हमर जिज्ञासा आ अहाँक सम्बोधन

मैथिली केर सेवा पर अपन विचार

– प्रवीण नारायण चौधरी

ई बहुत प्रेरित कय रहल अछि जे अपने सब गोटे एतेक बढि-चढिकय हमर जिज्ञासा केँ सम्बोधन कयलहुँ। प्रसंगवश ई जिज्ञासा रखने रही जे आखिर लोकक पसन्द की? लेख मार्फत अनेकों बात पाठकक हृदय व मर्म केँ स्पर्श करैत छैक। लेखहि वास्तव मे लेखकक छवि बनबैत छैक। आर सच मे ओहि छविक संग जँ दृश्य सामग्री लेख मे (फोटो इत्यादि) गूँथल जाय त माला समान आकर्षण बनबे करतैक। अहाँ सभक विस्तृत विचार हमरा लेल बटखर्चा बनि गेल अछि। सचमुच ई हमरा लेल बहुत पैघ आशीर्वाद छी। हम हृदय सँ आभार व्यक्त करैत छी, स्नेह आ आशीष बनेने रहब एहिना।

 

अपन माय के कहल ओ खिस्सा फेरो मोन पड़ि रहल अछि। एक गोटे युवा केँ ज्योतिषीजी कहि देने रहथिन जे आइ तोहर जीवनक आखिरी दिन थिकह। ओ अपन जीवनक आखिरी दिन बुझि तैयारी आरम्भ कय लेलक। भोरे गामक चौराहा पर बैसि गेल। सब एनिहार-गेनिहार केँ गोर लागनाय शुरू कय देलक। लोक सब आशीर्वाद देथिन आ कियो-कियो पूछि देथिन जे कि बात छैक बौआ? कतहु के यात्रा कय रहल छह की…? ताहि पर ओ युवा विहुँसिकय जवाब देल करनि जे “हँ काका/भैया/काकी/भाभी! आइ हमर जीवनक आखिरी दिन छी। तेँ अहाँ सब केँ गोर लागिकय यात्रा पर निकलब।”

 

ई सुनिते देरी लोक सब आर भावुक भऽ जाइथ। ओहि युवा केँ आरो बेसी आशीर्वाद देथि। कहथि जे “एहनो कहूँ भेलय हँ! अहाँ केँ हमरो और्दा लागि जाय! खूब जिबू, खूब बढू!” आर सही मे चमत्कार भऽ गेलैक। ओ युवा अपन मृत्यु हेबाक समय केँ परखिते रहि गेल, ओ नहि आयल। साँझो बीतल, राति सेहो बीति गेल। कखन ओकरा नीन्द सेहो लागि गेलैक। भोरे जागल त अपना केँ दस बेर हँसोथि-हँसोथि चेक कयलक। घर-अंगना-दरुक्खा, गाछ-वृक्ष, पात-फूल… लोक सब केँ दौड़ि-दौड़िकय पूछय… “हौ, हम जीबिते छी कि मरि गेलहुँ?” लोक सब विहुँसिकय कहैक, “अरे! तूँ एखन कियैक मरबह हौ? खूब जीबह।”

 

ओ युवा दौड़ैत-दौड़ैत पंडितजी लग गेल। हुनको सँ पुछलक। ओहो विस्मित। हुनकर गणना त कहियो गलत नहि भेल छलन्हि। आब ओ फेर सँ ओकर कुण्डली चेक कयलथि। आर ई देखि ओ आश्चर्य मे पड़ि गेलाह जे ओकर शेष और्दा लोकक आशीर्वाद केर बले आब १०० वर्ष तक बढि गेलैक। ओ ओकरा खुशखबरी सुनेलथि। “हौ जी! तोहर और्दा त काल्हिये शेष छलह। मुदा काल्हि तोरा एतेक लोक के आशीर्वाद भेटलह जाहि के कारण आब तूँ १०० वर्ष धरि जीबह।”

 

त, यैह होइत छैक आशीर्वादक फल। “अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः। चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम॥” मैथिली अपन मातृभाषा छी। ई लिखैत एकटा अलग आनन्द भेटैत अछि। खासकय तखन जखन हमर मातृभाषा मैथिली प्रति राज्य (सरकार) केर घोर उपेक्षा त अछिये, अपनहुँ लोक मे अनास्था आ आत्महन्ताक बुद्धि हावी हेबाक कारण स्वयं द्वारा सेहो उपेक्षित अछि। एहेन अवस्था मे अपन मातृभाषा प्रति सेवाक भावना प्रबल होयब स्वयं केँ तुष्टि प्रदान कय रहल अछि। पुनः धन्यवाद, अपने सब अपन स्नेह बनेने रहू।

 

हरिः हरः!!