सौहार्द्र आ सद्भावनाक अद्भुत सन्देश मिथिला सँः क़व्वाली आ कीर्तनक समागम

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२८ अगस्त २०२१, मैथिली जिन्दाबाद!!

– प्रवीण नारायण चौधरी

क़व्वाली आ कीर्तनः धार्मिक सद्भावना

(परिप्रेक्ष्यः अपन मिथिला)
 
२८ अगस्त २०२१, विराटनगर! (#स्मारिका #दहेज_मुक्त_मिथिला #स्मारिका२०२१ – डेडलाइन ३१ अगस्त केँ बेर-बेर स्मरण करबाक लेल लिखल।)
 
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अहाँ सब मे सँ कतेको लोक क़व्वालीक आनन्द जरूर उठेने होयब। क़व्वालीक इतिहास पढ़य-बुझय मे बहुत रास गहींर आ गम्भीर तथ्य बुझय लेल भेटल हमरा। एखन पढ़ाई पूरा नहि भेल हँ। बस प्रारम्भ भेल बुझू। लेकिन भारतीय उपमहाद्वीप मे क़व्वालीक आरम्भकाल १३म् शताब्दी – हज़रत अमीर खुसरो (१२५३ सँ १३२५ ई.) मानल जाइछ।

 
सूफी अन्दाज मे तीव्र स्वर एवं भाव संग मिश्रित गीत केँ क़व्वाली कहल जाइछ। ईस्लाम धर्मावलम्बी द्वारा सूफी परम्परा मे भक्ति गीत – ईश्वर (अल्लाह) सँ सामीप्यता प्राप्त करबाक गायन शैली (सूफी परम्परा) सँ क़व्वालीक जन्म मानल जाइछ।
 
हम हिन्दू धर्मावलम्बी केँ सेहो भगवान् सँ सामीप्यता प्राप्ति लेल विभिन्न अन्दाजक भक्ति गीत गायनक अपन परम्परा अछि।
 
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अपन मिथिला मे गामे-गाम एहि परम्परा केँ जियाकय रखने अछि कीर्तन परम्परा। एक विशेष आ खास बात केर ध्यान रखैत देखब जे श्री गणेश वन्दना सँ आरम्भ करैत भगवती आ भगवान् केर भजन गबैत आखिरी मे बजरंगबली आ महादेवक गान कीर्तनक हिस्सा होइत अछि। हमर गाम मे कोनो विशेष अवसर यथा अष्टयाम/तेराति/नवाह नाम-संकीर्तनक अवसान अथवा दुर्गा पूजाक अवसान, झूलनक अवसान, रामनवमीक अवसान, कृष्णाष्टमीक अवसान आदिक समय अति-अति विशिष्ट शैली मे समदाउन गायल जाइत अछि।

 
ठीक तहिना ईस्लाम धर्मावलम्बी लोकनि मे अल्लाह संग हुनक सन्देश देनिहार पैगम्बर मोहम्मद साहेब आ अनेको वली लोकनिक माहात्म्य आदिक गायन, हुनक जीवन चरित्र आ त्याग आदिक प्रशंसा, अन्य विभिन्न प्रेरक प्रसंग आदिक चर्चा करबाक अपन विशिष्ट परम्परा सब देखल जाइछ।
 
पर्शियन सूफ़ी तत्व और परंपरा मे समा या समाख्वानी (سماخوانی) केर रिवाज एक आम बात छी। एहि समाख्वानी मे अक्सर निम्न गीत गायल जाइत छल आर अछियो।
 
क़सीदा – केकरो तारीफ़ मे कहल/लिखल/गायल जायवला पद्य रूप
हम्द – अल्लाह केर तारीफ़ या स्तोत्र मे गायल जायवला गीत या कविता
नात ए शरीफ़ (नात) – हज़रत मुहम्मद केर शान मे कविता या गायल जायवला गीत
मन्क़बत (मनक़बत) – वली लोकनिक शान मे कविता या गायल जायवला गीत
मरसिया – शहीद लोकनिक शान मे कविता या गायल जायवला गीत
ग़ज़ल – प्रेम गीत। चाहे अहाँ अपन ईश्वर सँ बात करी या प्रकृति सँ या प्रेमिका सँ या अपना आप सँ
मुनाजात – ई एक प्रार्थना छी, जेकरा दुआ या मुनाजात सेहो कहल जाइत अछि।
 
