बाबू कृष्णनन्दन सिंह – एक विरल व्यक्तित्व

लेख

– डा. रामानन्द झा ‘रमण’

बाबू कृष्णनन्दन सिंह: एक विरल व्यक्तित्व:
(20.07.1918-16.01.2001)
मैथिली भाषा-साहित्यक क्षेत्रमे बाबू कृष्णनन्दन सिंहक अवदानक चर्चाक सन्दर्भमे अपन बात रखबाक पूर्व हम कविचूड़ामणि काशीकान्त मिश्र ‘मधुप’क उक्तिक, जे ‘राधा-विरह’मे अछि, तकर उल्लेख करब। कविचूड़ामणि मधुप लिखैत छथि –
‘राघोपुर पुबारि-ड्यौढ़ी स्थित-
वारिज-पात-गात साक्षात,
सत्साहित्य-सुधा-रुचि शुचि-रुचि-
रुचिर-सुधाकर-यश-अवदात-।
खण्डवलाकुल-कुञ्ज-मुकुल-कुल-
रवि मैथिलीक प्राणाधार,
श्रील कृष्णनन्दन जी सिंहक
पबइत अवलम्बन सत्कार।।’
एहिमे हमर प्रतिपाद्य बाबू कृष्णनन्दन सिंहक कुल-गौरव, व्यक्तित्वक विराटता आ मैथिली साहित्यकारक प्रति सदाशयताक भाव गुञ्जित अछि।
एहिना अखिल भारतीय मैथिली साहित्य परिषदक सरिसब अधिवेशनक अपन संस्मरणमे डा. ब्रजकिशोर वर्मा ‘मणिपद्म’, जकर सभापति बाबू कृष्णनन्दन सिंह छलाह, लिखल अछि-‘गम्भीर अध्ययन मण्डित मुख-मण्डल। बाबू श्री कृष्णनन्दन सिंह इंगलैंडक ड्यूक जकाँ श्रीमन्त होइतो कला, साहित्य ओ संस्कृतिक अनन्य साधक छथि।’
आरसी प्रसाद सिंहक ‘माटिक दीप’मे अछि जे ‘राघवपुर ड्यौढ़ी पुरस्कार दए प्रोत्साहित कैने छथि, तैं हुनका प्रति हमर कृतज्ञताक भाव बूझल जाय(1958 ई.)।
मैथिलीक वरेण्य साहित्यकार सभक नजरिमे बाबू कृष्णनन्दन सिंह की छलाह, तकर ई किछु उदाहरण थिक।
पारिवारिक परिचय – मिथिलाक खण्डवला कुलक राघवपुर शाखामे बाबू कृष्णनन्दन सिंहक जन्म 20 जुलाई, 1918 ई. मे भेलनि। पिता बाबू हरिनन्दन सिंहक देहावसान हिनक शैवकालहिमे भए गेल छलनि। पितामह बाबू यदुनन्दन सिंहक अभिभावकत्वमे बाल्यकाल व्यतीत कएल। हिनक माइ छलथिन कवियत्री मोदवती। हिनक सासुरक नाम हरिलता अछि। मिथिलाक खण्डवला कुल अपन पाण्डित्यक लेल ख्यात अछि। एहि कुलमे कला, साहित्य एवं संस्कृतिक प्रति अनुराग एवं संरक्षणक चिन्ता सदासँ रहलैक अछि। तेँ ई गुणसभ बाबू कृष्णनन्दन सिंहमे स्वतः छलनि। तकरा ओ आजीवन निखारैत-चमकबैत रहलाह।
