विशेष सम्पादकीय
परिप्रेक्ष्य वर्तमान राजनीति आ राजनीतिक परिवर्तन – सन्दर्भ दलित राजनीति
आइ-काल्हि राजनीति के देल एक विशेष शब्द ‘दलित’ ब्रिटिशकालीन भारत (१९म शताब्दी) सँ आरम्भ भऽ प्रसिद्ध चिन्तक आ भारतीय संविधान केर जनक डा. भीमराव अम्बेदकर पर्यन्त द्वारा समय-समय पर (अपन भाषण मे मात्र) प्रयुक्त होइत २१म शताब्दी मे आबि सत्तारोहणक नीक हथियारक रूप मे खूब चलि रहल अछि। दलित शब्दक व्युत्पत्ति ताकब त ‘दरिद्र’ शब्द सँ एकर उत्पत्ति हेबाक दावा अध्येता लोकनि करैत छथि, ओना कोनो स्रोत उपलब्ध नहि भेटैत अछि।
सनातन हिन्दू धर्म केर वर्ण व्यवस्था अनुसार ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य ओ शूद्र केर चारि वर्ण सँ छत्तीस जातिक उत्पत्तिक कतेको तरहक किंवदन्ति गाथा आ परम्परागत सोच-समझ विकसित होइत देखल जाइछ। एक्कहि जाति केर उत्पत्तिक कय तरहक श्रुति इतिहास एक कान सँ दोसर कान धरि पहुँचैत लोकमानस आ सामाजिक प्रचलित व्यवहार मे सेहो विद्यमान हेबाक सत्य केँ हम सब नहि नकारि सकैत छी। ब्राह्मणहु मे कतेको रंग के ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य आ शुद्र सभक अनेकों भाग-प्रभाग आ अन्तर्विभाजन समयक गति संग तत्कालीन प्रचलन मुताबिक होइत आबि रहल अछि। विभाजनक उद्देश्य या त अपन विशिष्टता केँ आर सँ अलग देखेबाक वास्ते भेल बुझाइत अछि, या फेर समाज मे प्रचलित व्यवहार केँ सुचारू ढंग सँ देश, काल आ परिस्थिति मुताबिक संचालित करबाक लेल अधिकारसम्पन्न ‘सत्तावादी’ (authoritarian) द्वारा बनायल गेल से स्पष्ट अछि। ई मानवक प्राकृतिक गुण थिकैक जे ओ अपन सुविधा लेल कखनहुँ कोनो नियम केँ अंगीकरण कय लेल करैत अछि। जेकर वर्चस्व जेहेन रहैत छैक ओ अपन तेहेन नीति पर आगू बढबाक अवधारणा सामाजिक सहमति सँ आरम्भ कय लैत अछि। यैह मुख्य कारण छैक जे चारि वर्णक अवधारणा आइ अनेकों जाति आ उपजाति मे बँटि गेल अछि।
भारतक बिहार राज्य मे अगड़ा-पिछड़ा (Forward-Backward) के नाम पर सत्तावादीक विभाजन सँ लैत हाल विद्यमान राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबन्धन (National Democratic Alliance) केर मुख्य घटक दल जनता दल युनाइटेड केर मुखिया आ लगातार चारिम बेर बिहार राज्य पर शासन संचालनक जिम्मेदार मुख्य नेता नीतीश कुमार द्वारा अपन प्रतिद्वन्द्वी प्रतिपक्ष केर सत्ता समीकरण मे सेन्धमारी लेल एकटा आरो नवका शब्द उत्पन्न भेल जेकरा कहल गेलैक ‘महादलित’। महादलित अर्थात् महादरिद्र। दरिद्रताक मूल कारण कि थिकैक? दरिद्रता जाति या समुदाय देखिकय अबैत छैक की? एहि सब गूढ़ प्रश्न पर विमर्श केँ तर दाबिकय केवल सत्तासुख लेल भड़काऊ बात करब आजुक राजनीति केर नीयत बनि गेल छैक। कियो भूराबाल साफ करैत अपन सत्ता समीकरण पुख्ता करैत अछि, त कियो पिछड़ा सँ अतिपिछड़ा आ दलित सँ महादलित कहिकय फेर ओकरो सत्ता समीकरण के भीतर प्रवेश कय केँ अपन गोटी लाल कय बैसैत अछि। ई उदाहरण एहि लेल देल जे राजनीति के ई विद्रूपताक बेसी समय नहि बितलैक अछि, पैछला ३० वर्ष मे बिहारक अवाम ई सारा खेला-वेला देखलक आ देखि रहल अछि।
