२०२१ केर जाइत जाइत एक अत्यन्त जरूरी चर्चा – प्रवीणक कलम सँ

मैथिलीपुत्र प्रदीप लेल प्रवीणक संस्मरण
कहियो ई सोचलियैक या विचारलियैक जे…..
 
 
मिथिलाक्षेत्रक एकमात्र भाषा ‘मैथिली’ लेल सुसंगठित कार्य कतेक भेल? राज्य द्वारा भाषा-संस्कृतिक विकास लेल कि सब योगदान कयल गेल?
 
एहि दुओ प्रश्नक उत्तर सहजहि भेटि जायत। आधुनिक भारत व नेपाल दुनू देश मे विद्यमान् मिथिला, एहि ठामक भाषा, संस्कृति आ समाजक विकास हेतु राज्य द्वारा लागू कयल गेल नीति उपेक्षा, हिकारत भरल दृष्टिकोण आ जानि-बुझि दोसर दर्जाक नागरिक बनेबाक खतरनाक नियति देखा जायत।
 
बहुत दुःखक बात छैक जे बुद्धिजीवी आ विद्वान् समाज मैथिली केँ प्राचीन आ समृद्ध भाषा मानितो राज्य द्वारा कुपोषण केर नीति केँ खिलाफत नहि कयलक। एहि तरहें एकटा समृद्ध भाषा मृत्युक कगार पर पहुँचि चुकल अछि।
 
दयनीयताक हालत एहेन अछि जे आइ स्वयं एक्के गाम आ समाजक लोक मे गर्वबोधक बदला बोलीक फर्कक आधार पर विभाजित होयबाक दुरावस्था बनि गेल अछि। अहु सँ बेसी दुःखक बात ई छैक जे राज्य केर नीति बनेनिहार नेता कहेनिहार लोक अपन सत्ता-स्वार्थ लेल समाज केँ एहि आधार पर बाँटय सँ नहि चूकि रहल अछि। ओकरा ई पते नहि छैक जे आजुक ई विभाजन केहेन बारुदी सुरंग बिछा रहलैक अछि।
 
समाज केँ जातीय द्वंद्व मे फँसेबाक ई खतरनाक काज करय सँ ई सत्तालोलुप राजनीतिक शक्ति कनिकबो नहि हिचकिचाइत अछि। थोड़बो संवेदनशीलताक परिचय नहि दय रहल अछि अपन वोटबैंक बनेबाक मकरजाल बुनबाक क्रम मे।
 
मानव सभ्यता लेल सब सँ पैघ शत्रु भाषिक विखंडन मे समाज केँ ओझरेनिहार एहि राजनेता सब केँ एखनहुँ मनन करबाक चाही, देखबाक चाही विश्व भरिक अनेकों देश केँ…. जेकर सारा समृद्धि आ अस्मिता केँ बाहरी लूटलक से सिर्फ एहि आधार पर। भारत जेहेन सोनाक चिड़िया केँ सैकड़ों वर्ष धरि गुलामीक जंजीर मे जकड़ि रखलक। आब जँ देश स्वतंत्र बनियो गेल आ अपन निजता केँ उचित पृष्ठपोषण देबाक बदला दमन करबाक नीति अख्तियार कय रहल अछि त एकरा वास्ते केकरा जिम्मेदार मानबय?
 
जबरदस्ती अपन मौलिक भाषा केँ किनार लगा खड़ी बोली (हिन्दी) केँ नीतिगत रूप सँ लादिकय निजताक हत्या करब केहेन वीभत्स परिणाम देलक से अन्तर्दृष्टि सँ देखू। अपनहि भूगोल मे जखन आनक भाषा केँ सरकारी कामकाज आ शिक्षाक भाषा बनायल जाय त संविधानप्रदत्त मौलिक अधिकार सँ वंचित रखबाक जुलुम भेलैक कि नहि से सब कियो जरूर सोचू।
 
मैथिली न त सरकारी कामकाजक भाषा बनल, नहिये शिक्षा मे अनिवार्यता मे राखल जा सकल। संचारक श्रव्य, दृश्य, पाठ्य कोनो क्षेत्र मे नहि राखल गेल मैथिली। सरकारक विज्ञापन मे सेहो देवाल-लेखन, शिलापट्ट, पोस्टर, पम्पलेट कतहु नहि रहल मैथिली। आब सवाल उठैत छैक जे एहेन घोर शत्रुता के बादो आखिर ई भाषा तखन आइ धरि जीवित कोना अछि?
 
