कलिंग लिटरेरी फेस्टिवल मे मैथिलीक दुइदिवसीय सहभागिता

(समाचार हिन्दी मे अछि, समयाभाव मे मैथिली अनुवाद नहि कयल जा सकल)

नई दिल्ली। कलिंग लिटरेरी फेस्टिवल के तत्वावधान में आयोजित मैथिली लिटरेरी फेस्टिवल के वर्चुअल आयोजन का आगाज सोशल मीडिया के सभी वैश्विक पटल पर बीते दिन 11-12 सितंबर को हुआ। पूर्ण रूप से युवा पीढ़ी पर केंद्रित इस महत्वपूर्ण आयोजन की रूपरेखा निश्चित रूप से इसे विश्व भर में हो रहे अन्य आयोजनों की तुलना में विशेष बनाती है।

पहले दिन उद्घाटन सत्र के साथ ही इस आयोजन की शुरुआत हुई जिसमें वक्ता के रूप में अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान के पूर्व निदेशक उदयनारायण सिंह ‘नचिकेता’ के साथ मैथिली साहित्य के वरिष्ठ साहित्यकार प्रदीप बिहारी, अरविंद ठाकुर, श्री रमेश, रमेश रंजन, महेंद्र नारायण राम एवं मैथिली लेखक संघ के महासचिव विनोद कुमार झा आदि मौजूद थे। जहाँ इस सत्र में कलिंग लिटरेरी फेस्टिवल की ओर से रश्मि रंजन परिदा, सितांसु, एवं आशुतोष ठाकुर की उपस्थिति थी वहीं इस आयोजन के संयोजक एवम समन्वयक कृष्ण मोहन ठाकुर भी उपस्थित थे। सत्र के संचालक अजीत आजाद द्वारा वक्ताओं से समकालीन साहित्य में युवा के हस्तक्षेप पर अनेक महत्वपूर्ण प्रश्न पूछे गये। विद्वान वक्ताओं ने अपने वक्तव्य में युवाओं के काबिलियत पर भरोसा जताते हुए कहा कि मैथिली साहित्य का भविष्य आज जिन युवाओं के हाथ में है वह सुदृढ है और निश्चित रूप से एक बेहतर परिणाम की उम्मीद की जा सकती है। उदय नारायण सिंह ने अपने वक्तव्य में इटली के बीसवीं सदी के प्रसिध्द रचनाकार के मेनिफेस्टो का जिक्र करते हुए कहा कि हम कैसा भविष्य चाहते है और उसके लिए युवाओं को क्या-क्या करना चाहिए ?

इस महत्वपूर्ण विषय पर आज विमर्श होना चाहिए तभी वैश्विक साहित्य के एक सार्थक दिशा का निर्धारण सम्भव हो सकता है।

उद्घाटन सत्र के बाद हुए कविता-विमर्श सत्र में युवा वक्ताओं ने समकालीन कविता के महत्वपूर्ण आयाम पर अपने वक्तव्यों को सामने रखा जिसमें विगत वर्षों में युवा कवि-कवयित्रियों की रचना में आए बिम्ब विधान, छन्द, प्रतीक, अन्तर्लय, चेतना, ग्रामीण और शहरी परिवेश एवं नवताबोध को उनकी रचनाओं के साथ उल्लेख किया। जिसमें वक्ता के रूप में नारायण जी मिश्र, आदित्य भूषण मिश्र, मैथिल प्रशांत एवं पंकज कुमार मौजूद थे। सत्र का संचालन गुंजन श्री ने किया और अध्यक्ष की जिम्मेवारी युवा कवयित्री शारदा झा के हाथों थी। तीसरे सत्र में कथा-विमर्श का आयोजन किया गया था, जिसमें विमर्श विषय के रूप में उपन्यास एवं लघुकथा को भी शामिल किया गया।

युवा वक्ताओं ने समकालीन कथा, उपन्यास एवं लघुकथा के विभिन्न आयामों पर अपने महत्वपूर्ण वक्तव्य को रखा, जिससे आगे का मार्ग प्रशस्त होता हुआ दिख रहा है। इस सत्र का संचालन साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार से सम्मानित युवा कथाकार सोनू कुमार झा ने किया एवम अध्यक्षता जनकपुर नेपाल की सुपरिचित-सुप्रसिद्ध लेखिका बिजेता चौधरी ने की। वक्ता के रूप में दिलीप कुमार झा, कमलेश प्रेमेंद्र, पंकज प्रियांशु, प्रियरंजन झा एवं शैलेंद्र शैली मौजूद थे।

