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मिथिला मे लोकदेवक उत्पत्ति गाथा

मिथिला मे लोकदेवक उत्पत्ति

– प्रवीण नारायण चौधरी

अपन मिथिला मे वीर पुरुष व स्त्री सभक जन्म होइत रहलनि अछि जे अपन अनेकों प्रभाव-प्रेरणा सँ लोककल्याण निमित्त योगदान दैत रहल छथि, तिनका लोकदेव कहल जाइत छन्हि आ हुनका प्रसन्न करय वास्ते अनेकों तरहक लोकविधान सँ पूजा-वन्दना सेहो कयल जाइत छन्हि। ई लोकदेवक उत्पत्ति विपरीत परिस्थिति मे भेलनि ई अध्ययन (लोकश्रुतिक गाथा) सँ बुझय मे अबैत अछि। ई लोकदेवता अपन सहचरी जीव आ विशेष रूप सँ मनुष्यक हित वास्ते अनेकों वीरताक गाथा प्रस्तुत कयलनि। हिनका सभक प्रेरणा सँ लोक केँ जीवन संचालन मे बड पैघ मदति भेटलैक। नहि केवल जियैत, बल्कि मरि गेलाक बादो हिनका लोकनिक आभासी उपस्थितिक एक सँ बढिकय एक लीलामयी (चमत्कारिक) लोककथा सब प्रचलित अछि। हिनका सब केँ भगताइ पद्धति सँ पूजा प्रदान करबाक, वन्दना करबाक आ हिनका सभक नाम सँ पान-फूल भक्त-अनुगामी सब केँ सौंपबाक कतेको परम्परा आइ धरि जीवित देखल जाइछ। राजा सलहेश, लोरिकदेव, दीना-भदरी आदिक पूजा-अर्चना आ ब्रह्म-थान सब आइयो ठाम-ठाम पर देखल जा सकैत अछि।
 
विदित हो जे हिमालय श्रृंखला सँ बहि रहल अविरल धारा सब सँ धोयल-पखारल एहि मिथिला भूमि मे आम जनजीवनक स्वरूप पूर्ण वेदविहित सिद्धान्त पर चलब कहल गेल अछि। याज्ञवल्क्य संहिता मे मानव जीवन संचालनक पद्धति वर्णन कयल गेल अछि। मिथिला मे लोक जीवन वेद मुताबिक कहल जाइछ। हिमालय सँ निरन्तर प्राप्त भ’ रहल जलराशि एतय नदी, बाहा, मोन्हि, पह, चर, चाँचर सँ बहैत अवस्था मे अथवा रुकल अवस्था मे भेटैत अछि। एहि जलस्रोतक कारण एहि ठाम पहिने बहुत रास सघन वन केर क्षेत्र छल। वन मे वनैया पशु आ ओकर हिन्सक गतिविधि सँ मानव समाज मे त्रास होयब स्वाभाविक छलैक। एहि त्रास सँ ऊबार हेतु कियो न कियो वीर सपुत जन्म लियए आ मानवीय समाजक रक्षा करय। वैह रक्षक सब कालान्तर मे लोकदेवताक रूप मे पूजित अछि।
 
मिथिला मे मानवीय आबादी क्षेत्र केर विकासक मूल आधार सेहो जलस्रोतक संग मानव निवास केर इतिहास अछि। छितरायल जलस्रोत सँ कोनो समय मे अधिक बरखा किंवा पहाड़ी क्षेत्र मे अधिक बरखा हेबाक कारण कखनहुँ बाढ़ि आबि जाय जे लोकजीवनक संग-संग परिवेशक जंगली पशु सभक जीवन केँ सेहो काफी प्रभावित कयल करैत छलैक, एहेन अवस्था मे मानव समाजक संघर्षक कथा स्वतः कल्पना करैत बुझि सकैत छी। जँ घर-परिवार आ समाज मे वीर सपुत सभक जन्म नहि होयत त अनिश्चितताक त्रास ओहि समाज केँ आगू बढय सँ रोकत। हालांकि बाद मे एहि अनिश्चित जलराशि केर ग्रहण आ बाढ़िक समस्या सँ निजात दियेबाक लेल बाँध परियोजना लागू कयल गेलैक जेकर गुण-दोष पर विस्तार सँ बाद मे चर्चा करब, लेकिन एहि योजनाक कारण लोक अपन निवास स्थान मे परिवर्तन करय लेल बाध्य भेल। जखन लोक डीह (निवास स्थान) परिवर्तन करय त नव डीह पर इनार-पोखरि केर रूप मे जलराशिक भंडारण करैत निवास क्षेत्र बनाबय। आध्यात्मिक कथा-गाथा मे मिथिला केँ तिरहुत जे ‘तीरभुक्ति’ केर अपभ्रंश शब्द थिक यैह कहल गेलैक अछि। अर्थात् जलस्रोतक आड़ (किनार, महार आदि) पर निवास स्थल बना ओहि ठाम हर तरहक भोग (भोजन) केर इन्तजाम करब एहि क्षेत्र मूल आध्यात्मिक परिभाषा मे रहल अछि। पूर्वक अव्यवस्थित आ सघन वन के बदला आब परिष्कृत जीवनशैली मे एतय सोशल फोरेस्ट्री (सामुदायिक वन) जेकरा कलम, गाछी आदि नाम देल गेल अछि ताहि युग मे छी आ जंगली जानवरक बदला खर्हिया, खिखिड़, गीदर, नर्हिया, साही, उधबिलाड़ि, बिज्जी आदि गोटेक छोट-मोट जंगली जानवर छोड़ि पहिने जेकाँ खतरनाक आ हिन्सक जानवर नहि भेटैछ। शायद यैह कारण छैक जे बदलल जीवनशैली मे लोकदेव सेहो नव युग मे नहि बनि रहला अछि।
 
हरिः हरः!!

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