भाषिक शुद्धतावादी आ मानकतावादीक नाम एगो चिट्ठी

भाषा-साहित्य

– किसलय कृष्ण

मिथिलावासीक एकमात्र अप्पन भाषिक दैनिक ‘ मैथिल पुनर्जागरण प्रकाश’क पहिल मास पूर्ण हेबा पर बधाई!!

भाषिक शुद्धतावादी आ मानकतावादीक नाम एगो चिट्ठी

आइ मैथिली दैनिक मैथिल पुनर्जागरण प्रकाश’क प्रकाशन यात्राक तीस दिन अछि मने एकमासक भ’ गेलै ई नवजात । अखबार प्रकाशनक एकटा सुखद सपनाक संगहि एकटा संघर्ष यात्रा हैइ ई । प्रकाशन कालक ऐ एक मास मे रंग विरंग’क अनुभव प्राप्त होलै । हम्मे आर आरम्भे मे सोइच लेने रही जे मानकताक तथाकथित सवाल पर टूटैत मैथिली के एकसूत्र मे जोड़बाक काज होतै एकर प्रकाशन सँ आ से प्रयासो हम्मे आर शुरू क’ देली ग’…… आ सहजे एक बेर फेरो सँ मैथिली मे संस्कृत घोसियाइ के मठोमाठ बनलों विद्वान आरू केँ पेट गुड़गुड़ाय लगलैन । हुनका अपन बोली भाषा बुझाइ हबे आ आन क्षेत्रक बोली भाषा नै बुझाइ हबे । हुनका आरु केँ सम्बोधित करैत हम्मे ई चिट्ठी लिखि रहलों छियै ।
हे हो भाय साहेब…. कै ल’ एना भाषा के़ खण्डित करैत अपना केँ महिमण्डित करैत छहो ? महाकवि विद्यापति केँ अपनों भाषाक प्रसिद्ध पुरुष मानै छहो कि नै, उनकर रचना केँ मैथिली मानै छहो की नै ? … आ जँ मानै छहो तँ तोहर मानकता केरो सभ वितण्डावादी सिद्धांत हियें धाराशायी भै जाइ छौन्ह । विद्यापति केरो गीतिभाषा मे तनिकबे नजैर दोहो ने….. ! माधव तोंहे जनु जाह विदेश, तोंहे जे कहै छह गौरा नाचय…, तोंहे जगतारिणी दीनदयामय… आदि गीत केँ अकानहो कने, ई तोंहे, जाह, छह आदि शब्द कोन क्षेत्र मे प्रचलित छै, से सोचहो ? खाँटी मधेपुरा, खगड़िया जिला मे प्रयोग होल करै हैइ ई शब्द सभ आ तोंहे आर ओइ क्षेत्रक भाषा केँ बोली कहबहो तँ भेलै ने भाषा के तोड़ै वला डेग !
एगो जमाना रहै जे मैथिली केरो सर्वश्रेष्ठ गीतकार मे विद्यापति केरो बाद देवघरक भवप्रीतानन्द ओझा, समस्तीपुरक स्नेहललता, सुपौलक लक्ष्मीनाथ गोसाईं, पुरैनियाँ’क रवीन्द्र जी होइत रहथिन्ह । मुजफ्फरपुर के विंध्यवासिनी देवी, सुपौल के शारदा सिंहा, मधुबनी के महेन्द्र आदि के स्वर एक्के संगे गूँजैत रहै मैथिली मे । 1948 मे जब्बे एच एम वी कम्पनी मे पहिल बेर मैथिली गीत रेकार्ड भेलै प्रो. आनन्द मिश्रक स्वर मे जे गीत रेकार्ड होलै, तकरो मुखड़ा बुझल छौन्ह हे भाषायी शुद्धता केरो ज्ञान देनिहार आदरणीय अग्रज समाज ! तकर बोल रहै ” भोर भेलै हे पिया, भिनसरबा भेलै हे…” कहाँ तकलखिन्ह केओ मानकता तहिया ।