चौथा सत्र अनुवाद-विमर्श पर आधारित सत्र था, जिसमें वक्ताओं ने अनुवाद के लिए आवश्यक अवयव के साथ व्यवहारिक समस्याओं पर भी अपनी बातों को रखा। साहित्य के अनुवाद से ग्लोबल विलेज की परिकल्पना के साथ जोड़कर इसे एक आवश्यक उपक्रम बताया गया। इस सत्र का संचालन अंशुमान सत्यकेतु ने किया एवम अध्यक्षता की जिम्मेवारी निक्की प्रियदर्शिनी ने बखूबी निभाई। युवा वक्ताओं के रूप में कृष्णानन्द मिश्रा, प्रभात झा, सदरे आलम गौहर, संजय झा, शैलेन्द्र मिश्रा आदि मौजूद थे। प्रथम दिन का अंतिम सत्र नाटक-विमर्श को समर्पित था। इस सत्र में नाटक के विभिन्न प्रकार और उसके वर्तमान स्वरूप के साथ निकट भविष्य में उसकी प्रासंगिकता पर बल दिया गया। समकालीन नाटक, नाट्य-आलोचना एवं रंगमंच से जुड़े हुए कई आवश्यक मुद्दों पर एक सार्थक विमर्श किया गया जिससे बहुत सारी बातें सामने आई है जिससे होने वाली समस्याओं के समाधान में अवश्य मदद मिलेगी। इस सत्र का संचालन साहित्य अकादेमी पुरस्कृत ऋषि वशिष्ठ ने किया और अध्यक्षता प्रीति झा की थी। युवा वक्ताओं में आशुतोष अभिज्ञ, अंतेश झा, प्रकाश झा, रंजीत कुमार झा, सागर सिंह आदि मौजूद थे।

समारोह के दूसरे दिन की शुरूआत बाल साहित्य विमर्श सत्र के साथ हुई। इस सत्र में बाल साहित्य की दशा और दिशा दोनों पर वक्ताओं ने अपना पक्ष रखा। समकालीन बाल साहित्य लेखन के लिए आवश्यक बाल मनोविज्ञान पर भी एक सार्थक विमर्श किया गया जिसमें बाल साहित्य के नियमित प्रकाशन के लिए पत्रिका की उपयोगिता पर भी चर्चा हुई। इस सत्र का संचालन जहाँ रूपेश त्योंथ ने किया वहीं अध्यक्ष के रूप में निवेदिता मिश्रा की उपस्थिति थी। युवा वक्ताओं के रूप में अक्षय आनन्द सन्नी, अमित मिश्र, चंदन कुमार झा, मनोज कामत, नारायण झा आदि मौजूद थे।

अगला सत्र आलोचना-विमर्श के नाम रहा, जिसमें वक्ताओं ने मैथिली साहित्य के आलोचना के इतिहास की चर्चा के साथ वर्तमान परिस्थितियों को भी सामने रखा। समकालीन मैथिली साहित्य में सर्वाधिक लिखी जाने वाली रचना ‘कविता’ पर आलोचना की स्थिति पर सार्थक विमर्श के बाद अन्य विद्या जैसे कथा, उपन्यास एवं नाट्य आलोचना की स्थिति की भी समीक्षा की गई। वक्ताओं ने कहा की युवाओं को अगर आलोचना पर अगर कार्य करना है तो निश्चित रूप से मैथिली साहित्य के साथ वैश्विक दृष्टिकोण भी स्पष्ट रहना चाहिए।

आयोजन के अगले सत्र के रूप में गीत-गजल विमर्श था। इस आवश्यक विमर्श सत्र में विद्यापति काल से लेकर वर्तमान समय में गीत-गजल की स्थितियों पर बारीकी से बात की। आज के समय में मैथिली गीत-गजल की वास्तविक स्थिति, समृद्धि, आवश्यक परिवर्तन एवं समस्याओं पर विमर्श किया। सत्र का संचालन साहित्य अकादमी पुरस्कार से पुरस्कृत दीप नारायण विद्यार्थी ने किया, अध्यक्ष के रूप में बिभा झा की उपस्थिति थी। युवा वक्ताओं में आनन्द मोहन झा, किसलय कृष्ण, नवल श्री पंकज, रघुनाथ मुखिया, संस्कृति मिश्र मौजूद थे। समापन सत्र से पूर्व कवि-गोष्ठी का आयोजन किया गया था, जिसमें भारत और नेपाल के अतिरिक्त अन्य कई देशों के युवा कवि-कवयित्रियों ने समकालीन कविता, गीत, गजल आदि का पाठ कर आभासी रूप से देख रहे सभी दर्शकों को बांधकर रख दिया। सत्र का संचालन मनीष झा ‘बौआ भाइ’ ने किया, वहीं अध्यक्ष के रूप में कामिनी जी उपस्थित थी। इसमें लगभग दर्जन भर से अधिक युवा कवि-कवयित्रियों ने अपनी प्रस्तुति दी।

