विचार
– प्रवीण नारायण चौधरी
अन्तर्राष्ट्रीय बेटी दिवसः बेटी होइछ प्रकृतिक सर्वोत्तम उपहार
आइ सितम्बर मासक चारिम रवि दिन – जेकरा विश्व भरि मे बेटी लेल समर्पित करैत ‘अन्तर्राष्ट्रीय बेटी दिवस’ केर रूप मे मनायल जेबाक एकटा मान्यता स्थापित कयल गेल छैक – बेटी दिवस एहि लेल जे बहुतो स्थान पर एहि बेटी प्रति उपेक्षाक भावना, कन्या भ्रूण हत्या, पालन-पोषण आ शिक्षा-दीक्षा हर चीज मे विभेद… एहि सँ ऊपर उठबाक आ बेटी जाति केर आध्यात्मिकता केँ नीक सँ मनन करबाक लेल ई दिवस मनायल जाइत छैक।
अपन मिथिला मे सेहो बेटी सँ गाम बसैत छैक से बुझितो बेटी केँ गोबर-बिछनी, पात खररनी, खेती-गृहस्थी मे सहायिकाक भूमिका करयवाली, बोइन-मजदूर कमायवाली, रोटीपकनी, गृहिणी, पर्दाक वस्तु, भोग्य वस्तु, घरवाली, बच्चा पैदा करयवाली, आदि अनेकों ‘छोट उपमा’ सँ दमनपूर्वक राखल जेबाक परम्परा देखाइत छैक। पितृसत्तात्मक (patriarchal) व्यवस्था मे महिला केँ कम अँकबाक गोटेक प्राकृतिक कारण केँ ततेक बढा-चढाकय बुझल जाय लगलैक जे बितैत समय के संग महिला लगभग गौण भऽ गेल आ पुरुषक वर्चस्व समाज पर हावी भऽ गेल। खैर… हम उपेक्षाक दृष्टि आ व्यवहार पर एखन केन्द्रित नहि होयब, बस इशारा मे कहलहुँ जे कन्या प्रति के हेय दृष्टि असल व्यवहार मे कतेक दमनपूर्ण छैक से सब कियो आत्मसात करब।
लेकिन अपन मिथिलाक बाबा-पुरखाजन जे जीवन पद्धतिक विकास कयलथि, अर्थात् परापूर्वकाल सँ बेटी केँ लक्ष्मी, जानकी, गौरी, सिया, धिया, बुचिया, रानी, कुमारि आदि अनेकों उच्च अलंकार केर शब्द सम्बोधन सँ अत्यन्त सम्मान देबाक परम्परा सेहो भेटैत छैक। कुमारि केर पूजा, कुमारि केर भोजन, कुमारि केँ खोंइछ, कुमारि केँ सर्वोपरि सम्मान ई सब अपनहि मिथिलाक लोकजीवन मे निहित छैक। स्पष्ट छैक जे अलंकारिक रूप मे बेटी प्रति उच्च सम्मान रहितो व्यवहारिक रूप मे कतहु न कतहु बेइमानी भरल नेत देखल जाइत छैक। त मानि लेल जाउ जे कालान्तर मे हरेक व्यवस्था मे कनी-कनी बदलाव अबैत उच्चतम् सँ निकृष्टतम् धरि गेल आ फेर निकृष्टतम् सँ उच्चतम् धरिक यात्रा करत। ई ठीक ओहिना छैक जेना राति भेल त फेर सूर्योदय होयत, पुनः सूर्यास्त होइत राति होयत। प्रकृति केर ई नियम चलिते रहत।
आइ हम अपन महादुर्गा, महालक्ष्मी आ महासरस्वतीक भाव सँ प्राप्त ३ बेटी केँ सर्वप्रथम शुभकामना दैत छी। God’s best gift to her parents is a daughter. एहि महावाक्य केँ आत्मसात करैत एहि अवसर पर एक-दू टा बात आरो कहय चाहब। हमरा घर मे बेटीक बाढ़ि कहल गेल अछि। जेठ भैयारी केर दुइ बचिया, माझिल केर चारि बचिया, हमर तीन बचिया आ हमर छोट केर एक बचिया – कुल १० महाविद्या देवीक पदार्पण हमरा बड़ा आह्लादित करैत अछि।
