अपन स्वार्थ सँ ऊपर उठिकय समाज लेल जिनाय सिखू

जगजननी जगदम्बाक दरबार सँ शिक्षा

 
प्रस्तुत तस्वीर भगवतीस्थान (दुर्गाजीक दरबार) कुर्सों-नदियामीक थिकैक। भगवतीक दरबार हम अपन बाल्यकाल सँ बहुत नजदीक सँ देखैत आबि रहल छी, बहुत किछु सिखबाक आ बुझबाक संग-संग कतेको रास चमत्कार आ भगवतीक लीला सब देखबाक, गुनबाक आ सुनबाक लेल सेहो भेटल अछि। मनुष्य जखन अपन जीवन अस्तित्व मे अबैत अछि त ओकरा मात्र अपनहि पेट टा पोसबाक लेल नहि अपितु अपन परिवार, समाज, समुदाय, संसार आदिक भार सेहो वहन करय पड़ैत छैक। हालांकि आजुक कलि-कराल कलियुग मे ९९% लोक अपनहि जंजाल मे तेना जकड़ल रहैत अछि जे ओकरा एहि सँ फुर्सत भेटब कठिन भऽ जाइत छैक, ओ कि दोसर लेल करत वा करय लेल सोचत! तैयो मिथिलाक लोक जे अपन बाप-पुरखा के संस्कार केँ कनिकबो बुझैत अछि से निश्चित अपने एक साँझ भुखलो रहि जायत लेकिन सामाजिक हितक कार्य मे जरूर अपन भागीदारी जतबैत अछि।
 
भगवतीस्थानक रेख-देख आ विकास केर कार्य लेल हमरा सभक परिवार (कुर्सों दक्षिणबाड़ि ड्योढि) जिम्मेदार अछि। हम जखन बड छोट रही – १९७० केर दशक मे मातारानी साधारण फूसक घर मे छलीह। ताहि समय गरीबी चरम पर छल संरक्षक परिवारक। आइ जेकाँ नगदी प्रवाह ताहि समय बिल्कुल नहि छल। मातारानी मे आस्था धरि ओतबे रहल सब दिन। बल्कि आइ सँ बेसी रहल पहिने से कहि सकैत छी। कारण भोरबे राति सँ जे भगवतीक पूजा लेल भक्त-श्रद्धालू आ विशेष रूप सँ माय-बहिन लोकनिक भीड़ लगैत अछि से पहिने बेसी रहय। हमर गामक त १००% माता-बहिन आ कतेको भक्तमान पुरुखो लोकनि नित्य भोरबे राति मे पोखरि मे स्नान कय केँ लोटा मे जल भरि फुलडाली मे फूल भरिकय भगवतीक पूजा करैत श्रीसीताराम भगवान, श्रीमनोकामना महादेव, आदि समस्त मन्दिर मे पहुँचिकय पूजा करैत छलथि आ आइयो धरि कतेको लोक करिते छथि।
 
त कहि रहल छलहुँ जे मन्दिर के रूप १९७० केर दशक मे साधारण फुसघर छल, माटिक भित्ता आ खर्हक चार! नवकी भगवती (दुर्गा पूजा लेल नव मूर्ति) लेल सेहो एकटा घर छल जे एहने माटि सँ बनल रहय। पूजा सँ पहिने भरि गामक लोक केर परस्पर सहयोग सँ चार वगैरह छरायल जाइत छल। धीरे-धीरे संरक्षक परिवारक सन्तान सब मे एकटा स्फुरणा एलैक आ सब कियो अपन एक दिनक आय (वेतनभोगी लोकनि मात्र) मन्दिर केर विकास लेल जमा करब शुरू करय लागल आर एहि सँ भगवतीक मन्दिरक रेख-देख आदिक काज होबय लगलैक। अहाँ विश्वास करब? जे-जे अपन समर्पण भाव सँ भगवतीक सेवा मे लागि गेल ओकर दिन-दशा तुरन्त बदलय लगलैक। नवकी भगवतीक घर आ पुरना मन्दिर आदिक स्वरूप केँ बदलबाक महत्वपूर्ण कार्य १९८० केर दशक सँ आरम्भ भेलैक। एम्हर भगवतीक घर फूस सँ सिक्कमी भेलैक त संरक्षक परिवार सभक घर सेहो फूस सँ सिक्कमी मे परिणति पाबि गेलैक। फेर १९९० के दशक आयल त आरो विशेष विकास केर कार्य सब भेलैक, चहारदिवाली लागि गेल, कम्पाउन्ड मे साफ-सफाई आदिक कार्य कय देल गेलैक, पुरना भगवतीक घर त पहिले बेर मे पिटुआ (सुरखी-चुना-रोड़ी सँ बनल मसल्ला सँ) पक्का बनायल गेल छल, आब नवकी भगवतीक घर आदिक काज सेहो पक्कीकरण दिश बढि गेल छल। फेर २००० के दशक आयल आ विकासक काज चरमोत्कर्ष दिश उन्मुख भऽ गेल। आइ २०२१ मे एहि ठाम अहाँ एक सँ बढिकय एक निर्माणकार्य आदिक दर्शन कय सकैत छी, सुन्दर फुलवारी सेहो देखि सकैत छी। मण्डप, चबूतरा, ढोलिया घर, ब्राह्मण-कुमारि खुएबाक आ भक्त-श्रद्धालू लोकनिक बैसबाक सँ लय सब उद्देश्यक पूर्ति लेल उचित स्थान बनायल जा चुकल अछि। प्रत्येक वर्ष एहि ठाम कोनो न कोनो काज होइते टा अछि।
 
एहि सब मे हमर अपन अनुभव संरक्षक परिवारक एक सदस्यक रूप मे यैह अछि जे अपनहि टा स्वार्थ मे रहनिहार सब दिन अपनहि धरि उल्झन मे रहि गेल करैत अछि, आ जे सार्वजनिक हित केर कार्य मे बढि-चढिकय भाग लैत अछि ओकरा भगवती सेहो उन-सँ-दून कय दैत छथिन। भगवतीक फूसक घर सँ सिक्कमीक घर होइत पक्काक घर आ विभिन्न निर्माणक काज जेकाँ योगदान कयनिहारक दिन-दशा सेहो दिन-ब-दिन बदलैत आ बढैत-फूलैत चलि गेल।
 
हमरा बुझने सेम थ्योरी हर गाम, हर ठाम आ हर अभियान मे होइत छैक। एकटा हिन्दी मे गीत छैक न –
 
गरीबों की सुनो, वो तुम्हारी सुनेगा
तुम एक पैसा दोगे, वो दस लाख देगा
गरीबों की सुनो….
 
एकर अर्थ यैह छैक जे सिर्फ अपन स्वार्थ मे व्यस्त नहि रहू, अपना संग-संग गाम-समाज आ चारूकात जाग्रत अवस्था मे अपना भरि सर्वोत्तम योगदान दैत मस्त रहू। अहाँ कहियो घटल नहि रहब। बढोत्तरी होइते चलि जायत।
 
जय मिथिला – जय जानकी!!
 

हरिः हरः!!