अपन मातृभाषा केर महत्व की?
मातृभाषा पर बहुत रास लेख अछि। हमर आग्रह जे एक बेर आर्ट अफ लिविंग श्री-श्री रविशंकर संग वार्ता पर आधारित एहि लेख केँ जरूर पढू। लिंकः https://www.artofliving.org/in-hi/wisdom/why-is-it-important-to-learn-mother-tongue
मातृभाषा सँ लोक केँ जे पहिचान भेटैत अछि वास्तव मे वैह आत्मसम्मान सेहो प्रदान करैत अछि। लेकिन दुर्भाग्य सँ आइ मिथिला जेहेन विशिष्ट सभ्यताक निवासी मे अपनहि मैथिली सँ दूरी बढि रहल अछि, आर ओ नेपाल मे नेपाली भाषा आ हिन्दुस्तान मे हिन्दी भाषा के पाछू जोरदार ढंग सँ भागि रहल अछि।
एहि सँ ओ स्वयं केँ प्रथम दर्जाक नागरिक सँ दोसर दर्जाक नागरिक बना लैत अछि। जीवन भरि ओ दोसरहि केर भाषा मे सम्मान लेल ओहिना दौड़ैत रहैत अछि जेना मरुभूमि मे मृग (हरिन) प्यास मेटाबय लेल दूर रेत (बाउल) मे पानि के भ्रम बुझि दौड़ैत अछि, मुदा पानि नहि भेटि पबैत छैक आ ओ फेर ओतय सँ किछु दूर पर ओहिना पानि देखैत आ दौड़ैत अछि, एहि तरहें ओकरा प्यास सँ कंठ जरैत रहैत छैक, अन्त मे ओकर दुखद अन्त भऽ जाइत छैक। बिल्कुल तहिना होइत छैक अपन मातृभाषा छोड़ि आनक भाषा मे सुख-चैन केर ताकब!
उदाहरण हम-अहाँ अपन चारूकात ओहेन लोक केँ जरूर देखी जे पहिने त सऽखे अपन बच्चा केँ अपन भाषा सँ दूर करैत अछि, आर जखनहि ओ बच्चा पैघ भऽ जाइछ त ओकरा अपन भाषाक लोकगीत आ अपन भेषभूषा आ संस्कृति-पहिचान सँ इतर आन भाषाभाषीक भेषभूषा-संस्कार मे जेबाक मोन होइत छैक, जतय ओकरा स्वीकार करबाक कोनो मनसाय नहि रहैछ आ ओकरा एहि तरहें ‘दोसर दर्जा’ के नागरिक मानि अवहेलित अवस्था मे रहय पड़ैत छैक।
आब ओहेन लोक नहिये अपन घर-वापसी कय पबैत अछि आ नहिये आन भाषा-भेष मे ओकरा स्वीकृति भेटि पबैत छैक, ओ बिल्कुल प्यासल हरिन जेकाँ दुखद अन्त केँ प्राप्त करैत अछि।
अतः समय सँ चेतू आ अपन मातृभाषा – जे भाषा जन्मकाल सँ अपन माय व परिवेश सँ प्राप्त करैत छी, जाहि मे अपनत्व भेटैत अछि, अपनापन रहैत अछि, ताउम्र ओहि मे रहैत अपन सभ्यता केँ आगू बढेबाक अचि, ओकरा जरूर सम्मान करू।
शिक्षा सेहो वैह उपयोगी होइछ जेकर शुरुआत मातृभाषा मे होइत छैक। शहर आ गाम के बीच मे भाषा-भेष-भूषण लेल हीनताबोध केँ रोकू, एकरा जानि-बुझिकय बढेनिहार केँ बहिष्कार करू।
विदित हो जे हर देश के संविधान आ सरकार सदिखन ‘मातृभाषा’ मे शिक्षा प्राप्ति लेल मौलिक अधिकार प्रदान करैत छैक। नेपालहु मे बहुतो वर्ष धरि एकल भाषा के विपरीत आ प्रतिकूल अवस्था रहितो, पछाति काल मे सभक मातृभाषा केँ राष्ट्रीय भाषा होयबाक सम्मान देल गेलैक अछि आर स्थानीय पाठ्यक्रम मे कम सँ कम मातृभाषाक पढाई, अपन निजता (स्थानीयता) केर सम्बन्ध मे बच्चा-बच्चा केँ पढ़बाक अवसर भेटैक ताहि लेल हरेक गाउंपालिका, नगरपालिका, जिला, निजी विद्यालय आदि सब केँ अनिवार्य रूप सँ स्थानीय पाठ्यक्रम लागू करबाक लेल निर्देशन देल गेल छैक। अपन-अपन विद्यालय मे, सम्बन्धित निकाय मे एहि बात लेल सब कियो सजग होउ आ बाल-बच्चाक सर्वाङ्गीण विकास केर स्थिति मजबूत करू।
हरिः हरः!!