इस महत्वपूर्ण समारोह का समापन एक सार्थक समीक्षा सत्र के साथ हुआ, जिसमें इस दो दिन के आयोजन में हुए सभी उपक्रमों की समीक्षा की गई और युवा कवियों की उपस्थिति और उपादेयता पर वक्ताओं ने अपने स्पष्ट विचार रखे। वक्ताओं ने कहा कि आज की युवा पीढ़ी जो मैथिली में सक्रिय लेखन कर रही है, निश्चित रूप से उनमें एक अकूत क्षमता नजर आती है जो मैथिली साहित्य को वैश्विक पटल पर स्थापित करने के लिए आवश्यक है। अभिशेष झा ने विद्यापति लिखित समदाउन गाकर इसका समापन किया साथ ही समापन वक्तव्य में कलिंग लिटरेचर फेस्टिवल के सह-स्थापक सितांसु जी एवं सह-निदेशक आशुतोष ठाकुर जी के साथ मैथिली लिटरेरी फेस्टिवल के समन्वयक कृष्ण मोहन ठाकुर जी ने सबके प्रति आभार व्यक्त किया तथा आगे इससे बेहतर करने का भरोसा दिलाया।

इस क्रम में इन्होंने स्वीकार किया कि भारतीय साहित्य को मजबूत करने में भी युवा की भूमिका आवश्यक है। समापन सत्र में वक्ता के रूप में अनमोल झा, अशोक कुमार मेहता, बिनय भूषण ठाकुर, लक्ष्मण झा ‘सागर’, रामकुमार सिंह, सुरेंद्रनाथ आदि मौजूद थे।

एक प्रयोग के तौर पर सभी सत्र की अध्यक्षता मैथिली की महिला लेखिका ने की। यह इस फेस्टिवल का एक खाश आकर्षण था। इस आयोजन में भारत और नेपाल सहित अन्य देशों के मैथिली साहित्य के युवा रचनाकार मौजूद थे। इसमें साहित्य अकादेमी से पुरस्कृत 10 साहित्यकारों ने अपनी उपस्थिति दी। साथ ही नेपाल के ख्यातिप्राप्त रचनाकार रमेश रंजन, गजेंद्र गजूर, विद्यानन्द बेदर्दी, दोहा क़तर से बिन्देश्वर ठाकुर सहित कई देशों के युवाओं ने इस आयोजन में वरचुअली अपनी सहभागिता देकर इसकी गरिमा को बढ़ाया।

KLF के प्रतिनिधि रश्मि रंजन परिदा और आशुतोष कुमार ठाकुर ने जानकारी दी कि मैथिली भारत के बिहार और झारखंड राज्यों और नेपाल के तराई क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषा है। भारत की लगभग 5.6 प्रतिशत आबादी लगभग 7-8 करोड़ लोग मैथिली को मातृभाषा के रूप में प्रयोग करते हैं। मैथिली बोलने वाले भारत और नेपाल के विभिन्न हिस्सों सहित विश्व के कई देशों में फैले हैं। मैथिली विश्व की सर्वाधिक समृद्ध, शालीन और मिठास पूर्ण भाषाओं में से एक मानी जाती है। मैथिली भारत तथा नेपाल में एक राजभाषा के रूप में सम्मानित है। मैथिली की अपनी लिपि है जो एक समृद्ध भाषा की प्रथम पहचान है। इसकी एक समृद्ध साहित्य का इतिहास रहा है जो इसे संपूर्ण भारतीय भाषाओं के साथ वैश्विक भाषाओं में विशिष्ट बनता है।

KLF मैथिली लिटरेरी फेस्टिवल में सम्मिलित समस्त प्रतिभागियों तथा मैथिली साहित्य प्रेमियों के के प्रति उन्होंने अपनी कृतज्ञता प्रकट की। रश्मि रंजन ने बताया कि, इस वर्ष यह आयोजन वर्चुअल माध्यम से सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। अगले वर्ष से इसका आयोजन मधुबनी में करने की योजना है।