“मिथिलाक कोहबरमे बनाओल गेल आकृति सभक महत्त्व”

322

— आभा झा।                             

 

मिथिला में_कोबर में_बनल_आकृति_सभक_महत्व
मिथिला चित्रकला मिथिलांचलक लोक सांस्कृतिक चित्रकला अछि। कोबर के बिना कोनो मैथिलक विवाह नहिं होइत छनि। मिथिला संस्कृति में कोबर घर व मंगल घर जे कहिऔ एकटा एहेन घर मानल जाइत अछि जाहि में देवता-पितर विवाहित जोड़ा के आशीर्वाद दैत छथिन। मिथिला में बर-कनियाक मधुर मिलन लेल जे घर सजाओल जाइत अछि तकरे नाम कोबर घर राखल गेल अछि। कोबर घरक चारू कोण पर एक समान आकृति नैना जोगिनक चित्र आ एक कोन में पूजा स्थल पर कोबरक चित्र होइत अछि। विवाहक विध कोहबर घर स शुरू भऽ कऽ एतहि समाप्त होइत अछि। बिधकरी कन्या सं विवाहक विध करबैत छथिन। हाथी,जनक डाला (गोबर आ माटी सं बनाओल मूर्ति शिल्प)पुरहर,पातील जाहि में दीप जराओल जाइत छैक। संपूर्ण मिथिला में शिव शक्तिक उपासना कैल जाइत अछि आ एतुका समाज आ कला संस्कृति पर तांत्रिक प्रभाव सेहो देखल जा सकैत अछि। तैं शायद योनियुक्त शिवलिंगक पूजा पूरा हिंदू धर्म में संपूर्ण मिथिला में महत्वपूर्ण अछि। कोबर में महादेव आ गौरी के स्थान देल गेल अछि।गौरी महादेव के अपन आदर्श-पतिक रूप में अपनबैत छथि आर दुनू सफल गृहस्थ जीवनक आनंद उठबैत छथि।नव-दंपत्ति सेहो वैह आदर्श अपना भीतर स्थापित करैथ,एकर कामना कोबर में गौरी-महादेवक चित्रण करि कैल जाइत अछि। जलीय एवं थलीय जीव-जंतु में माछ,कछुआ और हाथी कोबर में प्रमुखता सं स्थान पाबैत अछि।हाथी ऐश्वर्यक प्रतीक अछि।ओ नव-दंपत्ति के धन-धान्य सं भरल जीवनक आशीर्वाद दैत अछि।भारतीय योग परंपरा में माछ के चंद्रमा और सूर्य सं संबंधित मानल गेल अछि,जे,मानव जीवन में प्राणक संचार करैत अछि जखन कि हिंदू ज्ञान परंपरा और बौद्ध ज्ञान परंपरा में ओकरा धन,समृद्धि आ ऐश्वर्यक बहुलताक प्रतीक मानल गेल अछि।तंत्र विद्या में माछक आंखि सम्मोहनक प्रतीक अछि। ताहि दुवारे कोबर में माछक चित्रण कऽ नव-दंपत्तिक ऐश्वर्यक जीवनक कामना कैल जाइत अछि संग हुनकर बीच सम्मोहनक भाव बनल रहै,यैह कामना कैल जाइत अछि।एक दोसरक मध्य सुरक्षा और विश्वासक भावनाक प्रतीकार्थ माछक चित्रण कोबर में कैल जाइत छैक।पुरइन,बांस आ केराक एकटा गुण अइ ओकर वृद्धि आ पसरनाई ताहि लऽ कऽ ई वंश वृद्धि आ दीर्घायुक प्रतीक अछि।सुग्गा प्रेमक आ कछुआ दीर्घायुक संकेत अछि। पुरइन स्त्री योनिक प्रतीक तहिना पितृसत्ताक प्रतीक पुरूष लिंग बांसक रूप में अछि,चिरई आ सांपक जोड़ा वंश वृद्धिक लेल चित्रित कैल जाइत अछि।एकटा गौरी पूजनक दृश्य सेहो चित्रित रहैत अछि कियैकि हिनके कृपा सं बर भेटलखिन।केराक गाछ,कछुआ,भौंरा,लटपटिया सुग्गा,बांस पर बैसल चिरई,मोरक जोड़ी सुग्गाक चोंच में एकटा पात रहैत छैक।कनियाक आगमन कोनो परिवारक संतानोत्पत्ति लेल पितृसत्ताक सुखद भविष्यक आशा जगबैत अछि।कोबर घर में जतेक चित्र रहैत अछि सब बर-कनियाक हित में चित्रित होइत अछि।हुनका दुनू गोटे के बीच प्रेम बढ़ैन आ संतानक संयोग बनै।गणेशजी के चित्रकारी सं लऽ कऽ भाँति-भाँति के लत्ती-फत्ती सं सजाओल जाइत कोबर जतेक सुन्नर लगैत अछि ओतबे गूढ़ अर्थ सेहो रखैत अछि।भगवान गणेश के विघ्न हर्ता मानल जाइत छैन ताहि कारण सं हिनकर चित्र बनाओल जाइत अछि।कमलक फूल आ कमलक पात सेहो बनाओल जाइत अछि।एहि फूलक विशेषताक आधार पर नव-दंपत्तिक सुखद जीवनक कामना कैल जाइत छैक।जीनगीक उतार-चढ़ाव के बीच ई कमलक समान दमकैत रहै एहेन कामना कैल जाइत छैक।कोबर में मंगल कलशक सेहो अपन महत्वपूर्ण स्थान छैक।कोबर घरक चारू कोण में केराक गाछ लगबै के परंपरा रहल अछि,जे कदली वन में योग या साधना के प्रतिबिंबित करैत अछि।एकर अलावा कतेको प्रकारक फूल आ चिरई सेहो बनाओल जाइत अछि जे अपन-अपन विशेष महत्व राखैत अछि।