आत्मचिन्तन
– प्रवीण नारायण चौधरी
आउ संग-संग यात्रा करैत छी
किनको मोन पड़ैत अछि जे होशो-हवास मे जीवन मे पहिल यात्रा कतुका कएने रही? खूब जोर दियौक दिमाग पर! हमरा लेल ई सवाल बहुत कठिन आ एकर उत्तर अप्राप्य अछि। बस कनी-कनी मोन पड़ैत अछि जे पूज्य पिताक संग साइकिल के ऐगला डंटा पर बैसिकय ककोढ़ा गेल रही। फेर दिमागक दोसर कोण सँ आवाज अबैत अछि जे सब सँ पहिने कृष्णाष्टमीक मेला देखय लेल दसौत गेल छलहुँ। ता धरि दिमागक कय टा कोण सँ आवाज आयब शुरू भऽ जाइत अछि जे सब सँ पहिने प्रभाष काका संग साइकिल पर बैसिकय भगवानपुर बुच्ची दैया सँ नोत लेबय लेल गेल रही, पैर स्पोक मे फँसि गेल छल, कटि गेल छल, से निशान आइ धरि अछि। दोसर स्मृति सब शिकायत ठोकय लगैत अछि जे गाम सँ कोस-दू-कोस के यात्रा लेल बाहर निकलब सेहो कोनो यात्रा भेलैक… आ जँ से भेलैक त प्रतिदिन खेलाइत-धुपाइत कोस-दू-कोस के यात्रा स्कूल, खेत, गाछी, मछैता, लालापट्टी, जयदेवपट्टी, हनुमाननगर, हरिहरपुर, दादपट्टी आदिक यात्रा कि यात्रा नहि छल! हाहा! अपन जीवन, अपन स्मृति आ अपना संग के ई बातचीत आइ एकटा सवाल केर जवाब तकैत करय मे आनन्द आ उमंग दय रहल अछि, लेकिन कटु सत्य यैह छैक जे बचपन मरि गेलाक बाद ओकर स्मृति सेहो मरि गेल। हँ, जे कोनो अमिट-अमर काज भेल से मोन अछि। यैह होइत छैक। जीवन मे कतेको अबैत अछि, चलि जाइत अछि, ओकर सारा (स्मारक) सेहो मटियामेट भऽ जाइत छैक। सन्तान सम्हरल आ सुझबुझ वला भेल त किछु समय धरि जुड़िशीतल मे डाबा वगैरह बान्हिकय जलार्पण करैत शीतलताक अनुभूति देलक, नहि त आजुक स्थिति वला सन्तान भेल त बिजली दाहगृह मे दागिकय डाहि देत… नाम के अस्थि लय कय गंगा मे प्रवाहित कय देत…, श्राद्धो करत कि नहि, दशगात्र निर्माणक परिकल्पनाक संग क्षौर कर्म करैत दोसर लोक मे पितर केर शरीरक संस्कार करैत एकादशा आ द्वादशा रूपी द्विदिवसीय महत्वपूर्ण श्राद्ध करैत पितरक नाम मे आवश्यक दान करबाक परम्परा तक निर्वाह करत कि नहि… शय्यादान सँ लैत खराम आ छाता, अन्नादिक दान व लोकोपयोगी ओहि सब चीज-वस्तुक दान पितरक नाम पर श्रद्धा सहित अर्पण करबाक एकटा भावना निहित श्राद्ध करबाक बात केँ ‘मृत्युभोज’ कहिकय आइ केना दुत्कारल जा रहल अछि से सब कियो देखिये रहल होयब। खैर! हम एखन अहाँ सब सँ ई नैराश्यता भरयवला यात्राक बात नहि कय रहल छलहुँ… जीवनक होशोहवास मे पहिल यात्रा माताक गर्भ सँ बाहर अबिते चेहा-चेहाकय कानिकय आरम्भ होइछ ई सब कियो जनिते छी। एहि मे कियो-कियो तुलसीदास जेहेन बच्चा, गौतम बुद्ध जेहेन बच्चा, किछु अलग तरहक रूप संग जन्म लेनिहार बच्चा सब सेहो यात्रा मे अबैत अछि, कियो हँसिते, कियो बजिते…! सामान्यतया पहिल यात्रा मानव जीवन मे माताक उदर सँ बहराइत देरी एहि संसार मे कानैत आरम्भ होइछ। ई सनातन सत्य थिकैक। सभक संग लागू होइत छैक। एकर बाद बाल्यकाल सँ वृद्धावस्था धरिक अनेकों यात्रा छैक आ से सबटा जीवन-निर्वाह लेल आवश्यक कर्म आ ताहि संग अपन मनोवस्था मे आयल विभिन्न आत्मज्ञान – अन्तर्ज्ञान सँ जुड़ल विषय-वस्तु लेल यात्रा निहित होइत छैक। एहि मे पड़ैछ तीर्थयात्रा।