बाबू कृष्णनन्दन सिंहक मातृकुलमे सेहो वैदुष्य आ साहित्य-साधनाक सुदीर्घ परम्परा छल। जेना कहलहुँ अछि, हिनक माता स्वयं एक विदुषी छलथिन, से कोनो स्कूल-कालेज जाए नहि, अपितु सर्वथा प्रतिकूल परिस्थितिमे, स्वाध्यायसँ अर्जित हुनक पाण्डित्य छलनि। पुत्रक बालिग होएबा धरि ओ जमीन्दारीक सुचारू प्रबन्ध करैत रहलीह। हिनक एक माम छलथिन मैथिलीक ख्यातलब्ध साहित्यकार श्यामानन्द झा आ मातृमातामह छलाह मैथिलीक आद्य कथाकार एवं संस्कृतमे अनेक ग्रन्थक प्रणेता पं श्रीकृष्ण ठाकुर (‘मायक मायक मै ठकुराइन’)। एहि प्रकारेँ पितृकृल एवं मातृकुलमे प्रवाहित पाण्डित्य, भाषा-साहित्य, एवं कला-संस्कृतिक प्रति अनुरागक धार बाबू कृष्णनन्दन सिंहमे एक भए आर अधिक वेगवती भए प्रवाहित होइत रहल। बाबू कृष्णनन्दन सिंह 15 जनबरी, 2001 केँ इहलौकिक जीवन-लीला समाप्त कए, शिवत्वमे लीन भए गेलाह।
बाबू कृष्णनन्दन सिंहक अवदान:
बाबू कृष्णनन्दन सिंहक अवदान दू क्षेत्रमे अछि – समाज-सेवा एवं साहित्य-सेवा। समाज सेवाक क्षेत्रमे प्रमुख अछि राघोपुरमे अपन ड्यौढ़ीक निकट पर्याप्त जमीन आदि दान दए मिडिल स्कूलक स्थापना करब। पुनः ओतए पोस्ट आफिस खोलबाएब। राजा शिवसिंहक गढ़ आ हुनक पोखरि जे ‘घोड़दौड़’क नामसँ ख्यात अछि, हिनकहि जमीन्दारीमे छलनि। राजा शिवसिंहक गढ़पर नियमित रूपसँ आयोजन होइत छल। ‘घोड़दौड़’ पोखरिसँ भेल आयक सदुपयोग मैथिलीक पोथीक प्रकाशनमे करैत रहलाह। एहि लेल ‘हरिनन्दन सिंह स्मारक निधि’क स्थापना कएल। एहि निधिसँ मैथिलीक कतेक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ सभक प्रकाशन भेल अछि, जे सर्वज्ञाते अछि। ‘यदुनन्दन सिंह व्याख्यानमाला’ स्थापित कए मिथिलाक वैदुष्य परम्परापर व्याख्यानमालाक आयोजन होइत छल। एहि व्याख्यानमालाक अन्तर्गत डा. अमरनाथ झा, डा. आदित्यनाथ झा एवं पं गिरीन्द्रमोहन मिश्रक व्याख्यान भेल अछि। ई व्याख्यानसभ प्रकाशित अछि। मैथिलीमे लिखित-प्रकाशित पोथीपर ‘कृष्णनन्दन सिंह पुरस्कार’ दए मैथिलीक लेखककेँ प्रोत्साहित करैत छलाह।
बाबू कृष्णनन्दन सिंहकेँ बाल्यकालहिसँ ‘अखिल भारतीय मैथिल महासभा’ एवं ‘अखिल भारतीय मैथिली साहित्य परिषद’क कार्य-कलापमे रुचि छलनि। एक समयमे मैथिली साहित्य परिषदमे राजनेता लोकनिक प्रति आकर्षण बढ़ि गेल छल। ओकर दुष्प्रभाव मैथिली आ मैथिली साहित्यपर पड़ि रहल छलैक। परिषदक दोसर गोल राजनेताक बढ़ैत प्रभावकेँ मैथिली भाषा-साहित्यक लेल अलाभकर मानि चिन्तित छल। राजनीतिक दुष्प्रभावसँ परिषदकेँ सुरक्षित रखबाक लेल परिषदक मधुबनी अधिवेशन (1959 ई.)