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कतय पहुँचि गेलहुँ मिथिलावासी

२५ जुलाई २०२१ – मैथिली जिन्दाबाद!!

कतय पहुँचि गेलहुँ मिथिलावासी
 
अपने समस्त मिथिलावासीक पृष्ठभूमि मे संयुक्त परिवारक संस्कृति अछि। सौंसे गाम-समाज केँ एकत्रित भाव मे कोनो कार्य निष्पादन करबाक परम्परा अछि। सब एक-दोसरक काज-प्रयोजन मे स्वस्फूर्त आगू बढिकय अबैत अछि। ओ जे कहबी छैक अपना ओतय ‘दस के लाठी, एक के बोझ’ सेहो एहि बात लेल जे संयुक्त प्रयास सँ भारी-भारी काज हल्लूक भऽ जाइत छैक, एक्के गोटे लेल ओ भारी आ बोझरूप होयब स्वाभाविक सत्य थिकैक। हालांकि मिथिला सभ्यताक ई विशेषता बड़ा तेजी सँ खत्म भऽ रहलैक अछि से चिन्तनीय विषय भेल। आपसी सद्भावना आ सहयोग मे ह्रासक कय गोट कारण छैक –
 
* संयुक्त परिवारक संस्कार लगभग समाप्त
* भिन-भिनाउज होयबाक प्रवृत्ति हावी
* भाईचारा आ परस्पर सहयोग करबाक सामाजिक व्यवहार मे कमी
* भौतिकतावादी युग केर प्रभाव – अर्थ आधारित पेशेवर सेवा-सहयोगक जमाना
* आर्थिक सबलताक होड़ – सब अपनहि मे बेहाल
 
संयुक्त परिवार मे बाबा-काकाक परिवार संग सामीप्यता त विरले कतहु भेटि रहल अछि आब; सहोदर भाइ तक मे मेल नहि देखाइछ। बहुत गहन चिन्तन कयला सँ सब बातक मूल जड़ि ‘अर्थ प्रधानताक कारण मानवीयता मे ह्रास के अवस्था’ बुझाइत अछि। पता नहि, हमर आकलन कतेक सटीक अछि! हम चाहब जे सुविज्ञ पाठकजन एहि पर अपन-अपन महत्वपूर्ण मत जरूर देथि। चूँकि पूर्वक तुलना मे आजुक समय मे सौहार्द्रता छहोंछित होइत देखि रहल छी, ई संकेत करैछ जे मिथिला जेहेन उच्च मूल्यक सभ्यता अपन अन्त दिश आबि गेल अछि। वैदिक काल सँ जेकर अस्तित्व चर्चा मे अछि ओ एहि तरहें आन्तरिक विखंडन आ विभाजित लोक समाज संग जीवन्त त नहिये टा कहल जा सकैत अछि।
 
एकटा कारण ईहो देखाइत अछि जे पूर्वक सामाजिक संरचना मे कर्म-आधारित जातीय (वर्ण) व्यवस्था विगत किछु दशक मे राजनीतिक सत्ता निर्धारण लेल दुरुपयोग कयल जा रहल अछि। आब तेली तेल पेड़य अथवा नहि, बनियां बनियौटी (दुकानदारी) करय अथवा नहि, ब्राह्मण पुरहिताइ (पंडिताइ) करय अथवा नहि, मोची जुत्ता-चप्पल सियए अथवा नहि, डोम अपन जातीय कर्म करय अथवा नहि – विभिन्न जाति-समुदायक लोक अपन जातीय लूरि सँ आजीविका आर्जनक संग सामाजिक जीवन जियए अथवा नहि धरि ओ ओहि जाति केर कुल मे जन्म लेलक त जातीय पहिचान वैह रहतैक आ हरेक ५ वर्ष पर तमाम चुनाव बेर राजनीतिकर्मी ओकर जाति कि छैक से मोन पाड़ैत ओकर वोट लय स्वयं सत्तारोहण करत, खूब जमिकय लूटत आ बीच-बीच मे अपन जातीय आधारित वोट बैंक केर तुष्टिकरण आ उन्माद हेतु हत्या, हिन्सा, बलात्कार, धौंस, धमकी, आदि अपन-अपन सामर्थ्य अनुसार करत। अर्थात् सजल-सम्हारल सामाजिक संरचना मे खलल पड़ि जेबाक कारण अराजकता स्पष्ट अछि आर एहि कारण सेहो मिथिला समाज विखंडित अवस्था केँ प्राप्त भऽ गेल अछि। लोक-समाज मे एक दोसर पर विश्वास, मैत्री आ निर्भरता मे घोर कमी आबि गेल अछि।
 
‘टके टा माता टके छी पिता,
टका च बन्धु टके छी सबटा’ –
 
आजुक अर्थक युग मे अर्थ आर्जनक विकल्प सौंसे संसार मे खुजल छैक। टका कमाउ, बाबू कहाउ! जे नहि कमायत ओ बूड़ि टा कहायत। आर टका जेना कमाउ, भ्रष्टाचार, अनाचार, कदाचार – सब किछु प्रोफेशनल स्टाइल मे चारूकात अवसर उपलब्ध भेटत। स्टेशन पर कुली बनिकय कमाउ आ कि पाकेटमार बनू – कमाय कमाउ, दुनिया केँ देखाउ आ अपन पीठ स्वयं ठोकि-ठोकि बस टका कमाउ। बड़का भैया चोरी केलाह, छोटका डकैत बनि जाउ, लेकिन टका कमाउ। भौतिकतावादी संसार मे सुन्दर प्रारब्ध कमेबाक काज नहि, बस सांसारिक वस्तु आर्जनक होड़ अछि। यैह मानवीय मूल्य आ मानवताक घोर दुश्मन बनि गेल अछि। भाइ आब भाइ केँ नहि, सब टका के बनि गेल अछि। पारिवारिक सम्बन्ध हो, सामाजिक सम्बन्ध हो – मानवताक रक्षार्थ हर सम्बन्ध मे टका प्रवेश कय गेल अछि। राजनीतिक पद लेल टका, सामाजिक सम्मान लेल टका, सत्ता हासिल करय लेल टका – ऊपरवाला अदृश्य भगवानक अवमूल्यन आ मानव-निर्मित ‘टका देव’ केर चला-चलती मिथिला जेहेन अनमोल सभ्यता आ ऋषि-मुनि-ज्ञानी केर भूमि के अपवित्र कय देलक अछि। एहि सब विन्दु पर गहींर चिन्तन करैत यज्ञभूमि मिथिला केँ बचेबाक लेल जरूर चिन्तन हो! यैह आह्वान अछि।
 
हरिः हरः!!

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