तीर्थ कहल जाइत छैक सांसारिकता सँ इतर आध्यात्मिकता मे अपन आत्माक अन्तिम गन्तव्य परमात्माक समीप परिकल्पित स्थूल स्थल केँ! जेना हम सब शरीर मे छी, मुदा शरीर वास्तव मे हमर नहि छी… ई एहि संसार मे निर्मित संसारहि केर वस्तु थिकैक, ई संसारहि मे रहि जेतैक। एहि संसारक पंचतत्त्व – क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा सँ बनल ई शरीर यथार्थतः आत्मारूपी परमात्माक अंश यानि हमर-अहाँक प्रथम तीर्थ छी। ई तीर्थयात्राक शुभारम्भक बड अजीब इतिहास छैक। माता आ पिता केर संयोग सँ आरम्भ भ्रूण निर्माण सँ माताक असीम कृपा आ सहारे ई यात्रा शरीर निर्माणक प्रक्रिया केँ क्रमिक रूप सँ पूरा करैत आखिरकार नौ-दस मास उपरान्त गर्भ सँ बाहर संसारक खुल्ला आवोहवा मे अबैत छैक। आर शुरू भऽ जाइत छैक जीवनयात्रा! जन्म लैत देरी सभक दृष्टि शिशुक लिंग निरीक्षण करैत कहैत छैक बेटा भेल आ कि बेटी भेल। फेर छठिहार, नाम संस्कार, मुन्डन, उपनयन, वेदारम्भ, ब्रह्मचर्य उपासना, गृहस्थी धर्म, स्वयं माता-पिता बनब, सन्तानक प्राप्ति करब, माता-पिताक धर्म केँ स्वयं जियब, कर्तव्यपालनक संग नियम-निष्ठा मे जीवनयात्रा केँ पूरा करैत विभिन्न कीर्ति करैत पुनः अपन एहि शरीर केँ छोड़ि अपन गन्तव्य ‘परमात्मा’ रूपी परमपिताक प्राकृतिक नियम अर्थात् कर्मरूपी फलक प्रारब्ध केँ भोग पूरा करय लेल एहि ब्रह्माण्ड मे पृथ्वीलोकहि समान अनेकों लोक आ मनुष्यहि समान अनेकों योनि मे प्रवेश पबैत यात्रा केँ निरन्तरता मे राखब। ई थिकैक समग्र मे यात्रा! एहि सम्पूर्ण यात्रा मे आर कियो संग रहय वा नहि, १७ टा मित्र जे आत्माक संगहि सब ठाम यात्रा करैत अछि से सब मात्र रहत। के थिकैक ई १७ मित्र?
१. ५ तरहक प्राण – प्राण, अपान, व्यान, उदान आ समान (५ गोट उप-प्राण केर चर्चा सेहो केवल उचित सन्दर्भ लेल कहि रहल छीः नाग, कूर्मा, देवदत्त, कृकला आ धनञ्जय – एहि सभक बड़ी जोरदार व्याख्या सेहो छैक से दोसर लेख मे कहब।)
२. ५ तरहक कर्मेन्द्रिय – मुंह, हाथ, लिंग, गुदा आ पैर (एहि स्थूल संसार मे निर्धारित सम्पूर्ण स्थूल कार्य यथा बजनाय, काज केनाय, मुत्र आ वीर्य त्याग, मल त्याग आ चलनाय ई सब कयल जाइछ।)
३. ५ तरहक ज्ञानेन्द्रिय – त्वचा, आँखि, नाक, कान आ जिह्वा – (एहि स्थूल संसार मे दृश्य-अदृश्य तत्त्व केर ज्ञान करेबाक लेल ज्ञानेन्द्रिय होइछ।)
४. मन – चित्त, मानस, मनोभाव, मस्तिष्क विभिन्न अंगक प्रक्रिया केँ मन कहल गेल अछि।
५. बुद्धि – एहेन शक्ति जाहि सँ निर्णय करब, कोनो बात केँ बुझब, तर्क करब… अर्थात् वातावरणक संग मन, प्राण, कर्मेन्द्रिय, ज्ञानेन्द्रिय आदिक समायोजन करब। सब सँ बेसी महत्वपूर्ण आ जरूरी भूमिका (रोल) एकरे छैक।
त, एहि १७ मित्रक संग आत्माक चिरयात्रा मे हम-अहाँ आ जतेक तरहक जीव (दृश्य-अदृश्य) देखि रहल छी, ओ सब छैक। हमरा लगैत अछि जे लेख लम्बो भऽ गेल आ बोरिंग सेहो!! हम गूढ बात करबाक लेल ई नहि लिखि रहल छलहुँ… बस साधारण सन्देश एतबे अछि जे जीवनक यात्रा हम समस्त मानव लेल सब सँ बेसी महत्वपूर्ण अछि आर एहि यात्राक मुख्य उद्देश्य एतबे अछि जे अपन सत्रहो मित्रक संग परमपिता परमेश्वरक दरबार धरि जखन पहुँची त कलंकक कारण माथ नहि झुकल रहय। पिता संग हँसैत-मुस्कुराइत भेंट हो। ओ ई नहि कहथि जे अवसर केर सदुपयोग तूँ नहि कय सकलें! अस्तु!!
प्रस्तुत तस्वीर मे परमात्मारूपी ‘सीताराम भगवान’ माफा मे विराजमान छथि। हम सब पूर्ण जोश मे ‘जय सीताराम – जय जय सीताराम’ केर कीर्तन करैत परमधाम ‘बाबाधाम’ दिश चलायमान अवस्था मे छी। आनन्द आ परमानन्दक बरखा बरैस रहल अछि। जीवनक यात्रा मे एहि तरहक छोट-छोट तीर्थयात्रा सँ ‘हम’ सब पवित्र होइत छी, शरीररूपी वर्तमान ‘आलय’ सेहो पवित्र आ स्वस्थ होइत रहैत अछि। हमरा दिश सँ सभक लेल शुभकामना!!
हरिः हरः!!