मे बाबू कृष्णनन्दन सिंह सभापति निर्वाचित कएल गेलाह। हिनक आर्थिक सहयोगसँ ‘परिषद-पत्रिका’क प्रकाशन आरम्भ भेल। अखिल भारतीय मैथिली साहित्य परिषदकेँ अपन भवन नहि छलैक। ई एक चिन्ताक कारण छल। बाबू कृष्णनन्दन सिंह परिषदकेँ भवनक हेतु दरभंगामे दू कट्ठा जमीन कीनि दान देलनि। एहि तथ्यक पुष्टि परिषदक तात्कालीन मन्त्री डा. श्रीकृष्ण मिश्र द्वारा सरिसब अधिवेशन (1967 ई.)मे प्रस्तुत रिपोर्ट आ पं श्रीचन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’क ‘मैथिली साहित्य परिषदक संक्षिप्त इतिहास’सँ होइत अछि। हिनकहि सभापतित्व कालमे तात्कालीन बिहार विश्वविद्यालयक सिनेटमे अखिल भारतीय मैथिली साहित्य परिषदक प्रतिनिधित्व आरम्भ भेलैक। बाबू साहेब उक्त सिनेटमे अनेक वर्ष धरि मैथिलीक प्रतिनिधित्व कएल। ल.ना. मिथिला विश्वविद्यालयक सिनेटमे मैथिली साहित्य परिषदक प्रतिनिधित्वक आधार ओएह प्रयास थिक। एहिना अखिल भारतीय मैथिल महासभाक अजमेर अधिवेशनमे बन्द भेल ‘मिथिला-मिहिर’क पुनर्प्रकाशनक हेतु महाराज कामेश्वर सिंहकेँ राजी केनिहारमे ओ प्रमुख छलाह। मिथिलाक्षरक प्रचार-प्रचारक हेतु पं जीवनाथ झासँ संयुक्ताक्षर सहित पूर्ण वर्णमालाक लाखहु प्रति छपाए वितरित कएल। ई सभ किछु उदाहरण थिक जे मैथिली भाषा-साहित्य एवं मिथिलाक संस्कृतिक संरक्षणक क्षेत्रमे बाबू कृष्णनन्दन सिंहक अवदानकेँ स्मरणीय बनबैत अछि।
साहित्य-सर्जना:
मैथिली भाषा-साहित्यक सम्पोषक बाबू कृष्णनन्दन सिंहक ड्यौढ़ीमे नियमित रूपसँ विभिन्न शास्त्रक विद्वान, साहित्यकार एवं कलाकारक समागम होइत रहैत छल। ओ ओहि समागमक आदरपूर्वक रसास्वादन करैत रहैत छलाह। एहि समागमक प्रभावसँ बाबूसाहबक सुप्त काव्य-प्रतिभा जागि गेलनि। मुदा, आजुक लोक जेना अक्षर धरिते काव्य-भूमिमे कूदि पड़ैत अछि, ओ से नहि कएल। ओ विभिन्न साहित्य आ शास्त्रक अध्ययनकेँ प्राथमिकता देल। इतिहास-भूगोलक ज्ञान अर्जित कएल। विश्व-साहित्यक इतिहाससँ उदाहरण दैत बरोबरि बजैत छलाह जे लगभग पचास वर्षक आयु भेलापर विचारमे परिपक्वता अबैत छैक। जीवन-जगतक अनुभव पुष्ट होइत छैक। ओहिसँ पहिने लिखित साहित्यमे भावात्मक आवेग बेसी रहैत अछि, वैचारिक स्थिरताक अभाव रहैत छैक। बाबू कृष्णनन्दन सिंह अपन एहि विचारकेँ साकार कएने छथि। लिखने छथि-
‘वाद पचासक जे छल भावी, लिखबहुमे हम मोन लगाबी,
मन के आब हमहु नहि दाबी, नित्य अकवितहिं कलम चलाबी।’
