विचार
– विभूति आनन्द

आइ रंजू मिश्र, सुनीता हेमा आ कल्याणी झाक समदाउन-गायनक संग ई कार्यक्रम संपन्न भ’ गेल. आजुक बाद तें ई संस्कृत विश्वविद्यालय परिसर आने दिन जकाँ पुनः उदास भ’ जायत. एक द्वार छोड़ि दुनू विश्वविद्यालयक सभटा प्रवेश द्वार फेर सँ बंद भ’ जायत. फेर तँ ‘दरवार हॉल’क ऐश्वर्य हमरा सभसन आमजन लेल बर्जिते रहत…।
हमरालोकनि अदौ सँ छिद्रान्वेषी, से एहू आयोजन मादे देखल, सूनल आ फेसबुक पर पढ़ल. ईहो कोनो नब गप नहि लागल. मुदा ई धरि कचोट अवश्य भेल जे नई दिल्ली सँ आयलि एक महिला अपन एक नब सोच संग नब-नब विषयक भरि-भरि चंगेरा संदेश अनलनि, हम सभ तकर उपभोग नहि क’ सकलहुँ ! भ’ सकैत अछि, एहि आयोजन केर लगभग पूरा कार्यकर्ता ओ अपन संगहि अनने छलीह, सदिखन ‘टची’ दरभंगाक मिथिला, मैथिल, मैथिलीक ध्वजवाहक लोकनि कें से ने अखरि गेल होनि ! मुदा हर्षित कर’वला ई पक्ष हमरा सभ गौर नहि क’ सकलहुँ जे ई आयोजन नारी-शक्ति द्वारा आयोजित छल आ जकर लगभग सभ टा कार्यकर्ता महिला छलीह ! आ ताहि मे प्रमुख जेना स्नेहा, किरण, ज्योति, निवेदिता कें अपस्याँत देखैत एना लगैत रहल जे ई जेना हुनका सभक अपन परिवारक करतेबता होनि !
मुदा हमरा सभ ओहि शक्ति कें आशीर्वाद देब’ सँ जेना चुकि गेलहुँ ! तें तँ हमर जे आकलन अछि जे हमरा सभ अपन भाषा-भूमि, सभ्यता-संस्कृति सँ सदा-सदाक लेल मुक्त भ’ चुकल छी. एहि आयोजनक एतेक दुर्बल उपस्थिति तकर प्रमाण दैत रहल.

जानी जे ई एक अंतरराष्ट्रीय आयोजन रहय. एहि मे बहुत रास विषय-विमर्श समाहित छलय. अर्थात मिथिला कें एक धरोहर-भूमि कहल जाइत रहल अछि. तकर बादो आइ हम सभ अपन जड़ि सँ कटि रहल छी, कटि चुकल छी. वस्तुतः ई तकरे फेर सँ जड़ि संग जोड़बाक एक पैघ सेहंता संग छोटछीन चेष्टा मात्र छल खान साहिबाक. जाहि मे दर्जनाधिक सत्र छल आ जे आजुक समयक अनिवार्यता सेहो थिक…।
तखन सभ टा कार्यक्रम कें देखि पायब संभव नहि छल, कारण आयोजन चारि स्थान पर विभक्त छल, आ जकर सहजे जनतब कठिन छल. आयोजक-सदस्य सँ मँगला पर एकटा ‘ब्रॉसर’ प्राप्त भेल, मुदा ओ अंततः हमर ज्ञान-समझ सँ बाहर रहल…।
बाद बाँकी आर जे त्रुटि छल तकर उपराग हम एकर परिकल्पक सविता जी कें देलियनि. किंतु हुनक उत्तर हमरा लेल चौंकब’ बला रहय ! ओ हमरे सँ पूछि देलनि– ‘अहाँ के त’ पहिल दिन नै देखलौं !’
– ‘हमरा बुझले नहि छल. ओ तँ साँझ मे फेसबुक पर किनको पोस्ट सँ ज्ञात भेल…’ हमर असहज उत्तर छल.
– ‘अहाँ एत्तै छिऐ ? हम त’ अहाँक खोज कयने रही, मुदा अहींक एक अप्पन लोक कहलनि जे आब ओ एत’ नै छथि !’ ओ मूल गप पर अयलीह.
हमर ई संक्षिप्त सन उत्तर भेल– ‘हम नै पूछब जे हमर ओ ‘अप्पन लोक’ के रहथि ! मुदा हमर उत्तर ई अछि जे एत’ क्यो अप्पन नै छै ! आ जकर प्रमाण फेस्टिवलक आमजनक सहभागिता अछि !…’
ओ अपन चिरपरिचित मुस्की दैत चुप भ’ गेलीह. नहि जानि किएक !
ओना आइ तँ ई उत्सव समाप्त भ’ गेल. तें सोचैत छी, जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल सँ राजस्थानक गौरव बढ़लैक अछि, मुदा से नहि जानि एहि प्रसंग बिहारक महत्व कतेक बढ़लै ! किएक तँ एकर आयोजन रुग्ण-शहर दरभंगा मे भेल. कारण, नेपथ्य कथा ई जे 13 कें कमसम, मुदा 14 केर राति भोजन बेर हम मैथिलजन द्वारा ‘गृहे शूरा रणे भीता…’ केर दृष्टांत प्रस्तुत कर’ सँ अंततः नहि चुकलहुँ…
… आ हम रिक्शा ध’ अपन डेरा दिस विदा भ’ गेलहुँ. ठोर पर एकटा लोकोक्ति मुदा उचरैत रहल– ‘इएह बुड़िबरही गाम कमयताह…’।
… रिक्शा गतिमान अछि. चालक कें नहि छै मतलब जे एत’ की होइत छलै. प्रायः आमजनकें सेहो कोनो मतलब नहि छलै.
कि तखने हमरा अंदर सँ जेना हमरे पर करैत व्यंग्य-स्वर बहराय लागल – हम तँ मिथिला राज्य ल’ क’ रहबै… हमरा मातृभाषा माध्यम सँ पढ़ौनी चाही… अहाँ सभ जनगणना मे मैथिली लिखाउ… हम छी अंगिका, बज्जिका, ठेठी, सूर्यापुरी छी हम, मैथिली नहि…।
सूचनार्थ जे काल्हिये ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालयक स्नातकोत्तर नाटक एवं संगीत विभाग द्वारा ‘अंगिका लोक उत्सव’ केर शुभारम्भ भेल छल…।