धर्म दर्शन: ॐ तत्सत्

ॐ तत्सत् मीमाँसा

omॐ, तत् आ सत् – ब्रह्म केर परिचायक यैह तीन नाम – एहि तीन सँ ब्रह्म, वेद आ यज्ञक भान होइत अछि। भगवत् भजन, दान आ तप – शास्त्रीय वचनानुसार आ वेदानुसार, शुरुआत ‘ॐ’ सँ कैल जाइछ। तहिना ‘तत्’ केर उद्घोष, बिना कोनो प्राप्तिक इच्छा, विभिन्न पूजा-कर्म, तप आ दान करनिहार केँ मुक्ति दैत अछि। यथार्थ आ सत्य-सुन्दर केर परिचायक ‘सत्’ होइछ, कोनो शुभ कार्य करबाक लेल सेहो ‘सत्’ केर प्रयोग कैल जाइछ। ॐ तत्सत्!!

कर्म सिद्धान्त

यस्त्विन्द्रियाणि मनसा नियम्यारभतेऽर्जुन।
कर्मेन्द्रियै: कर्मयोगमसक्त: स विशिष्यते॥३-७॥

जे मन सँ ज्ञानेन्द्रिय केँ नियमित-नियंत्रित राखि कर्मेन्द्रियकेँ कर्मयोग मे लगबैत अछि ओ विशिष्टता प्राप्त करैत अछि।

नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मण।
शरीरयात्रापि च ते न प्रसिध्येदकर्मण:॥३-८॥

अहाँ नियत कर्म करू, अकर्म सँ कर्म बढियाँ होइत छैक। बिना कर्म केने तऽ शरीरोक निर्वाह संभव नहि होइत छैक।

यज्ञार्थत्कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽय कर्मबन्धन:।
तदर्थं कर्म कौन्तेय मुक्तसङ्ग: समाचर॥३-९॥

यज्ञ लेल कर्मक अतिरिक्त कर्म सँ लोक बंधन मे पड़ैत अछि, तैँ, अहाँ, पूर्ण स्वतंत्रताक संग मात्र यज्ञ लेल कर्म करू।

The world is bound by actions other than those performed for the sake of Yajna (religious rite, sacrifice, worship, an action for spiritual motive), do thou, therefore, O son of Kunti, perform action for Yajna alone, devoid of attachment.

हम मानवक जीवन मे एहेन कतेको क्षण अबैत छैक जतय मन छटपटाइत छैक, दिमाग गरमाइत छैक, आत्मा सेहो समग्र मे आगाँ कि करी आ नहि करी ताहि द्विधार मे मौन भऽ गेल बुझाइत छैक। एहेन समय परमात्मा – यानि सबहक पिता फेर आत्मारूपी प्रत्यक्ष पुत्र केँ मार्गदर्शन करैत छथिन।

आत्मा फेर अपन निवास-स्थल एक मानव शरीर केँ संचालन लेल १७ सहचरी मित्र (५ ज्ञानेन्द्रिय, ५ कर्मेन्द्रिय, ५ प्राण, मन आ बुद्धि) केँ निर्देश दैत छैक जे आब एना करू…..

उपस्थित निर्देश मनुष्य लेल तखन काजक छैक जखन ओकरा ई नहि बुझय मे अबैत छैक जे आब कोना करब, कि करब…। भगवान् कहैत छथि जे अहाँ जे किछु करी केवल यज्ञ लेल कैल गेल से बुझू। बाकी जतेक काज करब ओ सब बंधन मे बन्हबे टा करत। आसक्ति उत्पन्न करबे टा करत। कामना आ क्रोध सँ संगत करेबे टा करत। लोभ, मोह, मत्सर आ ईर्ष्या उत्पन्न करबे टा करत। तैँ, कर्म करब नैसर्गिक होयबाक कारणे अहाँ ओ कर्म करू जाहि मे आसक्तभाव नहि रहय, सब कर्म ईश्वर प्रति समर्पित रहय आ बंधन सँ मुक्त रहय।

आब ऐगला तैयारी लेल एक‍‍-एक दिन घटल जाइत छैक। मन मे कदापि कोनो तरहक कीड़ा केँ नहि पोसू। ई जतेक घुरघुरायत, नियम-संयम ततबे टूटत। सदैव परमपिता परमेश्वर पर ध्यान राखि आहार-विहार केँ पर्यन्त हुनके तरफ लगाउ।

आउ, किछु गाबि ली:

एहि जीवन मे कत-कत घुरछी
जुनि फँसू देखू आयत मुरछी!!-२

हम राखी सदा बस ईशक शरण
नहि मारी माथा ढेर रास!
एनाय-गेनाय एतय देखू यौ मिता
ई सबटा प्रभुके चास!!

हरि: हर:!!