एकर उदाहरण अछि ‘कम्पकारिका’। भूकम्प भेल 1934 ई. मे। ओहि समय ओ मात्र 16 वर्षक छलाह। विवाहक एक सालहु नहि पूरल छलनि। मुदा ‘कम्पकारिका’ लिखल 1972 ई.मे। ओहि प्रलयंकारी आतंकक अनुभवकेँ ओ 36 वर्ष धरि जोगौने रहलाह। लिखने छथि-
‘घरमे एकसर हमही लाल, भेल विवाहो पुरल न साल।
जीवन-यौवन परसल थाल, बाँचल निश्चय कालक गाल।’
मुदा, आइ-काल्हि हमरालोकनि देखैत छी ‘कोरोना भाइरस आएल कि नहि आएल, कतेको व्यक्ति उठि बैसल छथि। भूमण्डलीकरणसँ उपजल व्यावसायिक मनोवृत्तिक प्रभावसँ नव-नव दिवस मनाओल जा रहल अछि, ओहि अवसरपर तँ कविक पथार लागि जाइत अछि। घरमे पत्नीकेँ प्रताड़ित करएबला ‘महिला दिवस’पर कविता लिखैत छथि। एहन प्रचारात्मक भूखसँ बाबू कृष्णनन्दन सिंह मुक्त छलाह। ओ लिखने छथि, ‘नाटकीय ढंग हम मैथिली नाटकेमे चाहैत छी।’
बाबू कृष्णनन्दन सिंहक कृति दू प्रकारक अछि – मौलिक एवं अनुवादित। मौलिक कृतिमे अछि – 1. कम्पकारिका (1972), 2. स्वधा स्वाहा वषट्कार(1987), एवं 3. सीता-रामायण(1989)। सीता-रामयणक चारि खण्ड प्रकाशित अछि- 1. सीता-रामयण मिथिलाकाण्ड, 2. सीता-रामयण तपवनकाण्ड, भाग-1, 3. सीता-रामायण तपवनकाण्ड, भाग-2 तथा 4. सीता-रामायण युद्धकाण्ड।
अनुदित कृतिमे अछि भर्तृहरिक तीनू शतकक भावानुवाद(1973) – 1. भावभर्तृहरि – शृंगारशतक, 2. भावभर्तृहरि – नीतिशतक एवं 3. भावभर्तृहरि-वैराग्यशतक। एकर अतिरिक्त अखिल भारतीय मैथिली साहित्य परिषदक विभिन्न अधिवेशनक अवसरपर देल गेल हुनक अभिभाषणमे व्यक्त विचार सेहो विचारणीय अछि।
कम्पकारिका – ‘कम्पकारिका’ 1934 ई. मे आएल विध्वंसकारी भूकम्पक वर्ण थिक। एहिमे चारि खण्ड अछि – भूमिका, भूकम्प वर्णन, भूकम्प पूर्व मिथिला, तथा भूकम्पोत्तर स्थिति इत्यादि। कविवर सीताराम झाक भूकम्प-वर्णन भूकम्पक किछु वर्षक अभ्यन्तरहि प्रकाशित भए गेल छल। जेना पूर्वमे कहल अछि बाबू साहेब 36 वर्ष धरि भूकम्पक त्रासकेँ भोगैत रहलाह। लिखने छथि – ‘खंड प्रलय सन छल भूकम्प, बिसरे नहि हमरा हड़कम्प।’
बड़का भूकम्पक अवसरपर महात्मा गाँधीक आगमन भेल छल। ओहिसँ सहायता कार्यमे गति आएल। मुदा, किछु व्यक्ति आएल सहायताकेँ सूड़कि मालोमाल भए गेल छलाह। तकरहु उल्लेख ‘कम्कारिका’मे अछि –
‘डेरा देल महतमो गाँधी, मदतिक जोर बहौलनि आँधी,
जै सँ कते सुखित भ’ गेल, दाबि चोरा जे कैंचा लेल।’
