भाषा-विमर्शः मैथिली सँ अलग हेबाक रवैया सम्बन्धित

भाषा विमर्श

भाषा विमर्शः नुक्सान केकर हेतैक?

काल्हिक लेख ‘मिथिलाक मतलब सिर्फ मैथिली नहि थिक’
(लिंकः https://www.facebook.com/pravin.choudhary/posts/10160461465013492) पर नीक भाषा-विमर्श चलि रहल अछि। किछु नवतुरिया भाषा-बोली बीच के अन्तर्सम्बन्ध बिना बुझने अन्हेरक शंका-आशंका सेहो राखि रहल छथि। किछु विज्ञ-विद्वान् अन्हेरक चिन्ता सेहो कय रहल छथि। आइ वैह लेख (भाषा-विमर्श) केँ हम आगू बढा रहल छी।
मिथिला मे एकटा कहबी बुजुर्ग सभक मुंह सँ बेसी सुनैत रही – अनबिहितक बिहित – उखैड़ पर चढिकय बानर गाबइ य गीत! हमर रुद्रपुरवाली काकी जिनका मैथिल ब्राह्मण परिवारक विभिन्न रीति-रिबाजक पूरा ज्ञान छलन्हि, जे स्वयं अपन रेख-देख मे सबटा काज करबाबथि, लोक सब जिनका विशेष रूप सँ सब ओरियानक वास्ते विशेष सम्मानक संग बजबथिन – हुनका जँ कियो कहि दैन जे हमरा गाम मे ई विध एना कयल जाइत छैक, त ओ लपकिकय यैह कहबी कहल करथिन। ‘कतहु न सुनल, कतहु न देखल, से होइत छह तोरा सभक गाम मे’।
एहने अनबिहितक बिहित आ उखैड़ पर चढिकय बानर गाबइ य गीत वला स्थिति एतय भाषा ऊपर तीक्ष्ण टिप्पणी कयनिहार कतेको लोक केँ हम देखि रहल छी।
भाषाभाषीक संख्या आधार पर नेपाल मे नेपाली के लगभग ३८% पछाति मैथिलीक १२% रहबाक तथ्यांक आइ कतेको दशक सँ अछि। लेकिन एतेक विशाल संख्या रहितो मैथिली प्रति राज्य केर केहेन नीति रहल अछि से समीक्षा योग्य विषय थिक।
मैथिली भाषाक आगू नेपाली भाषा अत्यन्त नव रहितो आइ राज्य संरक्षण केर कारण मैथिली सँ कतेक आगू पहुँचि गेल अछि से सर्वविदिते अछि। नेपालक त बाते छोड़ू, भारतहु मे मैथिली सँ पहिने नेपाली भाषा भारतक राष्ट्रभाषा केर सूची (संविधानक अष्टम् अनुसूची) मे १९९२ ई. मे दर्ज कयल गेल, जखन कि मैथिली २००३ ई. मे।
राज्य केर संरक्षण जाहि कोनो भाषा केँ भेटैछ ओ स्वतःस्फूर्त विकास केर मार्ग पर अग्रसर भेल करैछ।
मैथिली भाषाभाषी स्वयं एतेक होशियार छथि जे नेतागिरी करयकाल कहता एकल भाषा एकल भेष विरूद्ध मुक्तिक संघर्ष कय रहल छी, आ जखन हाथ मे पावर एतनि तखन फेर हिन्दीक बिन्दी लगेबाक आतुरता मे रहता। नेपालक प्रदेश २ केर यैह मैथिल मधेशी लोकनिक सरकारक हाल देखि सकैत छी जे भाषा आयोगक सिफारिशक बावजूद प्रदेशक कामकाजक भाषा तय नहि कय सकल अछि, नाम धरि मिथिला प्रदेशक बदला मधेश प्रदेश तय कय लेलक। स्पष्ट अछि जे ई सब एकल भाषा नीति सँ स्वयं केँ मुक्त नहि कय सकल, पावर रहितो। प्रदेश १ मे मैथिली, बज्जिका आ भोजपुरी – ३ भाषा केँ कामकाजी भाषा बनेबाक सिफारिश १% सँ बेसी बाजल जायवला भाषाक रूप मे भाषा आयोग द्वारा सिफारिश मे पड़ल अछि। लेकिन राजनीतिक मनसाय मे स्पष्टता नहि रहबाक कारण आ संगहि अनेकों कुतर्क-कुतथ्य सब मैथिली भाषाक सम्बन्ध मे प्रसार करैत ई चूक जानि-बुझिकय कयलनि वा कय रहल छथि।
दोसर दिश, हम ई देखि रहल छी जे मैथिली भाषा सृजनक श्रृंगार सँ विश्वपटल पर चमकि रहल अछि। एहि मे ई अराजक राजनीतिक बयमान मनसाय भला कि बिगाड़ि लेत! तथापि, मैथिली त राज्यक उपेक्षाक शिकार बनल से त सत्य अछिये। आब आगू निकट भविष्य मे कि होयत से देखय लेल बाकी अछि।
