मैथिली भगवानक गीत
प्रार्थना जीवहुँ मे सब सँ श्रेष्ठ हमहीं,
मानुष तन अछि वरदान हमर।
अर्पित कृतज्ञता केर आखर,
स्वीकार करू भगवान हमर।
जीवहुँ मे सब सँ श्रेष्ठ हमहीं………
अछि अनंत ब्रह्माण्ड आहाँक,
धरती केर गणना शून्य सदृश।
धरती विशाल, रचना अनंत,
जीवहुँ में मानव शून्य सदृश।
हे नियति नियन्ता ! केहेन आँहाँ,
अछि शून्य बराबर ज्ञान हमर।
जीवहुँ मे सब सँ श्रेष्ठ हमहीं………
हम धर्म कर्म केर व्याख्याता,
हमहीं पंडित, हमहीं ज्ञानी।
हम जैह बजै छी, सैह सत्य,
अछि हमर वाक्य ब्रह्मक वाणी।
अनकर नहि बात सूनी कखनो,
हो दूर सतत अभिमान हमर।
जीवहुँ मे सब सँ श्रेष्ठ हमहीं………
धरती धन केर भंडार देलहुँ,
मनमोहक सुन्दर नील गगन।
अछि दीप्तिमान वसुधा -आँगन,
नभ सूर्य चन्द्रमा तारागण।
धन और आँहाँ सँ की मांगब,
मानव जीवन धनबान हमर।
जीवहुँ मे सब सँ श्रेष्ठ हमहीं………
बल बुद्धि विवेक ज्ञान सम्बल,
सामर्थ्य जीवनक अंग हमर।
सभहक रक्षा केर दायित्वक,
बस बोध सतत हो संग हमर।
दुःखिया के दुःख हम दूर करी,
जाबत एहि तन मे प्राण हमर।
जीवहुँ मे सब सँ श्रेष्ठ हमहीं………