कविता
– पवन झा ‘अग्निवाण’ @ गुमनाम फरिश्ता
मुक्त मुक्त मिथिला दहेज मुक्त चाही
मुक्त मुक्त मिथिला दहेज मुक्त चाही
मैथिल के धर्म एहि भांति हम निबाही
बेटा और बेटी में फर्क करै बाप सब
टाका के खातिर अनर्थ करै बाप सब
मर्यादा खातिर पतित बनै बाप सब
कन्यागत खातिर संताप बनै बाप सब
तुच्छ ई दहेज लेल मचल छै तबाही
मुक्त मुक्त मिथिला दहेज मुक्त चाही
नवयुग के शान यदि एकर पहिचान छै
पढल-लिखल बेटी किएक ने महान छै ?
आखिर में बेटियो त ककरो संतान छै
कन्यादान, किएक ने प्रथा पुत्रदान छै
नवप्रथा शुरू करि जगत के देखाबी
मुक्त मुक्त मिथिला दहेज मुक्त चाही
राजा जनक के ने एना समेटियौ
सीता के महिमा ने एना घटबियौ
“दोसर के देखियौ नै अपन देखबियौ”
आहाँ आदर्श बनि रास्ता देखबियौ
मिथिला के मान राखि श्रेष्ठ हम कहाबी
मुक्त मुक्त मिथिला दहेज मुक्त चाही
परिवर्तन करियौ या हैत सर्वनाश यौ
बेटी नै रहतै त हैत कि विकास यौ ?
बेटी बनाबेत अछि सुंदर समाज यौ
बेटी रखैत अछि दोसर लग लाज यौ
एहेन बेटी के कोना जीविते में डाही
मुक्त मुक्त मिथिला दहेज मुक्त चाही