एकटा आर बहुत सान्दर्भिक चर्चा अपन पाठक लोकनिक समक्ष राखय चाहब। आइ भोरे-भोर मैथिली भाषाक श्रेष्ठ अभियन्ता आ मैथिली साहित्यकार सभा जनकपुरक सभापाल (अध्यक्ष) श्री प्रेम विदेह ललन भाइजी संग हुनक किछु चिन्ताजनक भाव केँ भाँपि एकटा सवाल पुछलियनि। शायद ई सन्दर्भ अहाँ सब केँ सेहो महत्वपूर्ण लागय! हम एतय वार्ताक प्रारूप मे ओ बात राखि रहल छी।
मिथिला के मतलब सिर्फ मैथिली नहि – एहि शीर्षक पर काल्हि एकटा पोस्ट लिखने रही। एहि पोस्ट पर बहुत नीक विमर्श सेहो भेल। कनी देखियौकः
रंगनाथ ठाकुरः मिथिलाक मतलब निश्चित भूभाग, जकर ऐतिहासिक विरासत अछि, उत्कृष्ट पुरातन सभ्यता संस्कृत अछि, आ अइ भूभाग सँ प्रेम करय वाला व्यक्ति मैथिल। जेना राष्ट्रक राजकीय भाषा हिंदी छै तहिना बहुभाषी मिथिलाप्रेमीक लेल राजकीय भाषा मैथिली राज्यक लेल हेवाक चाही, भले हुनक वाणी है, छै, छिकै कियैक नै होन्हि।
(श्री रंगनाथ ठाकुर मिथिला राज्य निर्माण सेनाक अध्यक्ष छथि जे अपन सहमतिक शब्द दैत ई प्रतिक्रिया लिखलनि।)
हमः एहि तरहें सब विन्दु पर अपने लोकनि केँ बैसिकय एकटा घोषणापत्र तैयार करबाक चाही। बहुत रास एहेन विन्दु अछि जाहि पर मिथिलाक्षेत्रक मारवाड़ी, भोजपुरी, मगही, पंजाबी, नेपाली, आदि भाषाभाषी अपन सम्मानजनक स्थिति देखय चाहि रहल अछि। मिथिला राज्य केर निर्माण लेल संकल्पित शक्ति-व्यक्ति-समष्टि सब केँ एहि लेल उचित नियमन आ मनसाय प्रकट करब आवश्यक अछि।
प्रेम विदेहः मुदा मैथिली बोली- भाषिकासबके सेहो राजकीय मान्यता भेटक चाही।
यश राजः भाषा के साथे-साथ बोली के सेहो मान्यता? एहेन कतय होइ छय? एना भाषा बचतय?
प्रेम विदेहः समयक माङ अछि। तखने मिथिला बनत आ मैथिलीयो बाँचत।
यश राजः समय के मांग छय मैथिली के मानक के सरलीकरण, ई नञ जे ओकर बोली सब के अलग मान्यता दय दी, एहेन मिथिला राज्य नहि चाही हमरा सबके जाहि मे मैथिली के बलि देबय पड़य। बोली के अलग कय देला स मैथिली बचतय? ८ करोड़ स १ करोड़ भ’ गेल छय स्पीकर्स एहि षड्यन्त्र के कारण, आ एना मैथिली बचतय अहाँ कहय छी।
हमः भाइ यश राज जी, अहाँ वास्तव मे एहि विषय के पढाई कयल व्यक्ति नहि बुझा रहल छी… अनठेकानी देने जा रहल छियैक काल्हिये सऽ। भाषा बोलिये स बनैत छैक। पहिने उपबोली, तखन बोली, तखन परिनिष्ठित भाषा आ तखन राष्ट्रभाषा। अहाँ गर्व करू जे अहाँक मैथिली एहि सब चरण धरि पहुँच बना चुकल अछि। लेकिन दुर्भाग्य एहेन छैक जे ई अनिवार्य शिक्षा केर भाषा नहि बनि सकलैक अछि। तेँ समस्या छैक। एखनहुँ किछु राजनीतिक बयमान मनसायक लोक एकरा बोलिये धरि सीमित रखबाक व्यूह रचने जा रहल छैक, हालांकि ओ असफल भेल, आगुओ असफले होयत, लेकिन माहौल त खराब होइते छैक एहि तरहक बयमान मनसायक उपद्रवी बात-विचार सँ। से कनेक अध्ययन केँ विस्तार करू। आइ-काल्हि त हाथे मे मोबाइल आ गूगल देवता सोझें उपलब्ध रहैत छथि। पुछियौन न भाषा आ बोली बीच के अन्तर आ भाषाक समृद्धिक जड़ि बात बोली केना होइत छैक से सब।
प्रेम विदेहः अहिना जीद्द मचौने रहब त मैथिलीभाषी एक लाख पर आबि जाएब। मैथिली स अंगिका, बज्जिका भिन्न भेल। आब कतेको मैथिलीभाषी मगहीभाषी बनि रहल अइ। अडल रहू महाशय।
