— आभा झा।
मिथिलामें _विवाहक _विध
मिथिलांचलक वैवाहिक रीति-रिवाज कनि अलग होइत अछि। अहि में कोनो शक नहिं कि मिथालावासी शुरू सं बड्ड उदार रहल छथि। राजा जनक सीताजीक अपन योग्य वर चुनय के लेल स्वयंवर केने छलाह। अहाँ के जानि कऽ आश्चर्य होयत कि मिथिलाक लोक सदियों सं शादी-विवाह में वैज्ञानिक पद्धति के अपनेने छथि। अपन सबहक मिथिलाक विवाहक विध-
व्यवहार काफी लंबा होइत छैक। अहि विध-व्यवहार में- आज्ञा डाला,वरक परिछन,नैना जोगिन,कन्या निरीक्षण,बेदी परहक विध,ओठंगर कुटनाई,कन्यादान एवं विवाह यज्ञ,लाजावाहन,शीला रोहण,अभिषेक,
सिन्दुरदान,गठजोड़ी,स्नेहबंधन,घोघट,चुमाउन,दुर्वाक्षत,नगहर तथा विवाहक दोसर दिन- मऊहक,दुर्वाक्षत आ चुमाउन ई प्रतिदिन चतुर्थी तक होइत अछि। भरि साल विध सब होइते अछि। चतुर्थी,दनहि,वर विदा,
द्विरागमन आइयो मिथिला में वर वधूक मातृ व पितृ पक्षक सात पीढ़ीक बीच रक्त संबंधक ख्याल राखल जाइत अछि। सगोत्री यानी समान रक्त भेला पर विवाह नहिं होइत छैक। रक्त संबंधक पड़ताल केला के बाद विवाहक संस्तुति कैल जाइत छैक,जकरा मिथिला में सिद्धांत कहल गेल अछि। विवाह सं पूर्व वरक स्वास्थ्य परीक्षण कैल जाइत छैक जकरा मिथिला में ‘परिछन ‘कहल गेल अछि। अहि में वर में कोनो शारीरिक दोष तऽ नहिं ई देखल जाइत अछि। तहन विधकरी द्वारा परिछनक दौरान हुनका सं गृहस्थ जीवनक व्यवहारिक प्रश्न पुछल जाइत अछि। मिथिला में गीतनादक परंपरा अद्भुत अछि। ई परंपरा वर-वधू के एक-दोसर सं जोड़ै
में अहम भूमिका निभबैत अछि। फेर कोहबर में नैना- जोगिन जाहि में भावी पत्नी और साइर के बिना देखने एक के चुनल जाइत छैक। अहि में लोकक बहुत मनोरंजन होइत छैक संग में वरक पारखी नजरि समझ में आबैत अछि। ओहि के बाद समाज आ परिवारक लोक सब संग मिलि कऽ ओठंगर कुटल जाइत छैक यानी पूरा समाजक स्वीकृतिक संग गृहस्थ जीवन में प्रवेशक अनुमति भेटैत अछि। चाहे ओठंगर कूटनाई हो या भाईक संग मिलि कऽ धानक लावा छिरीयेनाइ ई सब रिवाजक पाछू कोनो ने कोनो व्यवहारिक तर्क होइत छैक। फेर आमक कांच लकड़ी प्रज्वलित कऽ ओहि के समक्ष मंत्र द्वारा विवाह संपन्न होइत छैक ओहि अग्नि पर ओठंगरक धानक चाउर व खीर बनाओल जाइत छैक अर्थात गृहस्थी में पूर्ण सहयोगक तैयारी। वधुक प्रथम सिन्दुरदान अलग सिंदूर (भुसना)
सं कैल जाइत छैक। अहि विवाहक बाद वर-वधू कोहबर में जाइत छथि। कोहबर के खूब नीक सं चित्र द्वारा सजाओल जाइत छैक। जाहि में सांकेतिक रूप में गृहस्थ जीवनक महत्व दर्शायल जाइत अछि ।कोहबर में विधकरी वधू के लऽ कऽ आबैत छथि और वर-वधूक झिझक के तोड़ई के माध्यम बनैत छथि। अगला दिन यैह क्रम चलैत अछि,अहि तीन दिनक दौरान वर-वधूक भोजन में नोन नहिं खुआयल जाइत छैक,ताकि इन्द्रियां शिथिल रहैन। वर-वधू एक-दोसर के भली-भांति बुझि लैत छथि। असल विवाह चारिम दिन होइत छैक। पहिने कन्या अपरिपक्व होइत रहैथ तऽ वर किछ दिन सासुर में रहि जाइत छलाह ताकि कन्या के अनचिन्हार माहौल में असुविधा नहिं होइन। कखनो-कखनो तऽ साल भरि या ओहि सं बेसी दिन तक लड़की नैहर में रहैत छलीह। अहि दौरान साल भरक तीज-त्योहारक लेल उपहार अबैत रहैत छल। अंत में सुविधानुसार कन्याक विदाई जकरा द्विरागमन कहल गेल अछि होइत छलनि। आबक विवाह में कन्या पूरा परिपक्व रहैत छथि तैं द्विरागमन सेहो जल्दी भऽ जाइत अछि।
आब लोक अहि विवाह में सेहो बाहरी लोकक देखसी करय लागल छैथ। अपन परंपरा के छोड़ि आनक अपनेनाइ शुरू कऽ देने छथि। अंत में हम यैह कहब कि अपन परंपरा के कखनो नहिं बिसरी एकरा कायम राखि। कोनो त्रुटि भेला सं क्षमा करब।
जय मिथिला जय जानकी