भूकम्प पीड़ित लोकक सहायताक लेल आएल कैंचाकेँ दवबाक प्रवृत्तिकेँ रोकबाक हेतु डा. राजेन्द्र प्रसादक प्रयासक उल्लेख करैत लिखैत छथि जे ओहिसँ इचना-पोठी जालमे फँसल, भाकुर-बोआर जाल फाड़ि भागि गेल। –
नाव खेब राजेन्द्रे बाबू, भाकुर ब्बार डोर बेकाबू,
इचना पोठी जाले जकड़थि, वार बिलाड़ स्यार नहि सकड़थि।’
समाजमे भ्रष्टाचार बढ़ि गेल छल। बिना घूसक कोनो काज नहि होइत छलैक, जे चलता-पुर्जा छल, ओकरे काज सुतरैत छलैक, लोक-लाज सेहो समाप्त भए गेल छल –
‘भ्रष्टाचार न ककरो लाज, बिना पैरवी हो नहि काज।
निश-दिन सफले लोफर काज, तै सँ नहि क्यो आबे बाज।’
गाम-गाममे स्थापित कुटिर उद्योग स्थानीय किछु लोकक चालि आ स्वार्थवश समाप्त भए गेल –
‘राघोपुरमे छल एक फैक्ट्री, गामक लोकक नाकक नहि प्री,
रार काज नहि जैं कर, बढ़े न जनिका ऐ सँ श्री।’
समाजमे कोन प्रकारक शोषण व्याप्त छल, तकर परिचय एहिसँ भेटैत अछि। ‘कम्पकारिका’मे इहो वर्णित अछि जे समाजमे व्याप्त पर्दा-प्रथाक कारणकेँ भूकम्पमे मृतकक संख्या बेसी छल। एहि प्रकारकेँ कम्पकारिका’मे मात्र 1934 ई.क भूकम्पक आतंक आ ध्वंसक वर्णन नहि अछि, एहिमे 1962 ई. अष्ठग्रह-योग आ चीनी आक्रमणक चर्चा आ समाजमे व्याप्त भ्रष्टाचारक वर्णन सेहो अछि। एहि अर्थमे कविवर सीताराम झाक भूकम्प वर्णनसँ ‘कम्पकारिका’ व्यापक एवं विशिष्ट अछि।
‘स्वधा स्वाहा वषट्कार’- ई संकटग्रस्त मिथिलामे विधि-व्यवस्थाक संस्थापक मिथिला राज्योपार्जक म.म. महेश ठाकुरपर केन्द्रित अछि। एहिमे चारि खण्ड छैक। महामहोपाध्याय महाराज महेश ठाकुरक संक्षिप्त जीवनी, महेश-अकबर संवाद, काशीक यात्रा एवं शुभंकर ठाकुरक प्रति उपदेश इत्यादि। म.म. ठाकुर एवं म.म. शुभंकर ठाकुरक वार्तालाप तँ आर अधिक गुम्फित अछि। आरम्भहिमे कवि लिखने छथि ‘तथ्ये कथ्य महत्त्वक, शेष लेख जड़ तत्त्वक।’ पुनः लिखैत छथि-
‘एहिमे साहित्यिक चमत्कार नहि,
मम उद्देश्य केवल अभ्युदय, परिवार,
समाज सराष्ट्र नवोदय।’
म.म. महेश ठाकुरक प्रसंग लिखैत छथि जे ओ धनुर्वेदक सिद्धान्तक आधारपर वैचारिक रणमे विजयी होइत रहलाह। काशीसँ बजाओल गेलापर म.म. शुभङ्कर ठाकुर भौरामे किलाक निर्माण कएल-
‘आबि सुशोभित मिथिला, बनबाओल भौरा किला।
मिथिला किला कमलमय रम्य सरोवर अक्षय।’
विचार एवं दार्शनिकतासँ भरल ‘स्वधा स्वाहा वषट्कार’क शैली आ प्रयुक्त शब्दावली संश्लिष्ट एवं क्लिष्ट अछि। सर्वबोधगम्य नहि अछि।
