- — आभा झा।
मिथिला देशक नरेश जनक के महल में पलल-बढ़ल माता जानकी के चरित्र परम गौरवशाली अछि। सीता जी मातृ-स्वरूपा छथि। हम हुनकर श्रीराम जी के संग वनवासक प्रसंग सं प्रभावित भेल छी। पति-पत्नीक संबंधक बीच तनाव के स्थिति तखन उत्पन्न होइत अछि जखन ओ अपना आपके बेसी महत्व देबऽ लगैत छथि। पति खुद के श्रेष्ठ व स्त्री खुद के श्रेष्ठ बुझय लागैत छथि। अहि सं दुनू के बीच दरार उत्पन्न भऽ जाइत अछि। वैवाहिक जीवन में एक-दोसर के प्रति समर्पण भाव के भेनाइ बहुत जरूरी छैक।समर्पण यानी खुद के सुख-सुविधाक नहीं बल्कि जीवन साथी के सुख के महत्व देनाइ उचित होइत अछि। और जखन पति-पत्नीक बीच समर्पणक कमी होइत अछि तखने हुनकर बीच प्रेम खत्म भऽ जाइत अछि। मानव के कर्म कांड सं अवगत करय के लेल भगवान सेहो अहि पृथ्वी
लोक में अवतार लेने छलाह। रामायणक माध्यम सं श्रीराम और सीता जी एक दोसर के प्रति पूर्ण रूपेण समर्पण भाव बतायल गेल अछि अहि कारण सं हुनकर वैवाहिक जीवन आदर्श मानल गेल अछि। अहि गृहस्थ जीवन के व्यतीत करय वाला व्यक्ति के आपसी सामंजस्य बना कऽ रहबाक चाही,यदि पति के कोनो समस्या अछि तऽ पत्नी हुनकर संग देथिन और यदि पत्नी के कोनो समस्या अछि तऽ पति हुनकर संग देथिन हुनकर संग निभेथिन यैह आपसी तालमेल हेबाक चाही। कनी-कनी बात पर उलझनाइ,अशांति उत्पन्न केनाइ अहि सबहक अहाँक जीवन में गलत प्रभाव पड़ैत अछि। अहि के चलते वास्तविकता सं जुड़ल ई प्रेरक प्रसंग-
जखन भगवान श्रीराम के देल गेल वचन के लऽ वनवास जेबाक छलनि तखन ओहि समय हुनकर इच्छा छल जे सीता जी माँ कौशल्या के लग में रहैथ। जखन कि सीता श्रीरामक संग वनवास जाय चाहैत छलीह। कौशल्या माँ सेहो यैह चाहैत छलीह कि सीता जी वनवास नहिं जैथ ओ अहि राजमहल में हुनका संग रहैथ। अहि तरह सीताक इच्छा और श्रीराम कौशल्याक इच्छा अलग-अलग छलनि। आइ के समय में साउस,पुतौह और बेटा अहि तीनूक बीच मतभेद भेला सं परिवार में तनाव बढ़ि जाइत अछि मुदा रामायण में श्रीरामक धैर्य,सीताजी और कौशल्याक समझ सं सब मतभेद दूर भऽ गेल। श्रीराम जी सीता के बुझेलखिन कि वन में कतेक तरहक कष्ट के सामना करय पड़त। ओतऽ भयंकर राक्षस,सैंकड़ो सांप होयत,वनक रौद,जाड़ और वर्षा सेहो भयानक होइत अछि। समय समय पर मनुष्य के खाइ वाला जानवरक सामना करय पड़त,तरह-तरह के विपत्ति आबि जायत। एतेक बुझेला के बादो सीताजी नहीं मानलखिन और वनवास जेबाक लेल श्रीराम और माता कौशल्या के मना लेलनि। सीताजी श्रीरामक प्रति समर्पण भाव देखेली और अपन जीवन साथीक संग ओहो वनवास बिदा भऽ गेली। समर्पणक एहि भाव के वजह सं श्रीराम और सीताक वैवाहिक जीवन आदर्श मानल गेल अछि। भगवानक अवतारक ई घटना सब हमरा सबके नीक संदेश दैत अछि। प्रत्येक वैवाहिक व्यक्ति के चाही कि ओ अपन जीवन साथी व परिवारक सदस्यक संग मिल-जुलि कऽ रहैथ आपस में यदि किछ अशांति या झगड़ा भऽ गेल हुए तऽ ओकरा अपने सुलझा ली। आपस में प्रेम व सद्भावना सं जीवन व्यतीत करी व एक दोसर के साथ निभेनाइ ही एक सफल वैवाहिक संबंध मानल गेल अछि। सीता माँ के जीवन दर्शन आइ के समाज के यैह सीख दैत अछि कि-एक सच्ची पतिव्रता स्त्री कखनो अपन चरित्र और स्वाभिमान पर लांछन नहिं लागऽ दैत छथि।
जय मिथिला जय जानकी ।
आभा झा
गाजियाबाद