वाणीक पवित्रता – भाषिक शुद्धताः शुद्ध आ परिष्कृत बोलीक आवश्यकता

वाणीक पवित्रता – भाषिक शुद्धता
 
वाणी (बोली) बड पैघ कारक तत्त्व होइछ जे सकल मानव जीवन केँ प्रभावित करैछ। वाणीक शुद्धता सँ शरीरक स्वास्थ्य, मनक विचार आ सत्संग केर प्राप्ति संग सुख-सम्पत्ति सब बात लेल जिम्मेदार होइछ। आर ईहो सच जे वाणी जतेक परिष्कृत होयत ततेक उच्चस्तरक जीवनशैली प्राप्त होयत। व्याकरणक ज्ञान यैह कारण बहुत जरूरी कहल गेल छैक। जाहि भाषा मे व्याकरणक समुचित उपयोग नहि होइछ ओहि भाषा केँ भाषा के दर्जा नहि अपितु बोली मात्र कहल जाइछ। आर ईहो सच जे हरेक भाषा मे विभिन्न बोली भेल करैछ।
 
जखनहि व्याकरणक मानक सँ नीचाँ उतरब, ओ बोली मे परिणति पाबि जायत। बोली मे भिन्नता यैह कारण देखल जाइछ जे ओ कोनो निश्चित व्याकरण केँ अनुसरण कएने बिना बाजल जाइछ। एक्के गाम मे भिन्न-भिन्न जाति-समुदायक बोली मे भिन्नताक वैज्ञानिक कारण यैह थिकैक, अपन घर मे जाहि शैली मे ओकर वाणी निकलैछ, आदति पड़ि जेबाक कारण बेसीकाल यैह बोल ओकरा बाहरहु निकलल करैछ। आ जँ कनेक पढ़ल-लिखल आ समाज मे प्रचलित मानक अनुसारक भाषा-बोली बाजब आबि गेल छैक त ओ भरपूर प्रयास करत जे कतय, केना आ कोन बोली बाजी। तथापि, आदति अनुसार ओकर भाषा मे घरैया बोली स्वाभाविक रूप सँ मिश्रित भऽ जायत। जेना हम मैथिलीभाषी एतय नेपाल मे नेपाली भाषा बजैत छी जाहि मे स्वतःस्फूर्त ढंग सँ १०-२०% मैथिली मिश्रित भऽ गेल करैछ।
 
वाणीक शुद्धता लेल व्याकरणक ज्ञान आ समुचित शिक्षा संग उच्चवर्गीय समाज सँ अन्तर्सम्बन्ध बनेबाक संस्कार बहुत आवश्यक छैक। कम सँ कम वर्ण भेद, शुद्ध उच्चारण आ ताहि अनुसार शब्द निर्माण सँ वाक्य निर्माण धरिक आधारभूत प्रक्रिया जँ बुझल रहत त बाकी बात सेहो धीरे-धीरे बुझि जेबैक। वाणीक महत्व केँ नीक सँ मनन करबाक लेल सनातन परम्परा मे संस्कृत मंत्र सँ अन्य लौकिक मंत्र धरिक उच्चारण आ एकर लाभ केँ देखल जाउ। मृत्यु केँ टारय लेल पर्यन्त शास्त्र द्वारा मंत्रक विधान कहल गेल अछि। ‘महामृत्युञ्जय मंत्र’ एहने अचूक मंत्र थिक। एतेक रास स्तुति, स्तोत्र, छंद, काव्य सभक विधान कहल गेल अछि आर ताहि सभक एक निश्चित माहात्म्य सेहो वर्णित अछि।
 
पूज्य गुरुदेव कहल करैत छथि जे एहि वाणीक शुद्धता आ मंत्र-शक्ति सँ ओ केहनो विष केँ झाड़ि सकैत छथि, सिवाये नागविष के। एक बेर चलिते-चलिते किछु विशिष्ट मंत्रक ज्ञान विशेष काल मे प्रयोग करय वास्ते दीक्षा देलनि। कहने रहथि जे केहनो तेज बुखार आ कि माथ-दर्द या बेचैनी आदि रहत, एहि मंत्र केर प्रयोग कयला सँ ओकरा ठीक कयल जा सकैत अछि। हमर जीवन मे एहि तरहक सैकड़ों प्रयोग हम करैत आयल छी। मात्र नामजप केर अनेक लाभ कहल गेल अछि, देखिते छी हम-अहाँ जे कोना जगह-जगह पर नाम-कीर्तनक आयोजन कयल जाइत रहैत अछि निरन्तर। कहबाक तात्पर्य ई अछि जे शुद्धता नहि केवल शारीरिक क्रिया लेल बल्कि मानसिक आ वाचिक क्रिया लेल सेहो आवश्यक अछि। यैह शुद्धताक वास्ते परम्परा सँ लोक पुरोहित बजाकय पूजा-आराधना कयल करैछ। एहि मादे ई महावाक्य सँ सब कियो परिचिते होयब –
 
‘पितरो वाक्य मिच्छरिन्त, भाव मिच्छन्ति देवता’
 
पितर लेल शुद्ध मंत्र आवश्यक होइछ, ओ सब अशुद्ध मंत्र सँ अर्पित कोनो दान-अर्पण प्राप्त नहि कय सकता। मुदा देवता लेल भाव शुद्ध होबक चाही। देवता भावहि सँ तृप्त भऽ गेल करैत छथि।
 
एहि जीवन मे सेहो अहाँ कतेको लोक केँ जनैत छी जे भाषाक ज्ञान आ बजबाक शैली जतेक शुद्ध आ परिष्कृत होइत छन्हि हुनकर जीवन सेहो ओतबे उच्च, पवित्र आ समाजोपयोगी होइत छन्हि।
आइ-काल्हि मैथिली पर तरह-तरह के आरोप लगायल जा रहल अछि। कहल जाइछ जे ई उच्चवर्गीय एकल जातीय मानक पर आधारित अछि। ईहो बात सच जे शिक्षा-संस्कार मे अग्रसर जातिक बोली-भाषा स्वाभाविक रूप सँ कोनो समाज मे अगुवाई करैत छैक। भाषाक विकास मे बौद्धिकता योगदान कोनो अप्राकृतिक नहि। तखन त वर्तमान समय राजनीतिक आवोहवा मे ब्राह्मण विरोध केर स्वर मुखर हेबाक कारण आब भाषा, साहित्य, संस्कृति आ परम्परा केर विरोध होयब सेहो ओतबे सम्भव छैक जतेक कि जाति-विरोध। परञ्च सोचयवला बात ई छैक जे नहि ब्राह्मण (अथवा समकक्षी उच्च, सुशिक्षित, सुसंस्कृति जाति-समुदाय) त दोसर के? कियो त नेतृत्व गछय। अराजकताक स्थिति मे समाज केँ लऽ गेनाय कतेक उचित?
 
हरिः हरः!!