कोनो जंगलक राजा शेर केँ मानल गेलैक अछि। कियैक? शेर मे ओहि तरहक सामर्थ्य छैक, ओ अपन मनमानी शासन करैत अछि। वैह जंगलक किछु जीव ओकर आहार थिकैक। ओ राजा रहितो अपनहि प्रजा के आहार ग्रहण करैत अछि। तहिना एहि जीवलोक मे मनुष्यक शासित समाज मे सेहो समर्थ-सक्षम आ असमर्थ-अक्षम केर बीच जे प्राकृतिक अन्तर छैक, तेकरे आधार मानिकय राजनीति के अनेकों सूत्र पहिनो बनल, आइयो बनि रहल अछि आर ई सदा-सदा एहिना बनत। ज्ञात इतिहास सँ श्रुति-पुराण धरि एकर विशद चर्चा अछिये। समाज केँ बाँटियेकय सत्तारोहण करबाक विचित्र नीयति मानवलोक मे सर्वविदित अछि।
नाम लोकतंत्र के आ काज मूर्खतंत्र वला – जिसकी लाठी उसकी भैंस, जेकर संख्याबल बेसी, ओकरा उकसाउ आ अपना पक्ष मे मत हासिल करैत कुर्सी (गद्दी) पर पहुँचि जाउ। ई सत्तावादी तथाकथित राजनीतिक नेतृत्वकर्ता आइ धरि समाज केँ केना विभाजित करैत अछि से केकरो सँ नुकायल नहि अछि। समाजक आन वर्ग द्वारा वंचित-शोषित कहिकय, अगड़ा जाति पर छुआछुत-विभेद आदिक आरोप मढिकय, इतिहासक कोनो कालखंड मे कोनो विशेष सामर्थ्यवान् सत्तावादीक लादल कतेको रंगक अव्यवहारिक नीति-नियमक चर्चा उठाकय, मनु समान प्रथम मानव-नीतिकार केर नीति पर चलैत मानव एतेक आगू आयल से विशेषता प्रति कृतज्ञता त छोड़ू, आइ अपन गोटी लाल करबाक लेल ‘मनुवादी-मनुवादी’ भूकिकय जेना-तेना कोनो खास वर्ग केँ अपन पाकेट के माल बनायब… यैह थिक आजुक राजनीति के असली चेहरा।
हमरा बुझने एकटा संविधान सर्वसत्तावादी प्रकृति केर विद्यमान अछि। अर्थात् ईश्वरवादीक आस्थाक परमपिता परमेश्वर केर सिद्धान्त जाहि पर ई सारा ब्रह्माण्ड स्वतःसंचालित अछि ओ स्वतःप्रमाण थिक जे एकटा निश्चित आ निर्धारित नियम पर जीवमण्डल संचालित अछि। तहिना, हम मानव अपन समाजशास्त्र मे सम्प्रभुता सँ लैत स्वायत्तता, मानवता, सर्वहित, सर्वकल्याण, समानता आदि कय रंगक आकर्षक शब्दावलीक संग एकटा महिमामण्डित संविधान बनबैत छी। कहैत छियैक संविधानक शासन, विध केर शासन, संघीयता, सामूहिकता, एकजुटता, आ आरो कतेको बात। लेकिन फेर हमहीं सब भीतरे-भीतर कुटिलता सँ भरल कय रंग केर भेदभाव आ समाज केँ बाँटिकय अपन स्वार्थ लाल करयवला खेल-वेल करैत छियैक। त ई कहय मे कोनो हर्ज नहि जे सर्वसत्तावादीक संविधान के सोझाँ हम मानवक संविधान काफी निकृष्ट आ समस्या उत्पन्न करयवला होइत अछि, या फेर संविधानक सब आकर्षक शब्दावली सिर्फ संविधानक किताबहि धरि सीमित रहि जाइछ आ हम सब अपन मनमानी, वर्चस्व आ स्वार्थपूर्ति लेल कपटपूर्ण व हिन्सक विचारधारा पर चलैत छी, आर एहिना चलैत रहब। न्याय-न्याय करैत काज केवल अन्याय केर करब। अन्त मे वैह प्रकृति अपन निरपेक्ष आ निर्धारित सिद्धान्त सँ स्वयं हमरा सब पर शासन करैत रहत, शाश्वत सत्य एतबे अछि।
समस्त मानव प्रजाति लेल हमर शुभकामना, कम सँ कम कुकूर बनिकय भूकनाय नहि शुरू करू से विशेष ध्यान राखब।
हरिः हरः!!
पुनश्चः एतेक बात कयलहुँ आ भिलनी शबरी जेकरा तत्कालीन सत्तावादी गुरु-सेवा पर्यन्त सँ वंचित कएने छल ओकर सौभाग्य जे ओकरा मे ‘नवधा भक्ति’ केर निरूपण सर्वसमर्थ आ मर्यादा पुरुषोत्तम राम कयलनि, से अपने सब केँ पढय लेल प्रसाद नहि देब त उचित नहि हेतैक – लियऽ ई जरूर पढि लेब, दिन बनि जायतः 🙂 https://www.maithilijindabaad.com/?p=2715