 
आब गौर करयवाली बात ई छैक जे जहिना हम सब राम, कृष्ण, हनुमान, शिव, दुर्गा, काली, लक्ष्मी, सरस्वती सहित विभिन्न देवी-देवता संग ऋषि-मुनि आ महापुरुष लोकनि केँ कीर्तन-भजन मार्फत याद करैत छी, ठीक तहिना ईस्लाम धर्मावलम्बी सेहो अपन एक विशेष परम्परा सँ आबद्ध जीवनशैली जियैत छथि।
 
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मिथिलाक्षेत्र मे सदियों सँ हिन्दू आ मुसलमान संयुक्त रूप सँ निवास करैत छथि। दुनूक जीवनप्रणाली मे समायोजनक सुन्दर स्वरूप सेहो देखय लेल भेटैत अछि। आइ मानव जीवनक जरूरी पक्ष मे खेती-गृहस्थी सँ लैत उद्योग-कारखानाक संचालन, विभिन्न पारम्परिक उद्यम संग रस्म-रिवाज व धार्मिक परम्परा तक मे आपसी फ्यूजन सहित हिन्दू-मुसलमान संगे-संगे जीवन संचालित कय रहल अछि। एतय एक-दुइ खास लोकव्यवहारक हम चर्चा करय चाहब।

 
दुर्गा पूजाक अष्टमी-नवमीक राति हमर गामक दुर्गा मन्दिर प्रांगण मे अकबर, ठकाय, इदरिश आदिक हाथ सँ चाटी सिद्ध करयवला साधक सब केँ अक्षत दैत धरती पर चाटी रोपल जाइत अछि। हिन्दू भगता आ मुस्लिम भगता केर ई संयुक्त सौहार्द्र मे बड पैघ सन्देश अछि जे काफी प्राचिनकाल सँ चलैत आबि रहल अछि। ई बात वेद-पुराण अथवा शास्त्र विहित नहि, लोकशास्त्र पर आधारित आ सिद्ध तथ्य थिकैक।
 
दाहा (मुहर्रम केर ताजिया) संग मुस्लिम समुदायक बच्चा सँ बूढ़ धरि, स्त्री व पुरुष सब कियो जुलूस निकालल करैत अछि। जुलूस एक खास बातक द्योतक होइत छैक। जरूरत मे शहादत देबाक लेल स्वयं केँ तैयार करबाक प्रदर्शनक महत्वपूर्ण सन्देश रहैत छैक। लाठी, भाला, गड़ाँस, फरसा आदिक संग करबलाक मैदान मे अली व हुसैन केर लड़ाई आ शहादत केँ विशेष रूप सँ ईस्लामिक पद्धति मे सुमिरैत गामक समस्त मुसलमान समुदायक पुरुष आ पाछाँ सँ ‘हाय जी, के बेटा बनतय अली आ कि हुसैन, के जेतय करबला मैदाने जी’ आदिक भावपूर्ण सामूहिक गीत गबैत ओकरा सब केँ उत्साहवर्धन करैत घुमल करैत अछि। आर, हिन्दू समाज एहि दाहा मे भगवान् शिव केर स्वरूपक दर्शन करैत जल अर्पण करैत अछि, अक्षत चढबैत अछि, जाहि अक्षत केँ मुस्लिम अभिभावक सब संकलन करैत छथि।
ज्वालामुखी भगवती केँ हिमाचलक पहाड़क निवासस्थल सँ मिथिला अनबाक श्रेय भगवतीक असीम भक्त श्री लखतराज पाण्डेय केँ जाइत छन्हि। आइ ज्वालामुखी भगवती मिथिलाक दरभंगा जिला स्थित कसरौर गाम मे एक भव्य जम्बूद्वीप समान देखयवला रमणीय स्थल मे विराजित छथि। हिनकर माहात्म्य गाथा बहुत दूर धरि प्रसिद्ध अछि। ज्वालामुखी भगवती मिथिलाक कतेको ब्राह्मण परिवारक कुलदेवी सेहो छथिन, तेँ आइ के समय मे भगवती केँ पिन्डरूप मे अनेकों गाँव मे स्थापित कय समस्त ग्रामीण आ इलाकाक लोक पूजैत छन्हि। परञ्च ज्वालामुखी भगवतीक पूजा मे एकटा बहुत खास पक्ष छथिन मुसलमान समुदायक ‘बालापीर’ केर पूजा। जी! अपने लोकनि विस्मित नहि होयब। भगवतीक पूजा जतय कतहु मिथिला मे होइछ ओहि ठाम भगवती केँ भोग देबाक संग-संग एक मुस्लिम भक्त बालापीर केँ सेहो भोग पड़ैत छन्हि। हुनका बाकायदा मुस्लिम परम्परा अनुसार जब्बह कय केँ (गला रेत केँ) बलिप्रदान देल जाइत छन्हि। हिन्दू मे झटका बलिप्रदान आ मुस्लिम मे जब्बह करबाक परम्परा केँ विशेष ध्यान रखैत दुइ समुदायक बीच केर ई अद्भुत सौहार्द्रक सन्देश कतेक दूरगामी आ अनुकरणीय अछि से पाठक स्वयं विचार कय सकैत छी।
 
