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पलायनक दंश झेलि रहल मिथिला लेल ई पुण्यक काज मिलिजुलि करब आवश्यक

हाथ मे भेटल अवसर केँ रिक्त नहि जाय दियौक
 
अहाँक एक उपकार उपकृत लेल आजीवन अविस्मरणीय होइछ, संगहि अहाँक जीवन मे एहि सँ पैघ आन कोनो उपलब्धि नहि होइछ। कहबाक तात्पर्य, आजुक व्यस्त संसार मे सब कियो अपन-अपन रोजी-रोजगार मे व्यस्त छी, बड मुश्किल सऽ केकरो किछु पल (समय) अपना सँ अतिरिक्त दोसरहु के काज लेल खर्च करय वास्ते भेटि गेल करैत अछि। आर से समय जँ अहाँ कोनो न कोनो तरहें लोककल्याण निमित्त खर्च करैत छी त बुझू परोपकारी लोक छी, भगवानक असीम कृपा अहाँ पर भेल जे परोपकारी बनि सकलहुँ, आर एकर अन्तिम उपलब्धि अहाँक सुन्दर प्रारब्ध बनैत अछि।
 
प्रारब्ध कि थिकैक? हम-अहाँ जे कर्म करैत छी तेकर किछु फल तुरन्त नहि प्रकट भऽ जीवन मे बादक क्षण मे अभरैत अछि। एकटा परोपकार सँ कतेको तरहक कर्मफल बनैछ जे अहाँक जीवन मे बाद मे प्रकट होइत अछि। जेना, अहाँ कहियो प्यासल जीव-जन्तु केँ जल पिया देलहुँ। आब एकर तत्क्षण परिणाम कि भेलैक? अहाँ प्यासल जीव केँ जल पियाकय तत्क्षण आत्मसंतोष प्राप्त कयलहुँ। लेकिन एकर दूरगामी परिणाम (प्रारब्ध फल) एहेन भेलैक जे अहाँ स्वयं कोनो अकलबेरा (अकालक मुंह) मे फँसि गेलहुँ आर ताहि समय ओ प्यासल जीव केँ जल पियेबाक सुखद फल अहाँक सोझाँ प्रकट भेल आ बिना कोनो परिश्रम/व्यय/कष्ट आदिक ओहि काल केर चक्कर सँ मुक्त कय देलक। यैह होइत छैक प्रारब्ध। अहाँपर कोनो भयावह कुदृष्टि पड़ि गेल छल, मुदा अपन नीक कर्मक प्रारब्ध अहाँ केँ ओहि कुदृष्टि सँ सुरक्षित बचा लेलक। तेँ, हमेशा मनुष्य केँ चाही जे एको सेकेन्ड के समय भेटि जाय त कोनो न कोनो पुण्य केर काज जरूर कय ली। नहि किछु भेटय त केवल भगवन्नाम सुमिरन कय लेल करू। निरन्तर मन मे भगवानक नाम सुमिरन करैत रहू। एहि सँ सेहो अहाँ अपन जीवनधन केर सदुपयोग करैत एहि अपरम्पार भवसागर सँ पार पाबि गेल करैत छी।
 
पता अछि ई विवाह कर्म कतेक पैघ पुण्य थिकैक? विवाह केँ हम-अहाँ सिर्फ उत्सव के रूप मे बुझल करैत छियैक से उचित नहि भेल। विवाह सर्वप्रथम दुइ आत्मा केँ एकात्मा मे परिणत करबाक महान् यज्ञ होइत छैक। एहि पुण्य वास्ते नहि केवल ओ दुइ आत्मा केँ एक ठाम एबाक रहैत छैक बल्कि एहि लेल सभ्य समाज केँ सेहो दुइपक्षीय माता-पिता-परिजनक संग एकत्रित हुए पड़ैत छैक। वर-बरियाती, कन्या-सरियाती आ सम्पूर्ण दू बगली समाज एकत्रित भऽ देवता-पितर आ लोक, चराचर जीव, अग्नि, आदि केँ साक्षी मानिकय दुइ आत्मा एकात्मा मे परिणति पाबि मानवोचित गृहस्थ धर्म केर पालन करय लेल, नव पीढ़ी केँ विधिवत् एहि संसार मे आनय लेल संकल्पित होइत छैक। सृष्टि केँ सदाकत चलायमान राखय लेल विवाह जेहेन पवित्र सम्बन्ध केर कर्त्तापुरुष आ साक्षी सब कियो बराबर पुण्यक भागीदार बनैत छी। नीक प्रारब्धक निर्माण एतहु भेल करैत अछि। बस, ध्यान रहय जे अपन तरफ सँ बेहतरीन सहयोगक काज सम्पन्न हो।
 
अन्त मे, दहेज मुक्त मिथिला आ एकर सदस्य लेल पुण्यकाजक अनेकों अवसर अछि। केना दुइ आत्मा केँ एकात्मा मे परिणत भेटत आ केना बिना पापाचार, आडम्बर, अनाचार, कदाचार, भ्रष्टाचार आ व्यभिचारी प्रवृत्ति के ई पुनीत विवाह सम्पन्न हेतैक ताहि मे सहयोगीक भूमिका निभेबाक रहैछ हमरा सब केँ। सब सँ पहिने, आजुक घोर समस्या, जोड़ी मिलानीक कार्य मे सहायक होइ। तदनुसार आगू जतेक सम्भव हुए ओतेक सहजकर्ता बनिकय दुइ आत्मा केँ एकात्मा मे परिणतिक यज्ञ निष्पादित करी। आर की! पराम्बा जानकी सब पर सहाय रहथि, अपन कर्तव्य सँ विमुख कियो गोटे नहि होयब। अस्तु!
 
हरिः हरः!!

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