मैथिली भाषा लेल चिन्ता आ चिन्तन – भाषिक एकरूपता कोना बनत

मैथिली लेखन मे एकरूपताक अभाव कोना दूर हो?

 
 
भाषा-विमर्श मे अक्सरहाँ ई चर्चा कयल जाइत अछि जे मैथिलीक कतेको रास शब्द अलग-अलग लेखक द्वारा अलग-अलग हिज्जे मे लिखल जाइछ। एहि सँ पाठक भ्रमित भेल करैत अछि आर मैथिलीक पठनीयता मे कतहु न कतहु कमी एबाक किंवा एकर अध्ययन मे लोकक रुचि घटि जेबाक सेहो एक प्रमुख कारण मानल जाइत छैक। जाहि कोनो भाषाक मानक स्थापित नहि भेल हो त एहि तरहक लेखनीक विभिन्नता स्वाभाविक सत्य थिकैक। उदाहरण लेल ‘राष्ट्रिय’ आ ‘राष्ट्रीय’। सही त दुनू छैक। जे राष्ट्रिय बजैत समय मृदुल ध्वनि मे बजैत अछि, स्वाभाविक छैक जे ओ ह्रस्व स्वर केर मात्राक प्रयोग करत। एकर ठीक विपरीत ‘राष्ट्रीय’ बजबाक समय दीर्घ ई केर प्रयोग अनुसार उच्चारण सेहो दीर्घहि रूप मे होइछ। एहेन-एहेन हजारों शब्द अछि जे हम भारत आ नेपाल केर लेखक द्वारा अलग-अलग वर्तनी मे प्रयोग होइत देखि रहल छी।
 
महाकवि लालदास रचित मैथिलसाम्प्रदायिक दुर्गासप्तशतीक टीका पढि रहल छी। लगभग १०० वर्ष पूर्वहि प्रकाशित हुनक एहि पोथी मे हिज्जे आ शब्द लेखनशैलीक प्राचीन रूप देखि आजुक लेखन पद्धतिक तुलना कय चकित होइत छी। तखन त हरेक भाषाक लेल विज्ञ-विद्वान् सब निर्णय कयल करैत छथि जे आखिर लेखन पद्धतिक कोन रूप अपनेबाक चाही, जेना आन-आन भाषा ई काज कएने अछि।
 
उच्चारण आ वर्तनीक परिभाषा
उच्चारण – मुंह सँ अक्षर केँ बाजब उच्चारण कहाइत अछि। सब वर्ण केर मुंह मे उच्चारण स्थान होइत छैक। यदि वर्ण केर उच्चारण शुद्ध नहि कयल जाय, त लिखय मे सेहो अशुद्धि भऽ जाइत छैक। एकरा जहिना बाजल जाइत अछि, तहिना लिखलो जाइत अछि।
वर्तनी – लिखबाक रीति केँ वर्तनी या अक्षरी कहल जाइत छैक हिन्दी मे। मैथिली मे एकरा हिज्जे (Spelling) कहल जाइत छैक। कोनो भाषाक समस्त ध्वनि केँ सही ढंग सँ उच्चरित करबाक लेल वर्तनीक एकरूपता स्थिर कयल जाइत अछि। जाहि भाषाक वर्तनी मे अपन भाषाक संग अन्य भाषाक ध्वनि केँ ग्रहण करबाक जतेक बेसी शक्ति होयत, ताहि भाषाक वर्तनी ओतबे समर्थ बुझल जायत। तेँ वर्तनी केर सीधा सम्बन्ध भाषागत ध्वनि केर उच्चारण सँ छैक।
भारत सरकार केर शिक्षा मन्त्रालय द्वारा गठित ‘वर्तनी समिति’ १९६२ ई. मे जे उपयोगी और सर्वमान्य निर्णय कयलक हिन्दी लेल। ई पूरा आर्टिकल एहि लिंक पर पढ़ल जा सकैत अछि। लिंक – https://uptetblog.wordpress.com/%E0%A4%89%E0%A4%9A%E0%A5%8D%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A3-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%A8%E0%A5%80-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AD/?fbclid=IwAR1NAy-R-V21q3yIkOExAk3uedto-vu9NoDy_3YbZJZIICvkIt62hQLQPbc
 
हम स्वयं हिन्दी भाषा पढ़लहुँ। मैथिली सेहो कक्षा ९, १०, आई. कौम. आ बी. कौम. तक पढलहुँ। लेकिन सामान्यतया मैथिली आ हिन्दी दुनू मे एक्के रंगक लेखनशैली केर व्यवहार करैत-करैत एखनहुँ ओहने लिखबाक आदी बनि गेल छी मैथिली मे सेहो।
 
मैथिली मे एहि सँ भिन्न कोनो नियम छैक की?
ओना हमर विचार मे मैथिलीक लेख्यरूप मे स्थिरता एबाक लेल निम्न आवश्यक उपाय छैकः
 
१. योग्यजनक परामर्श समितिक गठन आ वैयाकरणिक दृष्टि संग लेखन लेल उपयुक्त सुझाव पर सहमतिक संग लेखन सिद्धान्तक परिमार्जित आ एकीकृत रूप केर घोषणा
 
२. उपलब्ध करायल गेल पाठ्यपुस्तक केर पुनर्सम्पादन आ प्रकाशन
 
३. संचारकर्मी व लेखक-साहित्यकार केर विभिन्न लेखादिक निरन्तर समीक्षा आ सम्पादन हेतु सुझाव
 