सीतारामायण: मैथिलीमे रामकाव्यक परम्परा कवीश्वर चन्दा झासँ आरम्भ भेल अछि। महाकवि लालदास ओहिमे सीता तत्त्वक प्रधानता दए विस्तार कएल। तकर बाद रामक अपेक्षा सीतापर केन्द्रित बेसी साहित्यक सर्जना भेल। राघोपुर ड्यौढ़ीमे राम-दरवारक मूर्तिक निर्माण कराए पूर्ण भक्ति-भावसँ रामनवमीमे पूजा-अर्चना आ उत्सव प्रतिवर्ष होइत छल। ओहि अवसरपर गायक, नर्तकक संग विद्वानलोकनिक आगमनसँ वातावरण सीता-राममय रहैत छलैक। एहि सभक प्रभाव निश्चित रूपसँ बाबूसाहबपर पड़ल होएतनि। ओ विशेषतः माइक प्रेरणासँ ‘सीता-रामायण’क रचना कएल। एतहु मातृशक्तिएक प्रधानता अछि। आन रामायणमे पहिल अछि बालकाण्ड। एहिमे पहिल अछि मिथिलाकाण्ड। ई नामकरण मिथिलाक प्रति अतिशय प्रेम-भावहिक द्योतक थिक। एहि काण्डक वर्णित प्रमुख विषय अछि – विश्वामित्र-अगस्त्य संवाद, विश्वामित्र-वशिष्ठ संवाद, विश्वामित्रक महाराज दशरथसँ याचना, विश्वामित्र-राम संवाद, तारका वध, आदि। अन्त होइत अछि श्रीसीतारामक विवाहक संग। एहिना प्रकाशित अन्यहु काण्डसभ विभिन्न उपशीर्षकमे विभाजित अछि। सीता-रामायणक प्रकाशित काण्ड सभसँ कविक जे दृष्टिकोण स्पष्ट होइछ र्से थिक, सीता-राममे भक्ति, रामक अपेक्षा सीताक महत्ता, मिथिलाक गौरवगाथा, भारतीय संस्कृति एवं शास्त्रादिक महत्ता तथा देशक हितमे आयुर्वेदे नहि धनुर्वेद अर्थात् स्वास्थ्य एवं शक्ति आवश्यक अछि। ओ लिखैत छथि –
‘वैह विद्या जे राख स्वतन्त्र, परतन्त्र कुभय नहि कथमपि तन्त्र।
सुराज विकाशक सर्व, केवल नाशे दुष्ट कुगर्व।
ने व्यर्थ विवाद घमर्थन, स्वच्छ बुद्धि सुख वर्द्धन।
स्वाधीन स्वास्थ्य तन मन, देश सुरक्षा ज्ञानो जन।
वेदांगे आयुर्वेद, सब जाने किछु धनुर्वेद।।’
जेना ‘कम्पकारिका’मे अथवा ‘स्वधा, स्वाहा वषट्कार’मे शास्त्र-पुराण, ज्ञान-विज्ञान इतिहास-भूगोल आ ओहि प्रसंग कविक विचार अछि, ओहिना ‘सीता-रामायण’ मात्र भक्तिक अभिव्यक्ति नहि थिक, सीता-रामक कथाक माध्यमसँ देश, काल आ पात्रक सन्दर्भमे कविक प्रतिक्रियाक अभिव्यक्ति थिक। मुदा, ई अभिव्यक्ति सहज-सरल आ सुबोध नहि अछि।
अनुवाद: संस्कृत साहित्यमे ‘भर्तृहरिशतकम् महत्त्व अछि। एहिमे तीन शतक छैक – नीतिशतकम्, शृंगारशतकम् आ वैराग्यशतकम्। ओकरहि भावानुवाद थिक ‘भावभर्तृहरि। भावानुवादित तीनू शतक पृथक-पृथक प्रकाशित अछि। नीतिशतकक आरम्भमे अनुवादकक एकपत्र अछि। ई ओकर भूमिका थिक। वैराग्य शतकसँ एक अनुवाद उदारणार्थ प्रस्तुत अछि –