विगत किछु दशक सँ एहि सवाल केर जवाब तकबाक जएह किछु अध्ययन कयलहुँ ताहि मे देखायल जे टुटपूँजिया प्रयास सँ छिटफुट किछु व्यक्तिगत त किछु समूह द्वारा एहि भाषा केँ पुनर्संगठित करबाक कार्य कयल गेल।
 
यदि सच मे एहि भाषाक प्राणरक्षा लेल केकरो श्रेय देल जाय त ओ विदेशी विद्वान् आ शोधकर्ताक नाम आधुनिक काल लेल सर्वोपरि मानल जायत। उपलब्ध सामग्रीक अध्ययन सँ यैह चित्र बनैत अछि। लेकिन गहींर मे सोचब त पता चलैत अछि जे भारतीय परम्परा मे साहित्यक संग्रह, साहित्यिक गतिविधि ओतेक सुव्यवस्थित ढंग सँ नहि राखल जेबाक कारण कतेको महान सर्जक सभक योगदान तर पड़ि गेल।
 
ब्रिटिश, स्कौटिश, आयरिश, डेनिश, जर्मन, जापानी, आदि विभिन्न देशक शोधकर्ता, लेखक, विद्वान लोकनि अपन सामग्री मे कथ्य, शिल्प, मूल्य, मान्यता आदि केँ त समेटलथि, परन्तु मुख्य स्रोत जाहि सँ ओ लोकनि ई सब प्राप्त कयलनि तिनकर नाम दस्तावेज मे चढबय लेल छुटि गेल, एना हमरा लगैत अछि। भ’ सकैत छैक जे हमर अध्ययन कम अछि, हमरा ओहेन सामग्री सब सोझाँ नहि अभैर सकल एखन धरि। लेकिन जतबे अभरल ताहि अनुसारक इतिहास सेहो कम रोचक नहि अछि।
 
छोट-छोट रियासती राजा लोकनि शिक्षा आ बौद्धिक सामग्री पर जोर दैत रहल छलाह तेकर प्रमाण विद्यापतिक कुल-परिवारक लोकक आ ताहि समयक विद्वत परम्परा से ज्ञात होइत अछि। यवन शासकक जोर-जबरदस्ती आ बौद्धिक सामग्री केँ नष्ट करबाक, दोसरक सृजनकर्म केर अपहरण करबाक, सृजनकर्म सँ विद्वान केँ वंचित करबाक विभिन्न दुरावस्था रहल होयत ई सहजहि अनुमान कयल जा सकैत अछि। एहि कारण ज्योतिरिश्वर-विद्यापतिक बादक विशाल कालखंड केर विद्वान सृजनकर्मी लोकनिक गौण उपस्थिति देखल जाइछ। बाद मे ब्रिटिशकाल मे कोलब्रुक कि ग्रियर्सन आदिक समय मे हुनका लोकनिक लिखल सामग्री सँ मैथिलीक समृद्धिक परिचय भेटैत अछि, लेकिन एतय सेहो मुख्य स्रोत विद्वानक नाम गौण अछि।
 
