटे गँवार लूटे – मैथिलीक दुर्दशाक जिम्मेदार स्वयं मैथिलीभाषी

विचार

– गौरी शंकर झा

कहबी अछि “घर फुटय गमार लूटैय”। से  चरितार्थ  भेल।  हमर  मनतब  मंत्रीजीक  कथन  असंतोषजनक थिक किन्तु अनर्गल नहिं थिक। कियैक त ओ जैह देखथिन किंवा  सुनथिन सैह  तँ  बजथिन ।  अकाट्य सत्यकेॅं   कोनो    प्रमाणक आवश्यकता नहिं थिक। हमरालोनिमे आत्मतत्वक व्यवहारिक ज्ञान रहितो, आत्मविश्लेषणक घोर  आभाव  थिक। प्रपंचक  व्यंजनामे  दिन-राति  एक-दोसराक  नीचाँ  देखाब’मे  तथाकथित  व्यक्ति किंवा संस्था व्यस्त रहैत  अछि से हमरे नहिं बहुतोकेॅं देखबामे अबैछ। रहल बात मंत्रीजीकेॅं द्वारा लोकसभामे देल प्रश्नक उत्तरक संदर्भमे त’ हम यैह कहब जे एहिमे हाय-तौबा  मचाब’के प्रश्ननें नहिं छैक। अहिमे त’ आत्मचिन्तनक  आवश्यकता छैक। भारतीय भाषा साहित्यसॅं सन्दर्भित ग्रन्थमे मैथिलीकेॅं हिन्दीक उपभाषा कहल गेल अछि आ ओ अक्षरमे अंकित अछि जे स्पष्ट थिक ,जाहिकेॅं विविध भाषा-भाषी छात्रलोकनि सेहो पढ़नें हेताह आ पढ़ैत हेताह । आ  वैह बात मंत्रीजी  कहलनि त’ केना अनर्गल भेल से कहू।

आब आउ मैथिली साहित्यक प्राचीनताक विषय पर
अहिमे कोनो संदेह नहिं जे  मैथिली भाषा मानव सभ्यताक इतिहासमे सर्वश्रेष्ठ मधुर वाणी थिक आ विश्वक भाषाविद् सेहो स्वीकार कयलनि मुदा ई बात हमरा बुझयमे नहिं यैल जे जखन मैथिलीकेॅं  भारतीय  भाषाविद्  हिन्दीक उपभाषा कहलैन आ  यैह  चीज  किताबमे सेहो  लिखलैन ओहि समय मैथिली भाषाविद् की करैत रहैथ? की ओ लोकनि  अपन भूमिका निर्वहन कयलनि अथवा ओ लोकनि मैथिलीक उपेक्षा  कियैक कयलनि किंवा ओ लोकनि मैथीलीकेॅं हिन्दीक अधीनस्थता उपभाषाकेॅं रुपमे होएब कियैक स्वीकार कयलनि अथवा अहिकेॅं विरोध कियैक नहिं कयलनि । ई एकटा  यक्ष प्रश्न थिक। जाहि समय संस्कृत प्राक भाषा मैथिल विद्वत लोकनिक जीविकाक मुख्य केन्द्र – बिन्दु छल आ जकर तप स्थली बनारस ओ काशी, आ दरभंगाक महाराजाधिराजक अधीन पाण्डित्य विशारद् बहुतो गाम रहैय जतय मैथिली
भाषा समृद्ध बनल ।अ हिमे   नेपालमे  रहनिहार   मैथिल विद्वानक    भूमिकाक सेहो बड्ड पैघ योगदान छैन । आ ताहि मैथिली भाषा केॅं एहन दुर्गति होइत देखब एक शक्तिरहित होएब थिक । अस्तु! जहियासॅं अंग्रेजी जीवविकाक प्रमुख साधन  बनल तहियासॅं शनैः शनैः मैथिली भाषाक उन्नतिमे कमी होइत गेल आ आब त’ हमरा  जनतब  मैथिलीकेॅं एहि  स्थितिमे आन’ मे   वर्तमान साहित्यकार लोकनिकेॅं सेहो  कम योगदान नहिं छैन। प्राय: साहित्यकार लोकनिक धियापुता मैथिली भाषा नहिं बजैत अछि, आ मैथिली  किताब  टेबुलक शोभा बनि हक्कन कानैत अछि। पत्र – पत्रिकाक कथे कि ओहो उपेक्षिते भ’, अपेक्षितकेॅं बाट ताकैछ। भाषाकेॅं जीवित कयनें छथि श्रमिक वर्ग, ओ मध्यम् वर्ग आओर संकल्पित संस्था जाहिमे दहेज मुक्त मिथिला, मैथिली जिन्दाबाद इत्यादिक नाम शीर्षस्थ अछि। आइ एतबा धरि अशेष समय- कालसॅं आऔरो लिखब …।
(लेखकः गौरी शरण झा, अधिवक्ता, घर – मनपौर, जिला – मधुबनी, मिथिला।)