असली गप्प तँ ई होलै जे साहित्य अकादमीक लड्डू बँटेनाइ शुरू होते, मैथिली अकादमी के प्रसाद पाबै के होड़ मे मैथिली भाषा पर गँरहण लागब शुरु होइ गेलै । आमलोक ई बात केँ बुझि नै सकलौन्ह आ अंगिका, बज्जिका के बँटवारा शुरू हो गेलै । जखनकि तहिये ऐ भाषिक कुठाराघात के मुद्दा पर सभ क्षेत्र के लोक चेत नै सकलै आ अपनों माइ केरो बँटवारा शुरू केर देलकै । मुदा आब लोग जागी रहलों छै सभ क्षेत्र मे । वस्तुत: सभ्भे के हृदयस्थल मे मैथिली रो जानकी प्रति प्रेम बाँचल छै । देखहो ने हरदम जानकी, सीता के रट लगौनिहार विद्वान सभ सीते के भाषाक (सीतामढ़ी) मानकता पर सवाल उठबैत ओकरा बोली कहल करै हैइ । बन्धु अपनों भाषा संस्कृति प्रति सभ्भे के स्वाभिमान होइ छै, तकरा तोंहे हीन भावना सँ देखबहो । अपना जे बाजै छहो तकरा भाषा कहबहो आ हम्म़े बोलबै तँ बोली मानबोहो तँ पेट मे गुड़गुड़ी उठबे करथौन्ह । मैथिली भाषा केरो अकादमी, संस्थान पर जेतना तोरा आर केँ अधिकार छह, ऐतने मिथिला के सभ क्षेत्रक लोक छै ।
आब मानकताक मठाधीशी पर विचार करहो, सभ केँ मिलाय केँ चलहो, तब्बे ने आठ करोड़ हौ ? आ जँ सभ देबाल केँ खसबैत आठ करोड़ मुट्ठी एक्के संग उठतै तँ मिथिला जिन्दाबाद हैतै, मैथिलीयो केरो जयजयकार होतै । मोन राखिह’ अपनेँ मिथिला के बेटा रहथिन फणीश्वरनाथ रेणु, जे हिन्दी मे आंचलिकता केरो महत्व केँ स्थापित केलखिन्ह आ आइ मिथिला मे मेथिली लेल एक बेर फेर सँ सुभाषचन्द्र यादव सन प्रसिद्ध साहित्यकार गुलो, मडर आदि चर्चित उपन्यास लिखि एकटा नव सूत्रपात कय देलखिन्ह हँ । सीतामढ़ी सँ आचार्य रामानन्द मण्डल, वैशाली सँ अभिषेक राय, दरभंगा सँ रामनरेश शर्मा, सिमराँव गढ सँ सन्तोष तिरहुतिया, खगड़िया सँ जीतेन्द्र जोशीला, अररिया सँ दक्षिणेश्वर प्रसाद राय आदि सन सैकड़ों कलम भाषाक देबाल तोड़बा मे तल्लीनता संग लागी गेल हैइ ।
रहलै मानकता केरो प्रश्न तँ आब बेर आबि गेल छै जे मैथिलीक समग्रताक धिआन रखैत मानकता स्थापित होइ । एहि लेल भारत आ नेपाल केरो सभ्भे जिला के भाषा साहित्यिक विद्वान एक मंच पर भाषाक मानक रुप स्थापित करैत, जै सँ सभ क्षेत्र के लोक केँ भाषाक मानकता प्रति सिनेह स्थापित होइ सकै आ भाषा पर लागल ग्रहण सँ उग्रास होइ सकै ऐ देसिल बयना केर । ई हमरा तोरा सिनी के दायित्व हैइ कि सभ्भे मिलिकय भाषाक अस्तित्व केँ पुनर्जीवन प्रदान करेत नव अध्यायक आरम्भ करी । अन्त मे कहब जे……
नै जाति-धर्म, नै द्वेष-राग
रे जागै मैथिल जाग-जाग
छी जनक विदेहक धरती ई
लोरिक-सलहेसक परती ई
यैह रेणु केर ‘मैला’ आँचर
यात्रीक धेमुरा ई चाँचर
हम्मर बोली मैथिली बोल
ई भाव एकर नै कोनो मोल
बोलै छिकियै हमें मैथिली
बोलैत हबे सभे गाँव-टोल
गामक सभ नाच तमाशा मे
मुरही आ दुध बताशा मे
गहबर पर ढोल आ ताशा मे
झूमी गाबी हम जै भाषा मे
सैह मैथिली हइ पहिचान हमर
घर आंगन आर बथान हमर
नै जाति पाति मे बँटतौ ई
कोनो चक्कू सँ नै कटतौ ई
हमर अछि सम्मान मैथिली
तोहरो छिकौ गुमान मैथिली
रे मठाधीश मठ छोड़ै तोँ
आब कुर्सीके हठ छोड़ै तोँ
भाषा केर धारा बहय दही
ई लोकक भाषा रहय दही
चलै हिमालयसँ गंगाधरि
गण्डकसँ ल’ महानन्दाधरि
सगदर बाजै छी हम मैथिली
हरदम बोलै छिकियै मैथिली.
चलह संगे बोलब जय मैथिली
फेरसँ बजियौ जय-जय मैथिली
© किसलय कृष्ण