एम्हर व्यवहारिक जीवन मे शिक्षा परम्परा, गुरु आश्रम आ पाठशाला आदिक विषय मे सेहो अत्यल्प लिखित सामग्री भेटैछ। संस्कृत भाषा आ दर्शन एवं न्याय संग ज्योतिषीय गणित, मीमांसा, धर्म निर्णयसिन्धु, आदिक अम्बार रहल एतय आ एहि क्रम मे वाचस्पति, मंडन, अयाची, बच्चा झा, रुद्रधर झा सहित अनेकानेक प्रकांड ज्योतिष विद्वान सभक नाम सुनि पबैत छी। लेकिन हिनको सभक कार्य केँ उचित संग्रह आ प्रकाशनक काज कतेक भेल, ताहि पर हमर अध्ययन अत्यल्प अछि। हँ, सौराठ सभागाछी जेहेन कुल ४२ स्थानक सभावास आ ओतय विद्वानक बीच शास्त्रार्थ परम्परा, निर्गुण पक्षक संत-महात्माक कुटी आ सत्संग सँ साहित्यक प्रसार, घरे-घर श्रुति साहित्यक खिस्सा-पिहानी – किछु एहि सब माध्यम सँ मैथिली जियैत रहल हम एहि निर्णय पर पहुँचैत छी।
 
हाल धरि राज्य द्वारा बस नाममात्रक योगदान मैथिली लेल देखैत छी। मैथिली अकादमी (पटना), साहित्य अकादमी (दिल्ली), मैथिली भोजपुरी अकादमी (दिल्ली), प्रज्ञा प्रतिष्ठान (नेपाल), विद्यापति पुरस्कार कोष (नेपाल) – एकर अतिरिक्त शिक्षाक क्षेत्र मे बिहारक विभिन्न विश्वविद्यालय आ नेपालक त्रिभुवन विश्वविद्यालय, कोलकाता विश्वविद्यालय, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (विगत मे) आ आब दिल्ली विश्वविद्यालयक नाम सेहो जुड़बाक चर्चा टा सुनैत छी। एकर अतिरिक्त भारत सरकार केर भाषा संस्थान सेहो मैथिली लेल किछु कार्य करबाक बात सुनलहुँ।
 
बाद बाकी स्वान्तःसुखाय भाषा-संस्कृति प्रेमी लोकनि अपन निजी योगदान सँ, तदोपरान्त गोटेक छोट-छोट समूह द्वारा महाकवि विद्यापतिक नाम पर किंवा मिथिला विभूति लोकनिक स्मृति दिवसक नाम पर मैथिली भाषा-संस्कृति लेल यथासंभव प्रयास करैत देखाइत छथि। आपस मे एक-दोसर के मुंहपोछाइये सही, लेकिन मैथिली केँ यैह लोकनि जियौने छथि ई स्वीकार करय मे किनको असोकर्ज नहि हेबाक चाही।
 
मैथिली भाषा लेल उर्वरक भूमि कोलकाता, पटना, दरभंगा, सुपौल, सहरसा, पुर्णियां, काठमांडू, जनकपुर, विराटनगर, राजविराज आदि विभिन्न योगदान दैत आबि रहल अछि। आब दिल्ली, मुम्बई, अहमदाबाद, गुआहाटी, बोकारो, राँची, जमशेदपुर, बोकारो, बंगलुरु, लहान, जोगबनी, आदिक नाम सेहो लिस्ट मे जुड़ि गेल अछि। तहिना अमेरिकाक अटलांटा, न्युुयोर्क, लौस एन्जिल, व अन्य अन्य प्रवासक देश, नगर, महानगर सभ मे सेहो लोक अपन भाषा-संस्कृति लेल जागल देखाइत अछि। लेकिन ई सारा निजी स्तरक प्रयास आ जेकरा जेना मोन होइत छैक तेना अपन सुविधा, स्रोत, संसाधनक सदुपयोग करैत मैथिली जिन्दाबाद करैत अछि।
 
मिथिला मिहिर जेहेन गम्भीर संचारकर्म मैथिली लेल निरन्तरता मे नहि रहि सकब एहि निजी प्रयासक क्षणभंगुरता केँ देखबैत अछि। मैथिली पत्रकारिताक इतिहास मे जयपुर (राजस्थान) सँ १९०५ ई. मे आरम्भविन्दु देखाइत, हजारों पत्र-पत्रिकाक समय-समय पर प्रकाशन हेबाक बात देखैत छी। लेकिन सुसंगठित रूप सँ मैथिलीक पत्र-पत्रिका केर प्रकाशन आ वितरण निरन्तरता मे कतहु बेसी दिन नहि रहबाक दुखद स्थिति सेहो देखैत छी।
 
