“वरदे वीणावादिनी वरदे..”

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— कृति नारायण झा।                 

“सरस्वती महाभागे विद्ये कमललोचने विद्यारूपे विशालाक्षि विद्यां देहि नमोस्तुते” अर्थात् हे माँ सरस्वती। अपने अत्यन्त भाग्यशाली छी, अपने ज्ञानस्वरूपा छी, कमल के समान विशाल नेत्र वाली हे ज्ञानदात्री माँ। हमरा विद्या दियअ।हम अहाँ के बारम्बार प्रणाम करैत छी।
सनातन धर्म केर विशेषता अछि जे एहि धर्म में अलग अलग विभाग अलग – अलग देवी देवताक जिम्मा सुपुर्द कयल गेल अछि जेना शक्ति केर सभ छार भार माँ महाकाली के उपर छैन्ह। धन सम्पत्ति केर विभाग माँ महालक्ष्मी लग छैन्ह तहिना विद्या आ बुद्धि केर जिम्मा माता सरस्वती के अधीन छैन्ह। जखन भगवान विष्णु केर आज्ञा पावि ब्रम्हा जी एहि सृष्टि केर रचना करय लगलाह त ओ अपन सर्जना सँ संतुष्ट नहिं छलाह। हुनका कतहु ने कतहु कमी केर अनुभव भऽ रहल छलैन्ह जाहि सँ चारू दिशा मे मौन केर वातावरण पसरल छल। पुनः विष्णु भगवानक संकेत पावि ब्रम्हा जी अपन कमंडल सँ जल पृथ्वी पर छिटलाह जाहि सँ पृथ्वी पर कम्पन केर अनुभव होमय लागल संगहि एकटा चतुर्भुजी सुन्दर स्त्री प्रकट भेलीह जिनक एक हाथ में वीणा आ दोसर हाथ वर देवाक मुद्रा मे आ एकर अतिरिक्त बांकी दू टा हाथ में माला आ पुस्तक छलैन्ह। ओहि स्त्री सँ ब्रम्हा जी वीणा बजेवाक अनुरोध कयलनि आ अनुरोध स्वीकार करैत ओ दिव्य देवी वीणा बजवय लगलीह। वीणाक मधुर ध्वनि वातावरण में पसरैत देरी पृथ्वी के समस्त जीव जन्तु के वाणी भेटि गेलैक तखन ब्रम्हा जी ओहि देवी के वीणा वादिनी सरस्वती कहि सम्बोधन कयलनि। माँ सरस्वती विद्या आ बुद्धि प्रदान करय बाली देवी छैथि आ कहल जाइत अछि जे बसंत पंचमी के दिन माता सरस्वती केर उत्पत्ति भेल छलैन्ह तेँ हमरा लोकनि एहि दिन विधि विधान सँ माता सरस्वती जी केर पूजा कऽ कऽ विद्या आ बुद्धि केर बरदान प्राप्त करैत छी। हमरा सभ के बाल्यवस्था में ई पावनि बहुत नीक लगैत छल कारण एहि पूजा में दू दिन धरि जीवनक सभ सँ कठिन आ बेकार काज पढवा लिखवा सँ मुक्ति भेटैत छल। माँ बाबूजी सभ सेहो एहि दिन पढवाक लेल नहि कहैत छलाह कारण भोरे सँ सभटा किताब कापी सभ सरस्वती माता के मूर्ति के समक्ष राखल रहैत छल जे ओहि दिन किताब कापी के सभटा पढाई सरस्वती माँ स्वयं करतीह। ओहि दिन बाबूजी के, कक्का के नब – नब धोती, माँ आ काकी सभक नवका – नवका साङी के हम सभ ओहार बनबैत छलहुँ। गामक अशोक गाछ केर ठाढि एहि दिन सभटा टुटि जाइत छल। भगवतीपुर के प्रसिद्ध हलुआइ चन्दर साहु के लाल पीयर रंग के बुनियाँ एहि दिन समाप्त भऽ जाइत छलैक। भरि दिन पूजा पाठ में बीति जाइत छल आ राति में सेहो मूर्ति के बगल में सुतैत छलहुँ। प्रसाद में विशिष्ट छल केसौर आ बेएर मुदा बुनियाँ के विशेषता अलग छलैक कारण सरस्वती पूजा में पीयर रंग अर्थात बसंती रंग के विशेष महत्व होइत छैक यथा पलासक फूल, आमक मज्जर आ मिठाई में बुनियाँ। हमरा सभक दिमाग मे बैसल छल जे सरस्वती माँ के मूर्ति के सामने किताब रखला सँ सभटा याद भऽ जाइत छैक जेना कालीदास के सरस्वती जी के मुँह पर कारी लगाओलाक उपरान्त ओ जे किताब उनटबैत छलाह ओ हुनका याद होइत जाइत छलैन्ह। सभटा सरल आ बाल बुद्धि केर परिचायक छल आ अन्त में ओ प्रसिद्ध पंक्ति “वरदे – वरदे – वरदे वीणा वादिनी वरदे….