४. शिक्षाक हरेक स्तर पर उपलब्ध विभिन्न नव आ प्राचीन पोथी सभक आधार पर उपरोक्त सिद्धान्तक प्रतिपादन आ लोकोपयोगी उपायक केर अवलम्बन
 
५. व्याकरणक सामान्य नियम अनुसार सही उच्चारण आ सही हिज्जे (वर्तनी) केर प्रयोग पर आधारित लेखन सिद्धान्त, जे संस्कृत सँ लैत हिन्दी, नेपाली, बंगाली, आसामी, आदि विभिन्न भाषा मे समान रूप सँ लगैत छैक ताहि केँ पूर्णरूप सँ अनुकरण करब
 
काल्हि एकटा फेसबुक लाइव द्वारा जनकपुर मे आयोजित कोनो कार्यक्रम मे भाषा वैज्ञानिक डा. राम अवतार यादव केर भाषण सुनने रही। ओहि कार्यक्रमक आरो वक्ता सभक जिकिर आ किछु सन्दर्भ आदि सेहो हुनकहि श्रीमुख सँ सुनलहुँ। मैथिली मे मानक केर बात बिना कएने ‘एकरूपता सँ कल्याण’ केर सूत्र पर हुनका द्वारा हिन्दीक उदाहरण दैत भाषाक जीवन्तता आ विशेषता मे एहि बातक आवश्यकता पर जोर देल गेल छल। लेकिन उपाय कि बतौलनि? जे सब लिखि रहला अछि से करथु!! साहित्यकार सब पर ई भार छोड़ि देलखिन।
 
साहित्यकार सब मायक पेट सँ त साहित्यक ज्ञान आ लेखन मे एकरूपताक विशेष आशीर्वाद लय कय नहि आयल छथि, तखन एना साहित्यकार पर भार देनाय आ ई अपेक्षा कयनाय जे एकरूपता आबि जायत से कदापि सम्भव नहि छैक।
 
जे लिखित साहित्य मैथिली मे उपलब्ध छैक तेकरा पढिकय आ सामान्य व्याकरण सिद्धान्त केँ प्रयोग करैत मात्र एकरूपता आबि सकैत छैक। आब कियो ‘अछि’ केँ अइछ लिखता, कियो ऐछ लिखता, कियो अछी लिखता आ कियो मोबाइल केर एप्प सभक प्रयोग कय केँ अच्छी सेहो लिख देथिन त एहि सब मे कोनो एकटा केँ सही मानबाक काज कोनो विशेष समिति मात्र कय सकैत अछि। ओना साधारणतया कोनो भाषाक वर्तनी (हिज्जे) व्याकरणक साधारण नियम उच्चारण अनुसार वर्ण मे मात्राक प्रयोग सँ बनायल जाइछ। एहि अनुसारे मैथिलीक पास १०० वर्षक विशाल साहित्यिक भंडार रहितो बिना समुचित पढाई-लिखाई कयने सीधे मास्टर्स आ पीएचडी वला दावी कतेक सार्थक आ कतेक उचित, कतेक सम्भव?
 
मैथिलीभाषी जनमानसक दुर्दशा केहेन छैक जे ओकरा पास अपन कोनो राजकीय अधिकार छहिये नहि, ओ नेपाली अथवा हिन्दीक उपनिवेश मे जियय लेल बाध्य अछि। ओकर प्रारम्भिक शिक्षा सँ लैत उच्च शिक्षा धरि मे ओकर अपनहि भाषा केँ कतहु कोनो तरहक सम्मान देले नहि गेल छैक, नहिये ओ अपन भाषाक औपचारिक शिक्षा पाबि कोनो बड़का तीर मारि सकैत अछि, न कोनो विशेष रोजगार पाबि सकैत अछि, आ नहिये आनहि कोनो तरहक प्रतिष्ठार्जनहि कय सकैत अछि, तखन एहेन कोन आधार छैक जे लोक मैथिली भाषा केँ अपनाबय आ ओहि मे सम्बन्धित समस्त सरोकार केँ सम्बोधन करय? तखन त विभिन्न संघ-संस्था नाम लेल विमर्श आ चिन्ता प्रकट कय आत्ममुग्धता सँ भरल विभिन्न विद्वानक श्रीमुख सँ लल्लो-चप्पो सुनिकय अपन मोन मना लेल करैत अछि, बस मैथिलीक कल्याण एतबहि सँ भऽ गेल बुझैत अछि। पूर्वहु मे मैथिली भाषाक कार्य लेल दरभंगा महाराज एकटा विद्वत् परिषद् गठन कएने छलाह, कल्याणी फाउन्डेशन बनाकय बहुत रास महत्वपूर्ण प्रकाशन जाहि मे शब्दकोश मैथिली-हिन्दी‍-अंग्रेजी सेहो पड़ैछ, से सब भेल छल। लेकिन राज्य द्वारा उपेक्षित रहबाक कारणे आ बहुत बाद मे संघ लोक सेवा आयोग मे मैथिली केँ मान्यता भेटला सँ लगभग २ दशक सँ मैथिली उत्थान आ विकास नव रूप मे बढि रहल अछि, से बढैत रहत। हम आश्वस्त छी। हल्ला-हुच्चर सँ अलग सृजनक संसार मैथिली केँ बहुत आगू लय कय जा रहल अछि, कम्प्यूटर क्षेत्र मे सेहो अनेकों भाषा-आधारित तकनीकी विकास सब भऽ रहल अछि से सुखद पक्ष थिक।
 
हरिः हरः!!