एतय नेपाल मे राजविराज सँ प्रकाशनक दीर्घकालिक साप्ताहिक ‘मिथिला’ देखि रहल छी, लेकिन एकर वितरण आ पठनीयता कोन स्तरक अछि; एहि सँ लोकक बोली-शैली मे कतेक समानता आनल जा सकल, एहि सब विन्दु पर कोनो समीक्षात्मक-विवेचनात्मक प्रतिवेदन हमरा नजरि मे नहि पड़ल अछि। शायद ई सब काज करब बाकी छैक।
 
मैथिलीक विभिन्न बोली-शैली बीचक दूरी केँ कम करबाक एकमात्र साधन थिकैक पत्र-पत्रिका। मिथिला दर्शन, घर बाहर, अप्पन मिथिला, आङ्गन, आँजुर, ई सब निरन्तर प्रकाशन होइत रहल अछि। वितरण केँ प्रसार देबाक लेल सेहो समुचित प्रयास करैत रहला अछि। लेकिन पाठकक उदासीनता आ मैथिली पत्र-पत्रिका मे रुचिक अभाव केर कारण रेवेन्यू (राजश्व) या विज्ञापन आमदनी नहि आबि पेबाक कारण स्थिति बड नीक नहि कहल जा सकैत अछि।
 
दृश्य मीडिया मे मिथिला मिरर आब सर्वोत्तम मैथिली यूट्यूब चैनल मानल जा सकैत अछि। आब लोक सरोकार केर विषय सँ जुड़ल जमीनी रिपोर्टिंग करब आ वर्तमान समयक हिन्दी मीडियाक अफीमी मसालेदार चहटगर चटनी जेकाँ समाचार परोसबाक चुनौती केँ मिथिला मिरर डटिकय सामना कय रहल देखाइत अछि। व्यूअर्स केँ मैथिली मीडिया सँ जोड़बाक लेल ललित नारायण झाक नवाचार प्रशंसनीय अछि।
 
रेडियो आ एफएम मे नेपालक मीडिया सर्वोपरि अछि। ई सिद्ध कयलक जे अपन भाषा मे संचारक बड पैघ महत्व छैक। तखन न नेपालक राष्ट्रीय चैनल सँ लैत स्थानीय स्तरक विभिन्न चैनल्स मे मैथिली कार्यक्रम केर समावेश कएने बिना चैनलहु केर लोकप्रियता आ श्रव्यता परिभाषित नहि होयबाक स्थिति बनलैक अछि। नेपालक प्रदेश १ आ प्रदेश २ केर त शत-प्रतिशत चैनल्स मे मैथिलीक स्थिति बेजोड़ छैक। रोजगारक प्रशस्त बाट खोलबाक संग-संग मीडिया सम्बन्धी अनेकों उद्यम खूब जोर पर अछि।
 
दृश्य मीडिया मे नेपालक सब टेलिविजन चैनल्स सेहो मैथिली दर्शक लेल मैथिली सामग्री प्रदर्शन करैत अछि। ताहि सँ फिल्म प्रोडक्शन आ रंगकर्म केर दशा-दिशा एकदम हरियर बनल अछि। सैकड़ों यूट्यूब चैनल्स आ एकर रेवेन्यू एहि फील्ड मे लगानी आ कमाय केर भाषा सिद्ध कएने अछि मैथिली केँ। ई नीक संकेत थिक। ओहो सब जे अपन भाषा केँ आन-आन नाम दैत अछि, से मजबूर होइत अछि जे ब्रैकेट मे मैथिली जरूर लिखू, नहि त लोक सर्चो नहि करत आ व्यूअर्स पेनाय त असम्भवे टा होयत। त मैथिली जिन्दाबाद लेल ई सब क्षेत्र हरियर बत्ती जरौने देखा रहल अछि। तेँ सरकार एकरा टैक्स फ्री कय देलक या एहि लेल कोनो बढावा देबाक काज केलक से नहि छैक। ई त ‘जानकी-प्रभाव’ यानि स्वयं जानकी जी के कृपा पर जिन्दाबाद हेबाक अवस्था मे अछि से साफे बुझू।
 