हमः भाइजी, भाषाभाषी के संख्या घटि गेला सँ भाषा केँ कि सब नुक्सान छैक? एहि पर अहाँक राय जानय चाहब।
यश राजः ओ मगहीभाषी नेपाल मे छय सर, इंडिया मे नञ छय। अहाँ सब नेपाल के स्थिति के आकलन कय के इंडिया के मिथिला पर यूज करय चाहय छी। एतय कतेको मुजफ्फरपुर आ भागलपुर वला मैथिली भाषी अपना भाषा के मैथिली बुझइ छय, आ बाकी केँ अवेयर करय के हेतय, बस। नेपाल के आधार पर एतय मिथिला बनायब त अहु ठाम “मधेश” क्रिएट भ’ जायत आर एगो। एतबे कहब हम। एतबे कहब हम जे इंडिया मे बनाबय के छय त इंडिया के अनुसार सोचू, नेपाल के जेकाँ नञ।
प्रेम विदेहः (हमरा सँ) सबसँ बडका नोक्सान – राजकीय संरक्षण, मातृभाषा शिक्षा, साहित्य सृजन, पठन, पत्रिका प्रकाशन, वितरण सब किछ प्रभावित भ सकैछ। नेपालक सन्दर्भमे प्रादेशिक कामकाजी भाषा।
हमः हम एहि सँ असहमति जतबैत यैह कहय चाहब भाइजी जे अनावश्यक चिन्ता मे कदापि नहि डुबू। मैथिली भाषा केँ बोली सिद्ध करबाक षड्यन्त्र जहिना भारत मे मैथिलीक हैसियत नहि बिगाड़ि सकल तहिना ई मैथिली संग शत्रुता कयनिहार, वास्तव मे मिथिलाक अभिजात्य वर्ग विरूद्धक खेमा जे नवका सूत्र मगही अनलक अछि, तेकर लपेट मे स्वयं घेरायवला अछि। राजकीय संरक्षण मैथिली लेल कि छैक? एकटा विद्यापति कोष जे ठाढ़ छैक तेकरा कोनो शक्ति छीनि नहि सकैत अछि कारण ओ मैथिली लेल विधान सहितक ठाढ़ एक अक्षय कोष थिकैक। दोसर विश्वविद्यालय मे एकटा मैथिली विभाग आ पढाई-लिखाई के व्यवस्थापन पर आँच एबाक भय जँ होइत अछि त ईहो ब्यर्थे बुझब, विश्वविद्यालय स्तर मे पढाई करबाक लेल मैथिलेतर कोनो सिलेबस डेवलप करय के ऊपर चिन्तन करब त पता चलत जे पोन पर तबला आ वास्तव मे तबला वादन मे कतेक फर्क छैक। मातृभाषा शिक्षा मे सेहो जँ आइ धरि मैथिली के अलावा आन कोनो भाषाक पाठ्यक्रम विकसित कयल जा सकल हो त कनी हमरो अपडेट करब। साहित्य सृजनक अवस्था त मैथिलीक मूल प्राण थिकैक। कहाँ होइत अछि एतेक साहित्य सृजन कोनो आन भाषा मे! जँ होइत देखने होइ, या फेर मैथिली घटैत देखने होइ… त हमरा अपडेट करब। पठन, पत्रिका प्रकाशन, वितरण पहिने सँ सुधरिते जा रहल छैक मैथिली के। प्रादेशिक कामकाजी भाषा ओनाहू मधेशवादी (हिन्दीवादी) कय तरहक सन्देह आ अराजक राजनीति मे नहिये देलक, आगुओ देत वा नहि तेकर ठेकान नहि। एहिना बिहार मे नहिये देलक। त एहि सब सँ मैथिलीक कि बिगड़ि गेलैक? हमरा त उल्टा हँसी अबैत अछि ओहेन गन्धकीरी विचारधारा आ लोक पर। कोन तीर मारि लेलक?
एहि वार्ता सँ मैथिलीक स्थिति स्पष्ट करैत आगू के नीति-नियम निर्माण हो हम यैह सदिच्छा रखैत छी। अनबिहितक बिहित कोनो पक्ष सँ नहि हो। बस। ई तय अछि जे मैथिली भाषाक विखण्डनक सोच बनेनिहार स्वयं आत्महन्ता सिद्ध हेताह आ नुक्सान ओकरहि हेतैक जेकर निराधार आ पृथक् सोचक कारण नवघर बनाबय लेल सोच, सामर्थ्य, साधन, समय आ समर्पण जुटबय मे असमर्थ हेताह। एहि नुक्सान सँ बहुजन समाज केँ बचाउ, हम त यैह आह्वान करब। अस्तु, लम्बा लेख लेल क्षमाप्रार्थी, लेकिन जरूरी बात सब लिखने जा रहल छी। धन्यवाद।

हरिः हरः!!