कथा-साहित्य
– अंजू झा
चोरौका विवाह
हम जे शीर्षक देलहुँ हँ अइ सऽ भऽ सकैया बहुत नवतुरिया अनभिज्ञ हैब, लेकिन हमरा जनैत जे 40+ के छी वो सब कमोबेस अइ शब्द सं परिचित जरूर हैब। कियैक तऽ 30/40 वर्ष पहिले ई अपन समाज में होइत छलैक, हमहूँ कैकटा एहन विवाह देखने वा सुनने छी। अइ के बारे में जे जनैत छी से ठीक आ जिनका नै बुझल अइ हुनका एक पंक्ति में बता दै छी जे एहि विवाह में कन्या पक्ष लड़का के वा ओकर परिवार के बिना मर्जी या सहमति के जबरदस्ती विवाह करा दैत छलाह। कोनो विवाह तऽ बाद में सफल होइत छल लेकिन कतेको ठाम दुष्परिणाम सेहो होइत छलैक। आई हम एहने विवाह के बारे में एक कथा लिख रहल छी!
मोतीदाय आई बड्ड खुश छैथ, लगभग 52/ 55 वर्ष के आयु छैन लेकिन हुनका मूँह पर एहन खुशी आइ तक कियो नै देखलकैन। हेतैन कियैक नै, आइ हुनकर एकलौती बेटी के विवाह जे छैन। लेकिन ई प्रसन्नता बेटी के विवाह सं बेसी देवतुल्य समैध जमाइ पाबि कऽ भेटलैन। लेकिन अनायास हुनकर मुखक प्रसन्नता के जगह आँखि सँ दहो-बहो नोर झहरय लगलैन आ ओ लगभग 35 साल पहिले के अपन दुनिया के याद में चैल गेली। पिता एगो गरीब ब्राह्मण छलखिन, कोहुना गुजर बसर होइत छलैन। दू भाइ के एकलौती बहिन छलीह, सबके दुलारू। दुनू भाइ पढ़ैत छलैन। ई नै पढ़ली। सुंदरता एहन जे सर कुटमैती में चर्चा छलैन, जेहने सुन्दर तेहने गुणी, शांत स्वभाव, गृह कार्य में निपुण। कमी छलैन तऽ बस यैह जे ओ एक गरीब मायक कोखि सँ जन्म लेने छलीह। विवाह के उम्र भेलैन लेकिन माता पिता लग कोनो विभव नै, दहेज़ के पाइ के बात छोड़ू, 11 गोट बरियाती केँ कि खुआयब सेहो ओरियान नै। माय बापक विवशता सब समाज बुझैत छलैन।
एक दिन गामक एगो लड़का जे ज्येष्ठ भाइ के मित्र छलैन से बाबूजी लग एलैन किछु खुसुर फुसुर भेलैक, कनिक काल के बाद गामक गणमान्य चारि पांच लोकक संग औरो टोलक कका-भैया सब इकठ्ठा भेलखिन। सब आपस में विचार केलैन आ अंगना में विवाह के ओरियान होमय लागल। राति में करीब 8 बजे हल्ला भेल वर आइब गेलै, चलू परिछन के तैयारी करू। हुनका कोबर में गौड़ पुजैय लेल बैसा देल गेल, परिछन भेल, जबरदस्ती वर केँ पकैड़ कऽ कहुना विवाह सम्पन्न भेल। सिंदुरदान वर सं बेसी काकी जे विधकरी छलखिन बुझू सैह केलैन। मतलब ई वरक मर्जी सं विवाह नै भेल। हम एतबे सुनलौं जे लड़का बड्ड सुंदर B.A.पास धनिकक बेटा छै।
भोर में वर किछु नै खेला, रहि रहि कऽ भागै के प्रयास करैथ। हरदम चारि पांच टा आदमी अंगना दरवज्जा पर ठाढ़ रहैथ जे कहिं वर भागि नहि जाय। सांझ मे मउहक सेहो पकैड़ धकैड़ कऽ भेलैक। हरदम भाइ सब ओगरने रहैन। राति में नित्य क्रिया के बहाने बाहर गेला से फेर वापस नै एला। सगरो ताकल गेल, गामक पता पर लोक गेल लेकिन हुनकर पिताजी कलकत्ता में नौकरी करै छलखिन पूरा परिवार ओतय छलैन। आब बाबूजी संग गामक दू गोटा कलकत्ता गेला। लेकिन हुनकर पिताजी विवाह के मानैय सऽ साफ इन्कार कऽ देलखिन। सब वापस आबि गेला। एकबेर बाबूजी केँ पता चललैन जे समैध गाम आयल छैथ। कका के संग कऽकऽ गेला लेकिन वो ई कहि कऽ जे जखन हमर बेटा एहि विवाह केँ नै मानलक तऽ हम की करू। अहाँक कारण हम बेटा केँ नै छोड़ब।
