कथा
– प्रीति मिश्र, पटना
शीतल वेड्स मोहन – एक आदर्श विवाह
दृश्य १
ई खिस्सा थिक मॉडर्न मिथिला के। आइ-काल्हि बेटी सब बाहर जा-जा उच्च शिक्षा हासिल करैत छथि, खूब नाम करैत छथि। मुदा बेटीक विवाह एखनहुँ धरि माय-बाबू केर सबसँ पैघ जिम्मेदारी होइछ। शीतल पढ़ैत छलीह, मेधाबी आ सब तरहें सक्षम छलीह। आब कॉलेज खत्म हैत, आब कंपीटिशन के तैयारी करब, एतबा धुनि में भोर सांझ बीति रहल छलन्हि। एम्हर बाबूजी सेहो हुनका लेल सुयोग्य वर तकैत छलाह। कियैक त बेटीक योग्यता पर कोनो संदेह नहि, मुदा विवाह समय पर हेबाक चाही से हुनकर मन्तव्य छलन्हि।
अस्तु, एकटा वर पसीन पड़लन्हि। शिक्षित, बढ़ियाँ नौकरी आ तेहने शालीन आ सुन्नर।
शीतल केर सुझाव पुछल गेल। ओ छुटितहि बजली, “कतेक पाय मे सौदा पटल बाबूजी?”
बाप केँ बेटीक क्रांतिकारी स्वभाव बुझल छलन्हि, मुदा ई बेसाहलो हुनकहि छलन्हि। बच्चे सँ बेटीक सोच आ तर्क केँ कहियो दबाव मे चुप रहय के सीखो त नहि देलखिन।
ओ बेटी केँ कहला, “बेटा गय! सिद्धांत आ असल जीवन मे अंतर होइत छैक। तोरा भाय के एक्को टका तिलक नहि लेबौक से हमर वचन भेलौक। मुदा बेटी बेर मे हमर कोन वश?”
शीतल कहली, “हम कि कोनो कुल कलंक केर काज कय रहल छी जे अहाँ एतेक धरफरायल छी। हमर कॉलेज पूरा हुए दियौक, हम अहाँ केँ गौरवान्वित करब।”
बाबूजी बजलाह, “शिक्षा आ विवाह दुनू जरूरी आ उचित समय पर जरूरी होइत छैक। दुनू मे विरोधाभास कतय छैक? तूँ पढ़ाई पर ध्यान दे, हम बाकी सब देख लेब।”
शीतल मुदा एक त नवतुरिया, दोसर प्रबल स्वाभिमानी। बाबूजी केँ फोन सँ नम्बर चोराकय लड़का केँ मैसेज पठा देलकैक।
“जौँ अहाँ केँ ई लगैत हुए जे अहाँ बड़का अधिकारी आ हम साधारण लड़की छी, तेँ अहाँ हमरा बाप सँ टका गिना लेब त धोखा मे छी। कियैक कि पाइ त बाबूजी देहो बेचिकय दय देता, मुदा बेदी तर हम किन्नहु नहि बैसब।”
दृश्य २
एम्हर मोहन केँ ई सब पाइवला कुटुमैतीक बारे मे किछु पता नहि। शीतल केर मैसेज देखि ओ अवाक् रहि गेलाह। स्वभाव सँ बहुत मजकिया लोक, से शीतल केँ मैसेज मे जवाब देलखिन, “अहाँक मैसेज करय के बहाना बढ़िया भेट गेल। चुनौती स्वीकार अय, वेदी तर त आब अहीं केँ बैसायब, चाहे कोरे मे उठाकय कियैक न आनय पड़ि जाय।”
आ तुरंत अपन माय केँ फ़ोन कय केँ कहलखिन, “तोरा कहिया सँ एतेक प्रेम भऽ गेलौक पाइ सँ जे बेटा बेचय लेल तैयार छँ?”
बुढ़्ही कहलखिन्ह, “धुर जो! हम कि करब पाय लय केँ, मुदा लोक पुछत जे एहेन बेटा केँ कतेक पाइ भेटल त कि कहबैक?”
मोहन केँ हँसी लागि गेलनि। बजलाह, “माँ गय! तूँ ओकरा बाबू सँ पाइ लेबहिन, काल्हि त वैह मलिकाइन हेतौक। सब चीज आ पाइ अपना नैहर मे दइये एतौक त तूँ कि करबिहिन? तेँ ई सब चक्कर मे नहि पड़े, आ विवाहक दिन फाइनल कय केँ जल्दी बता दे। झुनकाही पुतोहु केँ हाथ धय कय लय एबौ घर।”
दृश्य ३
आइ मोहन आ शीतल केर विवाह छन्हि। आब कनियाँ तमसायल त नहि छथि जे दहेज त कैंसिल भ गेल, मुदा एतेक जल्दी विवाह ने करबाक छलन्हि तेँ कोनो विशेष प्रफ्फूलित सेहो नहि!
परिछन भेल। किशोरी सँ सुन्नर किशोर पाबिकय सासुक छाती जुड़ा गेलनि। वेदी तर मोहन शीतल केर कान मे कहलखिन, हम त आबिये रहल छलहुँ, दौड़िकय अपने कथी लेल आबि गेलहुँ?” सुनिकय शीतल केँ हंसी लागि गेलनि आ लाज सेहो भेलनि।
पाछू दिश एहि सब रहस्यपूर्ण वृत्तान्त सँ अनभिज्ञ दाय-माय कहलखिन, “देखियौ! कलजुग के रीत! मुँह फूलौने छलैक आ तुरन्ते फदका सेहो करय लगलैक!”
एवं प्रकारे शीतल केर साहस आ मोहन केर परिपक्वता सँ एकटा विवाह आदर्श समाप्त भेल।
लेखिकाक नोट – समय निकालिकय पढू आ कृपया कहू जे नीक/अधलाह केहेन लागल। अभियंता छी। साहित्य मे हाथ तंग अछि। मुदा संदेश देनाय जरूरी बुझायल से प्रयास केलहुँ। साभार प्रणाम!!