कतेको लोक एतेक बेसी सन्तान केँ जन्म देबाक विषय मे फरक विचार रखैत छथि। सन्तान कम हो, हम दुइ आ हमर दुइ, परिवार नियोजन, आदि अनेकानेक बात कयल जाइत छैक। वास्तव मे कम बच्चा केँ नीक ढंग सँ परवरिश (पालन-पोषण) भेटबाक चाही, ई आदर्श सिद्धान्त नीक बात थिकैक। जनसंख्या सेहो नियंत्रित राखब जरूरी छैक। लेकिन हरेक परिवार मे हर तरहक सोच आ विचार रखनिहार लोक होइत छैक। केकरो सामाजिक परोक्ष निन्दा नहि नीक लागल, कियो ईश्वर मे आस्था राखि जतेक बच्चा जन्म लेलक सब केँ सम्मान देलक, आदि। हमरो विचार सन्तानक मामला मे कनेक पुरातनवादी सोच केर रहल अछि। सन्तान अपन भाग्य सँ अबैत छैक। बेटी आ कि बेटा – ओकरा सभक समान रूप सँ स्वागत करबाक योग्य सामर्थ्य-ओकादि विकसित करब माता-पिताक धर्म थिकैक। समाजहि द्वारा बनायल गेल कइएक नियम एहेन छैक जे एकटा बेटा उत्तराधिकारी लेल लोक तरसि जाइत अछि। ता धरि समाज मे रंग-बिरंगी कौचर्य आदिक सामना करय पड़ैत छैक। तेँ मन मसोसिकय सेहो कतेको परिवार एकटा बेटा हेबाक इन्तजार मे रहैत अछि।
हमर निजी अनुभव कहि रहल अछि जे हर सन्तान एहि पृथ्वी पर अपन भाग्य आ सरोकार लय कय ईश्वरहि केर कृपा सँ पदार्पण कयलक। सभक संग किछु न किछु गाथा जुड़ल छैक। एक पिताक रूप मे एकरा सभक प्रति अपन जिम्मेदारी हम निभाबी, बस यैह हमर जीवनक अभीष्ट रहल अछि। भगवतीक उपासक परिवार मे भगवतीक अनेक रूप केर आगमन स्वाभाविक छैक। स्वयं जगदम्बा, विश्वम्भरी, अधिष्ठात्री, अवलम्बा आ भवानी केर जेहेन इच्छा भेलनि से भेल। कतेको लोक विज्ञान आ पौरूष आदिक बात सेहो कयल करैत अछि। बेटा बेटी होयबाक पाछाँ अनेकों तरहक तर्क, तथ्य, तरीका आदिक विश्लेषण सेहो एहि जीवन मे कतेको लोकक मुंह सँ सुनबे केलहुँ। लेकिन हमरा अपन प्रथम सुपुत्रीक जन्म सँ एतेक बेसी उत्साह आ आनन्द प्राप्त भेल जेकर सीमा केँ शब्द मे प्रकट करब कठिन अछि हमरा लेल। एकर बाद दोसर सुपुत्रीक आगमन उपरान्त एहेन-एहेन अनुभूति भेटय लागल जे बुझा गेल कि ईश्वर हमरा सँ किछु विशेष चाहैत छथि। आर फेर तेसर! हाहा!! ई त बुझू जे चक्र, त्रिशूल, आदिक संग एना उपस्थित भेल अछि एहि संसार मे तेकर खिस्सा कि कहू! बाद मे कहियो लिखब। निश्चित अहाँ सब केँ केवल आश्चर्य टा नहि विस्मय सेहो होयत।
त ई तीन सुपुत्रीक पिताक रूप मे हम स्वयं केँ बहुत भाग्यशाली मानैत छी। एकरा सभक शिक्षा-दीक्षा आ भरण-पोषण एकरे लोकनिक भाग्यक बल सँ हम सपत्नीक कय पाबि रहल छी सेहो अनुभव राखि रहल छी। सच छैक जे प्रकृतिक सर्वोत्तम उपहार बेटिये होइत छैक। भगवान् एकरा सभक रक्षा करथि। ई सब महान बनय आ माता-पिताक सारा सपना केँ जरूर पूरा करय। अस्तु! बेटी दिवस पर समस्त बेटीक संग ओहि माय केँ सेहो शुभकामना जे एहि धराधाम मे बेटीक प्रवेश खुशी-खुशी दैत छथिन, पेट मे कैंची नहि चलबबैत छथि। ॐ तत्सत्!!
सन्तान केँ आत्मा सँ तुलना कयल जाइछ। संस्कृत शब्द ‘आत्मज’ या ‘आत्मजा’ एहि लेल कहल गेल छैक। आत्माक प्रतिमूर्ति होइत छैक सभक अपन सन्तान। बस यैह भाव मे सभक सन्तान प्रति सदिखन सम्मानक भाव राखि हम सब एहि मानवलोक केँ सुन्दर बना सकैत छी। सभक बेटी लेल हमर हृदय सँ शुभकामना। माय-बापक लाज टा सब कियो जरूर राखब से हमर करबद्ध प्रार्थना। फैशन के दुनिया एहेन छैक जे लोक अपन सीमा, मर्यादा आ लेहाज जे बिसरि गेल करैत अछि से नीक बात कदापि नहि छैक। अपन सुन्दरता आ कोमलता केँ अहाँ प्रकृति-प्रदत्त अद्भुत उपहार बुझि ओकर सुरक्षा करू, नंगापन आ अश्लील तरीका सँ अपना केँ एना बदनाम नहि करू, एकरा अभिव्यक्तिक स्वतंत्रता मानि खुलेआम दुनिया के परीक्षा लेनाय उचित नहि। सावधान बेटी, बस सीमा टा केँ बुझय जाउ।
हरिः हरः!!