एहि घोर कलियुग मे मनुष्यक नैतिकता केर एहेन पतन भऽ गेल अछि जे अपन अति होशियारी वला बुद्धिक प्रयोग लोकक आस्था आ विश्वास सँ जुड़ल देवी-देवता ऊपर सेहो प्रयोग करब शुरू कय देल करैछ। केहेन बुधियार आ तथाकथित ज्ञानी सेहो आस्तिकता पर नास्तिकताक सवाल दागय सँ नहि बचि पबैत अछि। हालांकि गीताक उपदेश मे सभक सोच, बुद्धि आ वाणी सहित जे जतेक अस्तित्व अछि से सबटा हुनकहि स्वरूप कहल गेल अछि।
अहं सर्वस्य प्रभवो मत्तः सर्वं प्रवर्तते ।
इति मत्वा भजन्ते मां बुधा भावसमन्विताः ॥ (गीता १०-८)
भावार्थ : हमहीं संपूर्ण जगत केर उत्पत्ति केर कारण छी आर हमरहि सँ सम्पूर्ण जगत केर क्रियाशीलता अछि, यैह मानिकय विद्वान मनुष्य अत्यन्त भक्ति-भाव सँ हमरहि निरंतर स्मरण करैत छथि।
अपन जीवन मे बाल्यकाल सँ किछु अनुभूति एहेन भेल अछि जे मनुष्य अपन होशियारी आ तर्कबुद्धि सँ भले भगवानहु केर अस्तित्व पर सवाल ठाढ कय देल करय, अपन हरमुठाई मे भगवानहु केर विग्रह सब सँ खुराफात करय, मूर्ति चोरी करय, गहना चोराबय…. लेकिन शीघ्रहि ओकरा अपन अन्तर्ज्ञान खुजबाक घटना घटित होइत आँखिक सोझाँ हम देखैत आयल छी।
हमर गाम के भगवती मन्दिर – दुर्गास्थानक एकटा बड पैघ महिमा हम कि देखलहुँ जे एतय जे कियो उचकपनी आ हरमुठाई करैत अछि, ओकर प्राणक रक्षा कियो नहि कय सकल आइ धरि।
बाबा बैद्यनाथ केर मार्ग मे गंगाजल सहित कामरयात्रा मे देखलहुँ जे कनिकबो घमन्ड या कनिकबो अड़ियलपन्थी कियो देखेलक कि ओकर परीक्षा तुरन्त चालू भऽ गेल करैत छैक। ओकर वैह अड़ियल मनोभाव मे जा धरि पुनः लचक आ झुकाव नहि आबि जाइछ, मज्जाल नहि छैक जे ओ एक डेग आगू बढि सकैत अछि।
काल्हि भगवती सखड़ेश्वरी महारानी जे छिन्नमस्ता रहितो लोक आस्थाक कारण मुखाकृति सहितक मुखमण्डल आ मुकुट धारण करैत आबि रहली अछि, कियो चोरी कय लेलक। आइ किछेक घन्टाक भीतर ओ चोर पकड़ल गेल अछि। भगवतीक अस्मिता ऊपर हाथ साफ करनिहार पापाचारी लोभीक आब केहेन सजा भेटतैक से प्रत्यक्ष आँखिक सोझाँ सब देखत।
अहाँ गौर कय केँ देखू – कतहु ब्रह्मस्थान अछि, कतहु बहुत पैघ धर्मस्थान अछि, कोनो पोखरि या नदी या विशाल वृक्ष – प्रकृति केर विभिन्न रूप मे ईश्वर हेबाक आस्था जाहि कोनो स्थान मे निहित अछि आर ताहि ठाम यदि कोनो उपद्रवी कार्य कियो करैछ त ओकरा तुरन्त दण्ड भेटैत छैक।
हमर किछु विशेष मित्र लोकनिक ध्यानाकर्षण करैत कहय चाहबनि जे गीता केँ सर्वोत्तम ज्ञान कहल जाइछ आर एहि मे हम-अहाँ ओहि सब भाव केर दर्शन कय सकैत छी जे हमरा-अहाँक जीवन सँ जुड़ल अछि – मोन राखबः
सर्गाणामादिरन्तश्च मध्यं चैवाहमर्जुन ।
अध्यात्मविद्या विद्यानां वादः प्रवदतामहम् ॥ (गीता १०-३२)
भावार्थ : हे अर्जुन! हमहीं समस्त सृष्टि केर आदि, मध्य और अंत छी, हम सब विद्या मे ब्रह्मविद्या छी, और हमहीं सब तर्क करयवला मे निर्णायक सत्य छी।
त, निर्णायक सत्य सँ हम सब मुंह नहि मोड़ि सकैत छी। सदिखन सत्य मात्र केर दर्शन करहे टा पड़त। अस्तु!
नमः पार्वती पतये हर हर महादेव!!
हरिः हरः!!