सम्पादकीय
मिथिला सनातन रहल आ रहत
मिथिला सदा-सनातन आ हिन्दू धर्मक इतिहास-पुराण मे उद्धृत होयबाक कारण स्वतः परिचित छैक। विगत कतेको सदी सँ मिथिलाक भौगोलिक पहिचान छहोंछित अवस्था मे छैक सेहो सर्वविदिते अछि, तथापि अपन ऐतिहासिक-सांस्कृतिक आ आध्यात्मिक-धार्मिक पहिचानक कारण ई स्वतः जीवित सेहो अछि। जखनहि मर्यादा पुरुषोत्तम राम जेना महानायक केर चर्चा होइछ त स्वाभाविक रूप सँ महानायिका सीता केर नाम सोझाँ अबैत छन्हि आर से एहि मिथिलाक जनकक आत्मजाक रूप मे जगविदित छथि। एतबा कहाँ! सीताक विभिन्न स्वरूप पर जखन चिन्तन-मनन करब त स्वाभाविक तौर पर अहाँ मिथिलाक उत्तमोत्तम स्वरूप केर चिन्तन करय लागब। सीता ओहिना नहि अयलीह एहि धराधाम मे। अपन समस्त विग्रहक संग सीताक आगमन भेलनि मिथिला मे, ठीक जेना राम अर्थात् स्वयं श्रीमन्नारायण अपन समस्त विग्रह (चारू भाइ लोकनि) संग अयलाह। ई त स्पष्टे अछि जे एहि वेद-पुराण वर्णित कथा-वस्तुक संग मिथिला सदा-सदा लेल जीवन्त रहबे करत।
आब सवाल उठैत छैक जे हम सब कोन मिथिला केँ जियेबाक लेल आवाज उठबैत छी?
हम क्षणभंगुर मानव अपनहि क्षणभंगुरता सँ आन्तरिक रूप सँ पूर्ण भयभीत रहबाक कारण यदा-कदा अपन पहिचान प्रति अनास्था आ कृत्रिम प्रेम केर कारण मिथिलाक क्षीण-भिन्न अवस्था सँ चिन्तित होइत छी। जँ चिन्ता केँ दूर करबाक उपाय निजत्वक रक्षा, कर्तव्यपालन आ निरन्तर जनजागरण मे समय देबैक तखन त निःफिक्र भऽ जायब; आ जँ छूछ चिन्ता आ चिन्तक बनबाक नौटंकी करब त ई चिन्ता चिताक संगे जायत। हमर अनुभव मिथिला लेल काज करनिहार सभक संग रहिकय यैह दू टा बात देखेलक। अगबे चिन्ता आ ताहि चिन्ताक आड़ मे सिर्फ अपन मनमानी करबाक रवैया बेसी देखौलक। हमर मिथिला समाज मे राजनीतिक जागरुकता विगतक विदेशिया शासकक उपनिवेशी सम्राज्य आ तेकर देल सामन्तवर्गक आन्तरिक उपनिवेशवाद मे दबल-कुचलल आ थूरल बुझाइत अछि। एहेन अवस्था मे मिथिलाक नाम केवल छद्म स्वार्थपूर्ति लेल निजी महात्वाकांक्षाक पूर्ति हेतु दशकों-दशकों सँ लोक लैत आयल अछि। एहि बेटा सब सँ पोता कहियो नहि होयत।
संयोग एकटा कि नीक अछि जे जीवनपद्धति मे मिथिला रचल-बसल अछि। जाति-पाति मे विभाजित समाज मे लोकजीवन मिथिला आ मिथिलत्व केँ धारण कएने अछि। हालांकि कतेको कुचक्री भाषा पर आक्रमण कय एकरो खंडित करय मे कोनो कसैर बाकी नहि रखने अछि, लेकिन दिनचर्या मे समाहित मिथिला व्यवहार मे जीवन्त अस्तित्व बनेबाक कारण कहियो खंडित नहि होयत से हमर कय गोट शोध उपरान्तक विचार छी। जेना एकटा उदाहरण देखू – गाम मे दुर्गास्थान अछि, भगवतीक दुआरि पर बिना कोनो मलिनताक सब कियो मैथिल बनिकय पूजा करय आओत। फेर वैह गाम मे चुनाव आबि जाय त सब कियो अपन-अपन जातीय अहंकार आ गणित मे लागल देखायत। कहबाक तात्पर्य ई जे आध्यात्मिक पहिचान सभक मैथिलहि थिकैक, लेकिन सांसारिकता मे ततेक बेसी डूबि जाइछ लोक जे फेर अनेक विकृति सँ भरल पहिचान प्रति सम्मोहन स्वाभाविक होइछ। एखनहुँ जन-जन मे अपनत्व भरल छैक, भाईचारा आ सौहार्द्रता भरपूर छैक… लेकिन सांसारिक आ राजनीतिक कारण सँ समाज विखन्डित भेल अछि।
हमर निर्णय यैह अछि जे आध्यात्मिक पहिचान मे मिथिलाक अमर अस्तित्व प्रति आश्वस्त भऽ अपन योगदान दैत रही! अपन हृदय साफ राखी। मस्तिष्क मे उपद्रवी सांसारिकता नहि आबय। हमर आस्था के सर्वोपरि सीताराम प्रसन्न रहथि। अस्तु! मिथिला सनातन अछि। हम रही नहि रही, मिथिला रहबे टा करत, एकरा कियो नहि मेटा सकैत अछि।
हरिः हरः!!