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कविता

मैथिली!कुहकैत कोइली
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मैथिली!ककरो पिंजराक
रटनमा सुगा नै
मैथिली! मिथिलाक
कुहकैत कोइली अछि ।

हमरा नहि चाही सुंदर लोल
हम नैं सुनब एक्कहि रटायल बोल
हमरा चाही ओ करियाही
जे सभ डारि पर बैसि करे अनघोल
जे सुनितहि हृदय में उठे हुलास
मोन मे जागे मधुर मिलनक आस
जे करय पोर-पोर में प्रेम-रस संचार
पसरै नव वसंतक मधुरिम मिठास
सभ गाछ मे हो शोभित किसलय
पवन मद मातल झूमैत नाचय
फूल फुलाय गमके चहु ओर
मंगल गीत साँझ आ भोर।

हमरा चाही अपन माटि-पानिक
ओ मोहक सोनहा सुगंध
हम लोहाक पिजरा नै
स्वीकारब मोन-प्राणक बंध
हमरा चाही माए-बाबू जी’क दुलार
हमरा चाही अप्पन मिथिलाक संस्कार
हमरा चाही हमर ओ पुरना संस्कृति
सहब नहिं एहि में कोनो विकृति
हमरा चाही हम्मर मैयाँक कंठक भाष
अप्पन माइयक मधुरस भरल बोल
हमरा मैथिली चाही कुहकैत कोइली सन
नै चाही बान्हल सुग्गाक सुन्नर लोल।

–विजय इस्सर “वत्स”

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