राम भरोसे हिन्दू होटल आ जानकी भरोसे मैथिली मिथिला – ई कहब त कोनो अतिश्योक्ति नहि होयत। एहेन स्थिति मे केकरो काजक कियो आलोचना आ कि विरोध करैत छथि त ओकर कोनो माइन-मोजर नहि होइत अछि।
 
पिछला २६ दिसम्बर २०२१ सँ मधुबनी सँ आरम्भ भेल अछि ‘मैथिल पुनर्जागरण प्रकाश’। राष्ट्रीय दैनिक अखबार ‘मिथिला आवाज’ २०१२ सँ शुरू भेल आ मात्र किछेक वर्ष मे ठमैक गेल। महान मैथिलीपुत्र सी एम झा दिल्ली एनसीआर मे सेहो एकर प्रसार हेतु सपना देखने रहथि, दरभंगा पर्यन्त नहि सम्हारि सकलाह, से अपना कारण नहि… उदासीन आ नपूंसक मैथिली स्टेकहोल्डर्स आ स्वयं निठल्ला अपरोजक व्यवस्थापन पक्षक कारण। ‘सौभाग्य मिथिला’ टेलिविजन चैनल सेहो निवेशक प्रफूल्ल बाबूक कारण नहि, अपितु धृष्ट आ मनमौजी व्यवस्थापक आ अनप्रोफेशनल एप्रोच संग उदासीन-नपूंसक स्टेकहोल्डर्स केर कारण।
 
खैर, २०२१ बितैत-बितैत ई एकटा अत्यन्त लम्बा आ बोरिंग रिपोर्ट प्रवीणक कलम सँ अपने सब मनोयोगपूर्वक पढिये टा देलहुँ ताहि लेल हृदय सँ आभार व्यक्त करैत छी, सब कियो त पढबो नहि करता, कारण ऊपर लिखल अछि…! लोक पढथि नहि पढथि ताहि केँ बिना संज्ञान लेने जेना नवारम्भ प्रकाशन मधुबनी बिन रुकने सैकड़ों किताबक प्रकाशन हर वर्ष करैत मैथिली केर साहित्यिक भंडार केँ भरने जा रहल अछि, एहि प्रेरणाविन्दु पर हमहुँ लिखने जा रहल छी। कहियो केकरो नजरि पड़ि जाय, कनिकबो पढ़ि लेत आ बुझत जे मैथिली लेल केकर कि प्रयास छैक त हमर मेहनति सफल भेल बुझब।
 
जीवन मे टार्गेट लय कय काज करब आ सेहो अपन मातृभाषा लेल त एकटा अलगे आत्मसंतोष आ बेहतरीन प्रारब्धक पारितोषिक भेटैत छैक। कन्हा कुकूर माँड़हि तिरपित! हम मैथिली लेल एतबे काज सँ अत्यधिक सन्तुष्ट होइत छी। टिटही जेकाँ टांग उठा सुतैत छी जे आकाश खसत त अपनहि पैर पर रोकि लेब! दहेज मुक्त मिथिला समूह सँ विगत ३ वर्ष मे १०० टा लेखिका सेहो तैयार भऽ गेलीह, चारूकात मैथिली-मैथिली होइत देखि रहल छी। आब कि चाही अपन जीवन मे!! मैथिली जिन्दाबाद डट कम वेब पत्रिका सेहो नव रूप मे लांचिंग कयल जा चुकल अछि २०२१ मे। अपने सब एहिना अपन स्नेह आ आशीर्वाद बनेने रही!
 
हरिः हरः!!