आध्यात्मिक विचार
– प्रवीण नारायण चौधरी
श्रीकृष्णनाम-माहात्म्य
(स्वाध्यायक आजुक प्रसाद स्कन्दपुराणक महत्वपूर्ण शिक्षा मे सँ उद्धृत)

“जे मन, वाणी आ क्रिया द्वारा हमर शरण मे आबि जाइत अछि, ओ एतय सम्पूर्ण लौकिक कामना सभ प्राप्त कय लैत अछि आर अन्त मे सर्वोत्कृष्ण वैकुण्ठधाम मे जाइत अछि। जे ‘हे कृष्ण! हे कृष्ण!! हे कृष्ण!!!’ एना कहिकय हमर प्रतिदिन स्मरण करैत अछि ओकरा जाहि तरहें कमल जल केँ भेदिकय ऊपर निकलि अबैत अछि तहिना हम नरक सँ निकालि लाबैत छी।*
*कृष्ण कृष्णेति कृष्णेति यो मां स्मरति नित्यशः।
जलं भित्त्वा यथा पद्मं नरकादुद्धराम्यहम्॥
– स्कन्दपुराण, वैष्णवखण्ड, मार्गशीर्षमासमाहात्म्यम्, अध्याय १५ केर ३६म् श्लोक
पूर्व अवस्था मे भले कियो सम्पूर्ण पाप कएने हो, तथापि ओ अन्तकाल मे श्रीकृष्णक स्मरण कय लैत अछि त निश्चिते टा हमरा प्राप्त होइत अछि। मृत्युकाल उपस्थित भेलोपर जँ कियो ‘परमात्मा विष्णु केँ नमस्कार अछि’ एहि तरहें विवश भइयो कय कहय त ओ अविनाशी पद केँ प्राप्त होइत अछि। ब्रह्मन्! यदि कृष्ण-कृष्ण केर उच्चारण करैत कियो श्मसान वा सड़कहि पर मरि जाइत अछि तैयो ओ हमरहि प्राप्त होइत अछि। पुत्र! जे हमर भक्त केर दर्शन कय केँ कोनो ठाम मृत्यु केँ प्राप्त होइत अछि, ओ मनुष्य हमरा स्मरण कएने बिना मोक्ष प्राप्त कय लैत अछि।**
**श्मसाने यदि रथ्यायां कृष्ण कृष्णेति जल्पति।
म्रियते यदि चेत् पुत्र मामेवैति न संशयः॥
दर्शनान्मम भक्तानां मृत्युमाप्नोति यः क्वचित्।
विना मत्स्मरणात् पुत्र मुक्तिमेति स मानवः॥
– स्कन्दपुराण, वैष्णवखण्ड, मार्गशीर्षमासमाहात्म्यम्, अध्याय १५ केर ४२-४३म श्लोक
वत्स! सञ्चित पापरूपी प्रज्वलित अग्नि सँ भय नहि करू। श्रीकृष्णरूपी मेघ केर जलबिन्दु सँ ओकरा सींचन करैत मिझायल जा सकैत अछि। तीख दाढवला कलिकालरूपी साँप सँ केहेन डर? श्रीकृष्णक नामरूपी ईन्धन सँ उत्पन्न आगि द्वारा ओ जरिकय नष्ट भऽ सकैत अछि। जाहि तरहें प्रयाग मे गंगा, शुक्लतीर्थ मे नर्मदा और कुरुक्षेत्र मे सरस्वती छथि, ओहि तरहें सर्वत्र श्रीकृष्णक कीर्तन सब पाप केँ नष्ट करयवला होइछ। संसार-समुद्र मे डूबिकय जे महान् पाप के लहरि मे खसि पड़ल अछि एहेन मनुष्यक लेल श्रीकृष्ण-स्मरणक सिवाय दोसर कोनो गति नहि छैक। जे पापी अछि, जेकरा मे श्रीकृष्णस्मरणक भावना नहि छैक, एहेन मनुष्यक लेल परलोकक यात्राक समय श्रीकृष्ण चिन्तनक अतिरिक्त दोसर कोनो पाथेय (बटखर्चा) नहि छैक। ओकरे जन्म आ जीवन सफल अछि तथा ओकरे मुंह सार्थक अछि जेकर जिह्वा (जिह) सदिखन ‘कृष्ण-कृष्ण’ केर कीर्तन करैत रहैत अछि। जे एकहु बेर ‘हरि’ एहि दुइ अक्षरक उच्चारण कय लेलक, ओ मोक्ष केर वास्ते जेबाक तैयारी कय लेलक (डाँर्ह कसि लेलक) से बुझू।***