मेला हिन्दू पाबनिक हो या मुसलमानक पाबनिक – दुनू समुदायक बीच स्वतःस्फूर्त सौहार्द्रता आ सद्भावनाक विलक्षण रूप देखय लेल भेटैत अछि।
 
लेकिन जहाँ चुनाव आयल, चाहे पंचायत केर अथवा प्रदेश सभा केर कि संघीय संसद केर… ई सारा सौहार्द्रता चलि जाइछ तेलहन्डी मे, लंकाक दक्षिण महासमुन्दर मे। मनन करू कियैक!
 
आजुक एहि लेख केँ हम समाप्त करब खुदनेश्वर महादेवक उदाहरण दैत। समस्तीपुर सँ १७ किलोमीटर पश्चिम-दक्षिण मोरवा गाम मे अवस्थित एहि मन्दिर केर उदाहरण मिथिलाक हिन्दू-मुसलमानक एकताक जियैत-जागैत कीर्ति थिक। खुदनी बीबी एक मुस्लिम समुदायक महिला केँ गाय चरबैत काल गायक थन सँ स्वतःस्फूर्त दूधक स्राव देखि विस्मित अवस्था अज्ञात शिवलिंग केर ज्ञान भेटबाक बात सँ प्रसन्न भऽ खुदनी केँ खुद महादेव दर्शन देलखिन, खुदनीक गाय प्रति समर्पित नित्य सेवा आ गोदुग्ध सँ स्वयं केर तिरपित होयबाक भावना रखैत भगवान् महादेव ओकरा एहि रहस्य केँ आन केकरो नहि बतेबाक चेतावनी सेहो देलखिन, हुनक आदेशक उल्लंघन कयलापर ओकर मृत्यु भऽ जायत सेहो कहि देलखिन… लेकिन अपनहि परिवार द्वारा गायक दूध एम्हर-ओम्हर कय देबाक आरोप केँ खुदनी केना मेटाबय, ओकरा रहस्य उद्घाटन करय पड़ि गेलैक, ओकर तत्क्षण मृत्यु सेहो भऽ गेलैक… लेकिन स्वयं खुदनीक इच्छा आ महादेवक वरदान अनुसार ओकरा ओतहि दफना देल गेलैक जाहि पर आइ एक सुप्रसिद्ध ‘खुदनेश्वर महादेवस्थान’, अत्यन्त भव्य मन्दिर, धर्मशाला, व सब सुविधा सहित ‘बिहारक देवघर’ उपनाम सँ प्रसिद्ध अवस्थित अछि। जतय हर वर्ष करोड़ों हिन्दू आ मुसलमान संयुक्त रूप सँ आराधना-प्रार्थना कयल करैत अछि। एकर प्रेरणा आइ नहि केवल मिथिला समाज केँ बल्कि समस्त भारतवर्ष लेल अनुकरणीय अछि। (स्रोतः https://hindi.news18.com/news/bihar/samastipur-khudneshwar-dham-temple-morwa-1472761.html)
 
दहेज मुक्त मिथिला मे सेहो बहुत रास मुसलमान भाइ-बहिन सदस्य छथि, विरले कियो सोझाँ आबि अपन समुदाय आ समाजक चर्चा करैत छथि। हम चाहब जे ओहो लोकनि आगू आबथि। अपन शिक्षा-दीक्षा आ सुसंस्कार सँ समाजक बीच सौहार्द्रक वातावरण मे सहभागिता देथि। आर की! मिथिलाक कल्याण हो! सभक कल्याण हो!!
 
हरिः हरः!!