एकटा सहज लेकिन महत्वपूर्ण दर्शन
(A Simple But Significant Philosophy)
– प्रवीण नारायण चौधरी

हमरा याद अछि अपन जीवन मे कइएक रूपान्तरणक (transformation) दास्तान (कथा)! एहि प्रक्रिया सँ एखनहुँ छी गुजैर रहल! आर लगैत अछि जे जीवनक अन्त-अन्त धरि ई जारिये रहत। चूँकि अदृश्य आ भावनात्मक दर्शन मे बेस रुचि अछि, आध्यात्मिक स्वाध्याय एवं ताहि सँ प्राप्त निचोड़ यानि अमृत (nectar) केर रसास्वादन सँ आत्मा व एकर कुल १७ गोट चिरकाल धरि संगे यात्रा करनिहार संगी (मन, बुद्धि, ५ कर्मेन्द्रिय, ५ ज्ञानेन्द्रिय आ ५ प्राण) बीच सामंजस्य बैसबय मे काफी सहयोग भेटैछ; तेँ काफी समय सँ स्वाध्याय व लेखन करैत आबि रहल छी।
मनक गति केँ मोमबत्तीक प्रदीप्त लौ (burning flame of candle) जेकाँ कहल गेल छैक कतेको दार्शनिक द्वारा। अहाँ-हम सेहो एहि अनुभव केँ स्वयं बुझि सकैत छी। भयानक हवा-बिहाड़ि (तूफान) मे एहि प्रदीप्त लौ केँ टिकनाय मुश्किल छैक। ठीक तहिना मनक गति केँ एकसमान राखि सकब हम मानव लेल लगभग असम्भव (next to impossible) होइछ। आँखि कहत जे हमरा नीक चीज देखबाक अछि, कान कहत हमरा नीक चीज सुनबाक अछि, तहिना लगभग सब इन्द्रिय केँ अपन भोगक विषय दिश गेनाय स्वभाव (nature) होइछ। कतेको लोकक कर्म करयवला इन्द्रिय यानि हाथ, पैर, मुंह, गुदा आ लिंग केर सेहो आदति खराब भ’ गेल रहैत छैक। एहि तरहें १० टा घोड़ा अपन-अपन रुचि मे रमण करबाक लेल आतुर रहय, ओकर चलते ५ टा प्राण केर गति सेहो अनियंत्रित*, आर मन व बुद्धि केना-केना खराब होइछ एहने सन अवस्था मे सेहो हमरा लोकनि नीक सँ बुझैत छी। दीपक केर लौ जेना सदिखन एक रंग प्रदीप्त रहय ठीक तहिना मन केर गति एकसमान रहबाक चाही, जीवन केर उद्धार सुनिश्चित बुझब।
*प्राण केर नियंत्रण-अनियंत्रण संछिप्त मीमांसा
कखनहुँ नासिका सँ हृदय धरिक प्राणक राजाक ‘प्राण’ केर गति तेज त कखनहुँ मद्धिम त कखनहुँ आर धीरे होयब, पुनः नाभि सँ पैर धरिक प्राण ‘अपान’ मे झुरझुरी कि शिथिलता कि उग्रता लिंग-गुदादिक क्रिया संग पैरहु केर क्रिया सब मे अनियंत्रण, फेर पाचन एवं उत्सर्जन संग शरीर केँ पोषक तत्त्व प्रदान करयवला प्राण ‘समान’ मे समस्या, तहिना ‘उदान’ नाम के प्राण जे कंठ सँ मस्तिष्क धरि मे व्याप्त रहैछ ताहि मे समस्या यानि अनियंत्रण आ तदनुसार जन्म लेबाक योनिक निर्धारण – माने कौआ बनब कि कोयली कि सुग्गर कि गिदर या मनुष्य तेकर निर्णयकर्ता प्राण, ताहि मे समस्या आर ओ प्राण जे सौंसे शरीर मे रहैत अछि ‘व्यान’ ताहि मे समस्या-अनियंत्रण – शरीरक बनावट सेहो हाथोहाथ बुझिये लिअ जे हृदय सँ १०१ नाड़ी, प्रत्येक नाड़ी केर १००-१०० शाखा, आ प्रत्येक शाखा केर ७२,००० उप-शाखा, कुल ७२,७२,१०,२०१ गोट नाड़ी शाखा आ उपशाखा मे रहयवला प्राण ‘व्यान’ होइछ, ताहि मे समस्या – देखू सब कियो, अन्तर्दृष्टि सँ।
आब विराम दैत छी एहि लेख केँ – एहि सोच के संग जे दीपकक लौ जेना नचैत रहैत अछि, हिलैत रहैत अछि, कखनहुँ कम त कखनहुँ बेसी जरैत-बरैत रहैत अछि – तहिना मनक गतिक हाल अछि। बहुत पैग योग-साधना सँ लोक मनक गति केँ नियंत्रित कय सकैत अछि। एहि सहज दर्शन (philosophy) केँ सब कियो जरूर बुझब आ मानव जीवन केँ सफल बना लेब। ऊपर जे ‘उदान’ नामक प्राण अछि ओ जन्मक योनि तय कर्त्ता थिक, से निरपेक्ष भाव सँ कर्म करनिहार केँ मनुष्य योनि देल करैछ, ई अपना सभक शास्त्र-पुराण कहैत अछि। अस्तु! सभक जीवन सफल हुए! ॐ तत्सत्!
हरिः हरः!!