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“मिथिलामे दहेजरूपी अभिशाप के मूल कारण”

— कृति नारायण झा।                 

मिथिला मे दहेज रूपी अभिशाप केर मूल कारण शिक्षाक अभाव के देल जा सकैत अछि। प्राचीन काल मे विशेष रूप सँ कन्या शिक्षा पर अपन सभक समाज ध्यान नहिं देलखिन्ह। कन्या शिक्षा के प्रति उदासीनताक प्रभाव समाज पर एतेक खराब पङलैक कि लोक अयोग्यता केर झांपवाक लेल दहेज रूपी रूपया पैसा आ घोङा गाङी के लेन-देन आरम्भ कऽ देलनि । कन्या के माता पिता के मुँह सँ ई सुनि जे बेटी के पढा लिखा कऽ कोन फायदा जखन कि ओकरा सासुर जा कय चुल्हा चौकी करय पङतैक? अर्थात् कन्या के अपन सासुरक भनसियाक पद प्रदान कयल जाइत छलैक। कन्या शिक्षा पर पाई खर्च कऽ कऽ पुनः दहेजक इन्तजाम कन्याक पिता के लेल बहुत कष्टकारी होइत छलैक। धीरे-धीरे समाज केर बिचार धारा में परिवर्तन एलैक। लोक कन्या शिक्षाक महत्व के बुझनाई आरम्भ कयलनि। एकटा पुत्र केर शिक्षित भेला सँ एकटा परिवार शिक्षित होइत छैक जखन कि एकटा पुत्री केर शिक्षा दू टा परिवार के अर्थात् सासुर आ नैहर दुनू के शिक्षित करैत छैथि। पुत्र केर शिक्षाक प्रभाव ओकर माता पिता पर मात्र पङैत छैक जखन कि एकटा कन्याक शिक्षाक प्रभाव ओकर माय बापक अतिरिक्त ओकर सासु ससूर आ धिया पूता पर सेहो प्रत्यक्ष रूप सँ पङैत छैक। कन्या शिक्षाक एहि दीपक के प्रज्वलित भेला सँ सामाजिक कुरीति के समाप्त भेनाइ स्वभाविक छल। आब ई स्थिति भऽ गेल छैक जे कोनो क्षेत्र मे कन्या बालक सँ पाछू नहिं छैथि। आब अपन सभक समाज मे ई स्थिति भेल जा रहल छैक जे दहेज के तऽ कोनो बाते नहिं नीक कनियाँ भेटनाई मुस्किल भेल जा रहल छैक। नेनाकाल मे हम सभ अपन पिताक मुंह सँ सुनैत छलहुँ जे जेना नीक लङका भेटनाई मुस्किल छैक तहिना नीक कनियाँ भेटनाई सेहो मुस्किल छैक। हम सभ एकर अर्थ नहिं बुझैत छलियै। बाद मे जखन परिवारक पुतोहु सभक आचार ब्यवहार के सम्बन्ध में ज्ञात भेल गेल एकर महत्व के बुझनाइ आसान भेल गेल। वर्तमान परिदृश्यमॆं दहेजक प्रभाव अपना सभक ओहिठाम दिनानुदिन कम भेल जा रहल छैक कारण शिक्षा आ जागरूकता रूपी प्रकाश पूंज एकटा नव दहेज मुक्त समाज के अन्हार सँ इजोत के दिस जयवाक संकेत प्रदान कऽ रहल अछि। हमरा हिसाबे सरकारी कानून तावत धरि सक्रिय नहिं भऽ सकैछ जा धरि हम सभ अपन मानसिकता में परिवर्तन नहिं लायब आ ई परिवर्तन कोनो एक आदमी के नहिं अपितु समस्त समाज के अपनावय पङतैन्ह। जखन हम समस्त समाज एहि दहेज रूपी अभिशाप के हेय दृष्टिये देखय लागब, एकरा भीख बुझय लागब, एहि सामाजिक कुरीति केर अन्त अवश्य होयत। हमरा लोकनि सदैव सकारात्मक सोच के पक्षधर रहलहुं अछि तेँ एहि सोच के आधार पर कहल जा सकैत अछि जे अनहरिया राति केर बाद सूर्योदय अवश्य होयत जाहि मे एकटा सभ्य समाजक निर्माण होयत। बेटा बेटी के एक दृष्टि सँ देखल जेतैक। बेटी आ पुतोहुक स्नेह स्थान समान हेतैक।

जय मिथिला आ जय जानकी।

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