भीड़ जुटाउ राजनीति चमकाउ
एहि मे कतहु दुइ मत नहि जे शिक्षा आ संस्कार केर बल पर स्वाभिमानी छी हम समस्त मिथिलावासी अर्थात् मैथिल। परन्तु ‘अहंता’ केर कारण ‘उच्चताबोधी ग्रन्थि’ तथा ‘लघुताबोधी ग्रन्थि’ केर अति सक्रिय होयबाक कारण हम सब अपन मूल्य-मान्यता आ अस्तित्व प्रति साकांक्ष कम, अपने-अपने बुद्धिक लड़ाई मे बेसी मुग्ध भेल छी। कियो केकरो टोकि नहि सकैत अछि, सब अपनहि बुद्धिक ब्याधि मे बेहाल अछि। शायद एहि दुर्गुण केर कारण मिथिलाक अस्तित्व प्राचीनकाल मे रहल, बाद मे दरभंगा राज, बेतिया राज, बनैली राज, सोनबरसा राज सहित अनेकों गढ़ बनिकय छिटफुट भऽ अन्ततः अपनहि पहिचान केँ अपने धुमिल कय विकृत पहिचान सँ आइ चिन्हल जाय लागल छी। यदा-कदा जे मैथिल पहिचान लेल संघर्षरत अछियो ओकरो समग्र मैथिल समाज सँ कोनो समन्वय नहि छैक। समन्वय लेल एकटा सुनिश्चित ‘नागरिक समाज’, ‘बुद्धिजीवी समाज’, ‘पेशाकर्मी समाज’, ‘सरकारी कार्मचारी समाज’, ‘मजदूर संगठन’, ‘छात्र संगठन’, ‘महिला समाज’, ‘जातीय संगठन’, आदि अनेकों तह (परत) केर सामाजिक-राजनीतिक संगठन केर आवश्यकता छैक से मिथिला वास्ते कतहु अछिये नहि। तखन त जेकरा जेना मोन होइत छैक से अपन डफली अपन राग अलापि रहल अछि, चर्चा मे कोहुना मिथिला बनल अछि बस ततबे बहुत भेल।
देखाबटी केर युग मे ललका, पीरा, केसरिया, हरियरका, तिरंगा, बहुरंगा पट्टा-झंडा फहराउ आ भीड़ कोहुना जुटाउ – एहि भीड़ केँ जुटेबाक वास्ते तरह-तरह के हथकंडा अपनाउ, भ्रष्टाचार केर बढावा दैत लूटल सरकारी धन केर बन्दरबाँट करैत बस देखाबा लेल राजनीतिक नारा लगाउ, बड़का-बड़का भाषण करू…. आध्यात्मिक परिवर्तन नहि अपितु बलात् भौतिक परिवर्तन कथमपि निर्माण कार्य अथवा सार्थक विकास या प्रगतिशील समाज नहि बना सकैत छैक। परञ्च ई युग थिकैक देखाबा करय के से सब कय रहल अछि। जेकरा पास सत्ता छैक ओकरा सरकारी धन लूटय मे सहजता छैक। सरकारी संयंत्र पर ओकर पकड़ बनल छैक, कमिशन के रकम ओकर एजेन्ट मार्फत या सीधे मंत्री क्वार्टर धरि पहुँचेबाक व्यवस्था बनल छैक – लूट सके सो लूट वाली बात छैक। आर जनता एहि लुटेराक लूटल धन केर नोइस मात्र मे अपन मनोरंजन लेल भीड़ मे चलि गेल करैत अछि। ओकरा नहि त नेताक नारा सँ कोनो मतलब छैक, नहिये कोनो परिवर्तन सँ। ओ त अपनहि नसीब पर झखैत रहैत अछि, खाली समय छैक हाथ मे त गोटेक सौ-टकिया नोट आ आबय-जाय के व्यवस्था पर कतहु भीड़ लगा देत। फोटो मे, लाइव मे, वीडियो मे, टेलिविजन मे, सामाजिक संजाल पर, जतय-ततय एहने भीड़ टा देखाय दैत अछि। सार्थक परिवर्तन लेल आ आध्यात्मिक प्रगतिशीलता लेल के? मनन योग्य प्रश्न एतबे टा छैक।
काल्हि ‘ग्रेटर मिथिला एसोसिएशन’ केर मुम्बई इन्चार्ज कुणाल ठाकुर केर एक पोस्ट मे टैग कयल गेल रही, ध्यान गेल। ओ लिखने रहथि जे जनगणना मे मैथिली लिखाउ ताहि लेल किछु अभियानी लोकनि जनजागरण कय रहला अछि आ हिन्दी मे लोक सब केँ समझा रहल छथिन, पुछला पर कहैत छथिन जे हिन्दी मे क्रान्तिकारी जोश उत्पन्न होइत छैक, लोक केँ बुझाबय मे सहजता भेल करैत छैक। मिथिलावाद केँ आमजनक मांग आ मुद्दा सँ जोड़बाक स्थापित सूत्र पर चलेबाक भरपूर प्रयत्न ओ लोकनि कय रहल छथि से सत्ताक लूटल धन नहि अपितु अपन कर्मठ प्रयासक बल सँ, ताहि बातक प्रशंसा हेबाक चाही। लेकिन निरन्तरता केना बनतैक ताहि दिशा मे सेहो लोक सब केँ एहि अभियानी सब सँ बात करबाक चाही। दरभंगाक बाद सहरसा मे सेहो एम्स बनय, एयरपोर्ट पूर्णिया मे सेहो खुलय, पुनौराधाम मे भव्य जानकी मन्दिर बनय, पर्यटन उद्योग मे मिथिला सर्किट हो, भागलपुर सिल्क उत्पादनक वैश्विक केन्द्र बनय, गाम-गाम मे सहतूतक कीड़ाक पालन कय सिल्क उत्पादन बढय, बेगूसराय औद्योगिक राजधानी बनय… कतेको रास मुद्दा पर चलि रहल अभियान जँ सत्ताभोगी राजनीतिज्ञक भीड़ सँ अलग अपन यथार्थ भीड़ संग जनमानस केँ जगा रहलैक अछि त एकर सार्थकता पर सेहो चर्चा करय जाउ। उच्चताबोधी ग्रन्थि आ लघुताबोधी ग्रन्थि मे फँसिकय मिथिलाक अस्तित्व केँ आर बेसी नाश हम सब नहि करी। आलोचना करबाक संग-संग सहयोगक भावना सेहो रखनाय बहुत जरूरी अछि। मैथिली जिन्दाबाद!!
हरिः हरः!!