आलेख
– प्रवीण नारायण चौधरी
वर्तमान भौतिकवादी युग मे जखन कि आध्यात्मवादक असर मानवीय व्यवहार मे न्युन बनि गेल छैक, तथापि भाषा-व्यवहार मानवीय संवेदना-भावना केँ प्रकट करबाक एकमात्र साधन रहलाक कारणे अपन स्थान नित्य नव-नव रूप मे निरंतर बनौने अछि। भाषाक साधारण परिभाषा अपन भावना शब्द-वाणीक माध्यम सँ दोसर पर प्रकट केनाय होइत छैक। हर जीव केर भाषा कोनो न कोनो रूप मे होइते टा छैक। भाषाविहीन प्राणी केर पहिचान मृत लाश सँ करब तऽ अतिश्योक्ति नहि हेतैक। मानवीय भाषा मे सेहो अनेक विविधता देखबा मे आयल अछि। अन्तर्राष्ट्रीय भाषा जे सब देश मे बाजल-सुनल जाइत अछि। राष्ट्रीय भाषा केर सेहो कतेको प्रकार छैक। अलग-अलग क्षेत्र, अलग-अलग भाषा, अलग-अलग बोली – यैह आधार पर पहिचान करबाक परिभाषा प्रचलित छैक। मिथिलाक भाषा मैथिली आ एकर विभिन्न तरहक बोली यथा बज्जिका, अंगिका, जोलाहा, ठेंठी, छिका-छिकी आदि।
मैथिलीक उपलब्ध साहित्य तथा निरंतर लेखनीधारा सँ जाहि मैथिलीक रूप प्रचलित छैक ओकर क्षेत्र राज्य संरक्षणक अभाव मे आब मात्र किछु जिला धरि सीमित कहल जाइत छैक। हलाँकि मैथिली रोजगार – शिक्षण, लेखन, रंगकर्म, पत्रकारिता, सिनेमा, ललितकला, चित्रकला, आदि जे कोनो क्षेत्र छैक ओकर सीमा आब नहि केवल किछु जिला मे बल्कि समूचा भारतक अलग-अलग भाग मे छितरायल प्रवासी मैथिलीभाषीक उपस्थिति सँ बड पैघ बाजार बनि गेल छैक। मैथिली भाषा मे रोजगारक कोनो क्षेत्र मे निजी क्षेत्रक लगानी शनै:-शनै: बढय लागल छैक, कारण बाजार मे माँग पुन: अपन पूर्व समृद्ध रूप केँ पकडि रहल छैक। हालहि निर्मित एकटा मैथिली सिनेमा ‘हाफ मर्डर’ एकर अनुपम उदाहरण छैक, लगभग भारतक हरेक मैथिलीभाषी बाहुल्य क्षेत्र सँ एकर माँग होयब शुभ संकेत थिकैक जे मैथिली भाषा मे फेर बहुत पैघ संभावना बनतैक।
जरुरत छैक जे राज्य सँ एकर संरक्षण लेल हमरा लोकनि सशक्त बनैत निश्चित अनुदान केर लगानी करा सकी। यथा – मैथिली भाषा मे विभिन्न तरहक सरकारी प्रकाशन करौनाय, मैथिलीभाषी लेल समूचा भारत मे माँग अनुरूप मैथिली भाषाक शिक्षक नियुक्त करौनाय, मैथिली सँ जुडल रंगकर्म, ललितकला, चित्रकला लेल विशेष प्रशिक्षण केन्द्र केर निर्माण करौनाय, मैथिली साहित्य केर पठन-पाठन लेल पुस्तकालय केर स्थापना केनाय, मैथिली मे लेखनी क्षेत्र मे योगदान बढेबाक लेल विभिन्न पुरस्कार ओ सम्मान आदि केर घोषणा करौनाय, मिथिला लोक-संस्कृतिक संरक्षण हेतु सालाना लोक-उत्सव केर आयोजन वृहत स्तर पर करौनाय, विद्वत् सभा द्वारा श्रुति-इतिहास सँ लिखित इतिहास पर चर्चा-परिचर्चा करौनाय, आदि। वगैर सरकारी सहायता एहि विलक्षण मीठ भाषाक अस्तित्व जरुर खतराक घंटी बजबैत देखा रहल छैक। कारण निजी प्रयास किछु निश्चित दायरा तक प्रभावकारी भऽ सकैत छैक, वृहत स्तर पर राज्य केर नीति आ अनुदान सँ मात्र कोनो जादुइ प्रभावक उम्मीद कैल जा सकैत छैक।
एक बात अति महत्त्वपूर्ण जे देखय मे अबैत अछि ओ छैक ‘स्वसंरक्षण’। कियो कतबो ई कहि दौक जे मैथिली-मिथिला मे मात्र सीमित सक्षम वर्ग आगाँ रहैत अछि, मुदा कठोर वास्तविकता ई छैक जे सौ-सैकडा मे एहेन संरक्षणक विषय आ चिन्तन स्वाभाविके १ स २% लोक मे भेटैत छैक। आइ ककरा फुर्सत छैक जे ओ अपन निजी भौतिक विकास छोडि यथासत्य आध्यात्मिक विकास प्रतीत होवयवला कोनो विषय केँ चुनि आगू बढत? नहि! ई सब दिन मात्र विरले वर्ग मे विकसित होइत रहल अछि आ वैह वर्ग केँ सभ्यता-संस्कृतिक संरक्षक इतिहासो मानैत रहल अछि। राजनीति कोनो तरहक गंध-दुर्गंध-सुगंध भले पसारैत रहय, लेकिन आध्यात्मिक स्वरूप यानि अदृश्य सत्य यैह छैक जे ‘तपस्वी-वर्ग’ एहि मर्त्यलोक केँ जियबैत छथि।
आइ महाभारतक समरमे मैथिलीरूपी अर्जुनकेर रथक झंडा पर भले महावीर विक्रम बजरंग नहि सवार होइथ, भले श्रीकृष्ण समान राज्य-संचालक ओहि रथक सारथि नहि होइथ, द्रोण, कृपाचार्य, भीष्म, सब कियो कौरवीसेना मे आरो बेसी सबलता सँ जुटल होइथ; आर तऽ आर, स्वयं पाण्डव एहि मतक खण्डन करय मे आपसी खण्डित अवस्था केँ ग्रहण करैथ जे मैथिली लेल महाभारतक युद्ध किऐक हो, तखनहु जँ मैथिलीक झंडा आपरूपी फहराइत हो, महाभारतक युद्ध आपरूपी अर्जुनक पक्ष मे अबैत हो, एहि सँ नीक दिन दोसर कोनो नहि भऽ सकैत छैक।