‘क्यो बढ़थि वैराज्ञ पथपर, नीतिएमे क्यो घुमथि वा,
शृंगारमे वा रमथि क्यो जन, जनिक चित्तक भूमि जेहन।’
भर्तृहरिक नीति शतकक मैथिली अनुवादसँ मैथिलीक अनुवाद साहित्यक श्रीवृद्धि भेल अछि।
अखिल भारतीय मैथिली साहित्य परिषदक सरिसब अधिवेशनक अभिभाषणमे मैथिली भाषा, मैथिली साहित्य, मिथिलाक्षरक प्रचार-प्रसार एवं सरकारक मैथिलीक उपेक्षाक प्रसंग व्यक्त विचार अत्यन्त महत्त्वपूर्ण एवं विचारणीय अछि। ओहिमेसँ किछु बिन्दु एहि प्रकारें अछि-
1. भाषा-विभाषाक प्रश्न मैथिलीक सभसँ पैघ समस्या अछि। किन्तु से हम तखनहि टा मानि सकैत छी जँ भाषा वा साहित्यक प्रेम हमरा किंचितो नहि हो। नहि तँ ई समस्या कोनो समस्ये नहि थिक। वा जँ थिके तँ एकर समाधान राजनीतिक, कूटनीतिक अथवा शास्त्रार्थनीतिसँ नहि भए सकैछ। एहि लेल केवल स्वभाषाक प्रेम चाही। मैथिलीक माधुर्य-बोध चाही। प्रेमपूर्वक अपनो भाषा पढ़ी-पढ़ावी, सएह टा एकर निराकरण भए सकैछ। स्वभाषाक आदर्श स्वरूपक प्रति श्रद्धा रहने कालान्तरमे एकर समाधान भए जाएत। अन्यथा बखेड़ाक रूप धारण कए लेत।
2. मैथिलीक साहित्यकारमे गुटबाजी ततेक बढ़ि गेल अछि जे अपन गुट्टसँ बाहर समानधर्माक खोजो आब निरर्थक भए गेल अछि।’
3. जन गणकेँ केवल बोटे टा धन रहि गेल छनि। ओ ततबहिसँ सुखी छथि।
4. ओ उद्धत आन्दोलनक घोर विरोधी छथि। मुदा, जखन हिन्दीक पुरोधालोकनि जनताक भाषा मैथिलीकेँ संवैधानिक रूपसँ भारतक अन्य भाषाक समकक्ष नहि देखए चाहैत छथि तँ तखन विद्रोह क्रान्तिक ज्वालाक आवाहनक इच्छा भए जाइत छनि।
5. बाबू कृष्णनन्दन सिंह अङरेजीक दृष्टिसँ मैथिली साहित्यक समालोचनाकेँ सामाजिक क्षेत्रक कुरीति जकाँ साहित्यिक क्षेत्रक एक कुरीति मानल अछि। एकरा ओ परम घातक मानैत छथि।
बाबू कृष्णनन्दन सिंह लिखने छथि –
‘बुद्धि बाहु के बाद, शस्त्रो प्रगति निर्विवाद
बाहु बाद अस्त्रोक विचार तैं धनुर्वेद ऋषि उचार।’
अर्थात् शक्ति सम्पन्न होएब आवश्यक अन्यथा अर्जित सम्पदाक संरक्षण सम्भव नहि होएत। एहिसँ ई स्पष्ट अछि जे कोनो राष्ट्र अपन राजनीतिक स्वतन्त्रातक रक्षा आ सांस्कृतिक सम्पदाक संरक्षण, बिना शौर्य-शक्तिक नहि कए सकैत अछि। ई मिथिला, मैथिल आ मैथिलीक सन्दर्भमे सेहो प्रासंगिक आ महत्त्वपूर्ण अछि।