हमर सभ्यता आ भूगोल केर अवस्था दयनीय कियैक

सभ्यता पर खतरा
 
कनी गौर करूः
 
“भाषा सँ साहित्य – साहित्य सँ संस्कार – संस्कार सँ संस्कृति – संस्कृति सँ सभ्यता – सभ्यता सँ भूगोल”
 
ई पंक्ति एकटा सूत्र थिकैक। एहि सूत्र के आधार पर हम सब मिथिला के छी। मैथिली हमरा सभक भाषा छी। एहि भाषा मे लिखित साहित्य मात्र १००० वर्ष के आसपासक उपलब्ध भेटैछ। ज्योतिरिश्वर ठाकुर, विद्यापति, आदि गोटेक प्राचीन कवि मात्र खोजल जा सकला अछि एखन धरि। लेकिन श्रुति साहित्य – लोक साहित्य, कला साहित्य, आदिक विलक्षण परम्परा एतय विद्यमान अछि।
 
साहित्यक अर्थ होइत छैक सहित या संग होयबाक अवस्था। शब्द और अर्थ केर सहितता केँ साहित्यक परिभाषा कहल जाइत छैक। सार्थक शब्द भेल साहित्य। सब भाषा मे गद्य आ पद्य केर ओ समस्त पुस्तक जाहि मे नैतिक सत्य और मानवभाव बुद्धिमत्ता तथा व्यापकता सँ प्रकट कयल गेल हो, वाङ्मय, ई कहाइछ साहित्य। कोनो विषय केर ग्रंथ आदिक समूह; शास्त्र केँ साहित्य कहल गेल अछि। कोनो एक स्थान पर एकत्र कयल गेल लिखित उपदेश, परामर्श या विचार आदि ; लिपिबद्ध विचार या ज्ञान, ई सब साहित्य कहाइछ। समस्त शास्त्र, ग्रंथ आदिक समूह ; (लिटरेचर) – साहित्य होइछ।
 
जेना कि साहित्यक परिभाषा सँ स्पष्ट अछि जे शब्द समूह सँ निर्मित वाक्य आ फेर वाक्य समूह सँ निकलल सार्थक सन्देश जे मानव जीवन लेल उचित मार्गदर्शन आ ज्ञान संग-संग जानकारी आदि केँ लिपिबद्ध रूप मे रखैत अछि। नहि लिपिबद्ध त एक पीढ़ीक लोक द्वारा बाजिकय दोसर पीढ़ीक लोक धरि स्वतःस्फूर्त ढंग सँ चलायमान अवस्था मे रहैछ ईहो साहित्य थिक। यैह साहित्य हमरा लोकनिक संस्कार निर्माण करैत अछि। बच्चाक जन्म सँ माता-पिता-परिजनक कथनोपकथन, लाड़-प्यार, झार-फटकार, पठन-पाठन आदि मे सन्निहित साहित्यहि सँ निर्माण होइछ संस्कार। यैह संस्कार केर समुच्चय केँ ‘संस्कृति’ कहल जाइछ। आर संस्कृति होइछ सभ्यताक जननी।
 
जँ भाषा मे भटकाव भेल त स्वतः साहित्य मे परिवर्तन होयत। हम-अहाँ जाहि साहित्यक आधार पर अपन सन्तति केर पालन-पोषण करब ओकरा मे ओहने संस्कार विकसित होयत। उदाहरणस्वरूप – आइ-काल्हि हम मिथिलावासी जानिबुझिकय अपन सन्तान केँ स्वयं अलग-अलग भाषा-परिवेशक संस्कार इम्प्लान्ट (बीजारोपण) करैत छी। बाद मे जखन ओहि संस्कृति अनुसार अपन सन्तान माता-पिताक मौलिक संस्कारक विपरीत व्यवहार करब आरम्भ करैछ तखन कहल जाइछ जे आइ-काल्हिक सन्तान मे माता-पिता-परिजन प्रति कोनो तरहक उत्तरदायित्व नहि, कोनो अनुशासन नहि, आदि। एतय मनन करय योग्य बात ई छैक जे आखिर एहि संस्कारक बीजारोपण केना भेलैक सन्तान मे?
 
अपने सब देखैत होयब जे मोबाइल, इन्टरनेट, टेलिविजन, आदिक युग मे फिल्मी संस्कार कतेक तेजी सँ समाजक मौलिक संस्कार केँ बदलिकय राखि देलक। मात्र २-३ दशक मे लोकक बोली, शैली, पहिरन, ओढ़न, रहन-सहन सारा चीज फिल्मी आ विदेशिया शैलीक बनि गेल अछि। सिर्फ माता-पिता मात्र नहि, साथी-संगत आ कोनो एक मानवक संस्कार केँ प्रभावित करयवला परिवेशक हर वस्तुक प्रभाव साहित्य आ संस्कार आ अन्ततोगत्वा संस्कृति पर पड़ैछ। सभ्यता एहि तरहें विनाश केँ प्राप्त भ’ गेल करैछ। मिथिला आइ अधर मे लटकि जेबाक मूल कारण सेहो यैह थिकैक। लोक देक्सी मे बताह भेल अछि। आजुक समय मे अपन संस्कारक रक्षा बड पैघ चुनौती अछि हमरा सभक लेल। सजगता एकमात्र टूल (औजार) जाहि सँ अपन मौलिकताक रक्षा किछु हद धरि संभव होयत।
 
हरिः हरः!!