– प्रवीण नारायण चौधरी
अजीब दुनिया ई देखू
मनुखे मनुक्खक यम छै!
मरला पर के देखय मृत्यु केँ
जिबिते भेटय यम छै!
कि देखबय लेल चाहय छै ओ
केकरो एना मारिकय?
कि ओ नहि मरतय कहियो
ओकरो मृत्यु त तय छै!!
बुझितो सबटा माया खेला
लोक लौकिकता दौड़ छै!
विरले हँसय छै मने-मने
जीवन ओ निर भय छै!!
हारले जे मानय छै सदिखन
जीतो ओकर तय छै!
जे जमीन बैसि रहे ई जीवन
वैह बनय अ जय छै!!