समय बितल एक दिन पता चलल जे वो वकील बनि गेला आ दोसर विवाह कऽ लेला। कैक तरहक बात उठल, कोर्ट कचहरी किछु नै भऽ सकैया, कोनो सबूत नहि अछि विवाहक। हम माय बापक कपाड़ पर बोझ बैन रहि गेलौं। दुनू भाइ के विवाह भऽ गेल। दुनू अपन दुनिया में खुश। किछु सालक बाद होनी के लिखल सालक भीतर मां बाबूजी दुनूक निधन भऽ गेल। दुनिया में असगर रहि गेलौं। बड़का भाई 200 टका महीना मनिआर्डर कऽ दैत छलय, कहियो छोटको किछु दऽ दैत छलय। छोटका भाइ गामक लगे के शहर में रहैत छल। अपन सुंदरता आ उम्र के हरदम घोघक तर में नुकबैत छलहुँ। जीवन काकी के सान्निध्य में बितैत छल। गाम में ने कियो नहिये अहिबाती खुअबैत छल आ न कियो भगिनमान बुझैत छल। कियैक तऽ हमर चतुर्थी नै भेल छल। सब बिसैर गेल रही।
करीब 15 साल बाद एक दिन कका आंगन आयला आ काकी के किछु कहलखिन। फेर हमरा छोटका भाई के खबर गेल। ओ आयल आ हमरा लऽ कऽ हमर सासूर आयल। भेल ई जे हमर वर आ हुनकर कनियांक कोनो एक्सीडेंट में मौत भऽ गेलैन कोरा में दुइ-तीन सालक अबोध बेटी, ससूर के एकलौता बेटा रहैथ कियो क्रियो-कर्म करयबला नहि, तखन हमरा पत्नी रूप में ओहि बच्ची केँ पालन-पोषण लेल बजायल गेल। हमरा एखन तक नै समझ में आयल जकर नामक लाल सिंदुर हम कहियो नै लगेलौं, ओकर चेहरा तक नहि देखलहुँ ओकर नामक उज्जर साड़ी हम कियैक पहिरैत छी। तथापि सासु-ससुर कनैत बजैत नेहोरा केलैथ जे हम अपन पुतौह त नहि बनेलौं, अहाँ एहि बच्चाक माय बनि जाउ। भाइयोक इच्छा देखलियै। मरता क्या नै करता, कोनो और द्वारा नै देखि हमहूं रहि गेलौं। हम ओहि बेटीक माय आ ओ हमर दुनिया, समय कटय लागल।अन्न वस्त्र के कमी नहि छल। सासु ससुर सेहो संग रहैथ। दु साल पहिले ओहो दुनू गोटे एहि दुनिया केँ छोड़ि चलि गेलाह। बेटी कलकत्ता सँ MBA केलक, आब बेटी व्याहक योग्य भेल त जान पहचान मे सामने सँ एगो कथा-प्रस्ताव आयल, विवाह तय भऽ गेल। ससूर हमरा बेटीक दहेज़ लेल नीक रकम छोड़िकय गेल छलाह। हम बेटा बला केँ दय कय बात केलौं। हम कहलौं जे सब संपत्ति त ओकरे छैक। समैध-जमाय मांगक सब टका संगहि किछु और पूंजी लय हमरा लऽ कऽ बृंदावन एला आ ओतय एगो धर्मशाला हमरा नाम पर बनबेला आ कहलैन जे आहाँ ककरो पर बोझ कियैक बनब, एतय भगवान के शरण में अपन घर में रहब जे खेत-पथार अछि सेहो बेचिकय अहाँक एकाउंट मे दय देब। जमाय-समैध मथुरा में नौकरी करैत छथि, कहलैथ लग में रहब, भेंट करैत रहब। अहाँक बेटी के विवाह में हम अहाँ सँ सिर्फ बेटी लेब, बाकी सब खर्चा हमरा तरफ सं। एहन विचारक जमाई समैध पाबि कऽ धन्य भऽ गेलौं। काश हमरो समय में लोकक सोच एहन रहितै, पढ़ल नै छलौं लेकिन अपना जमाना के सब गुण हमरो में छल। लेकिन ई दहेज़ के आगि हमर माय बाबूजी केँ हमर #चोरौका_विवाह करै लेल विवश कऽ देलकैन। एकर परिणाम ने हम कुमार छी ने सधवा ने विधवा। भगवती आबहु सबके बुद्धि फेरियौ जे दहेज़ बंद होइ आ फेर कोनो मोतीदाय केँ हमरा सन जीवन नहि भेटैय। ई सब सोचिते रहैथ की बेटी माँ कहि कऽ आवाज देलकैन आ अपन नोर आ याद केँ पोछैत बेटी लग गेलीह।