***जीवितं जन्मसाफल्यं मुखं तस्यैव सार्थकम्।
सततं रसना यस्य कृष्ण कृष्णेति जल्पति॥
सकृदुच्चरितं येन हरिरित्यक्षरद्वयम्।
बद्धः परिकरस्तेन मोक्षाय गमनं प्रति॥
– स्कन्दपुराण, वैष्णवखण्ड, मार्गशीर्षमासमाहात्म्यम्, अध्याय १५ केर ५१-५२म श्लोक
कृष्ण-कृष्ण केरे कीर्तन सँ मनुष्यक शरीर आ मन कखनहुँ श्रान्त नहि होइछ (थाकैत नहि अछि)। ओकरा पाप नहि लगैछ आर विकलता सेहो नहि होइछ। जे श्रीकृष्णनामोच्चारणरूपी पथ्यक कलियुग मे त्याग नहि करैछ, ओकर चित्त मे पापरूपी रोग नहि जन्मैत अछि अर्थात् ओकरा सँ नव पाप नहि होइत अछि। श्रीकृष्ण-नामक कीर्तन करैत मनुष्यक आवाज सुनिकय दक्षिण दिशाक अधिपति यमराज ओकर सौ जन्म केर पाप सभक परिमार्जन कय दैत छथि। सैकड़ों चान्द्रायण और सहस्रों परा केर व्रत सँ जे पाप नाश नहि होइछ, ओ ‘कृष्ण-कृष्ण’ केर कीर्तन करय मात्र सँ नष्ट भऽ जाइत अछि। श्रीकृष्ण-नाम केर उच्चारण कयला सँ नाम जपनिहार पर हमर अधिकाधिक प्रीति बढि जाइत अछि।
‘कोटि-कोटि’ चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण मे स्नान कयला सँ जे फल कहल गेल अछि, ओकरा मनुष्य ‘कृष्ण-कृष्ण’ केर कीर्तन मात्र सँ पाबि लैत अछि। जेना सूर्य-किरणक प्रताप सँ बर्फ पिघैल जाइछ, ओहिना श्रीकृष्ण-कीर्तन सँ महापातक नष्ट भऽ जाइछ। महापाप सँ युक्त मनुष्य सेहो अन्तकाल मे एक बेर श्रीकृष्णनामक कीर्तन कय लियए तँ ओ ताहि सँ पापमुक्त भऽ जाइछ। जे जिह्वा कलिकाल मे श्रीकृष्णक नाम केर कीर्तन नहि करैत अछि, से दुष्टा मुंह मे नहि रहय, रसातल मे चलि जाय। जे दिन-राति श्रीकृष्ण केर गुण सभक कीर्तन नहि करैछ, से जिह्वा नहि, मुंह मे कोनो पापमयी लता थिक जेकरा जिह्वा केर नाम सँ पुकारल जाइछ। जे ‘श्रीकृष्ण कृष्ण-कृष्ण श्रीकृष्ण’ एहि तरहें श्रीकृष्णनाम केर कीर्तन नहि करैछ, ओहि रोगरूपिणी जिह्वाक सौ टुकड़ा भऽ कय खसि पड़य।****
****पततां शतखण्डा तु सा जिह्वा रोगरूपिणी।
श्रीकृष्ण कृष्ण कृष्णेति श्रीकृष्णेति न जल्पति॥
– स्कन्दपुराण, वैष्णवखण्ड, मार्गशीर्षमासमाहात्म्यम्, अध्याय १५ केर ६६म श्लोक
जे श्रीकृष्णक नाम केर महिमाक प्रातःकाल उठिकय पाठ करैत अछि, ओकरा लेल निश्चय टा हम कल्याणदाता होइत छी। जे तीनू संध्या केर समय श्रीकृष्णनामक माहात्म्य केर पाठ करैत अछि, ओ जीते-जी सम्पूर्ण कामना आदिक आर मरला पर परम गति केँ प्राप्त करैत अछि।
ॐ तत्सत्!!
हरिः हरः!!!