१३ जून २०२१ – मैथिली जिन्दाबाद!!
लोकमतः भारत मे मैथिलीक टेलिविजन चैनल कियैक नहि?
फेसबुक पर मूल्यवान् विमर्श लेल सुपरिचित समूह ‘दहेज मुक्त मिथिला’ पर काल्हि १३ जून २०२१ सँ एकटा विमर्श ‘मैथिली टेलिविजन चैनल’ पर चलि रहल अछि।
दहेज मुक्त मिथिला नाम के समूह पर मांगरूपी दहेज विरूद्ध स्वयं संकल्प लेबाक संग-संग दहेज मुक्त विवाह केँ बढावा देबाक महत्वपूर्ण अभियान चलाओल जाइत अछि। फेसबुक-व्हाट्सअप समूह मार्फत संचालित एहि अभियान मे प्रत्यक्ष रूप सँ लगभग ७० हजार लोक जुड़ल छथि, जखन कि अप्रत्यक्ष जुड़ाव बिहार, झारखंड आ नेपाल के सौंसे मिथिलाक्षेत्र व एहि क्षेत्रक लोक भारत, नेपाल आ विश्वक अनेकों भूभाग मे रहि रहल छथि, ओ सब जुड़ल छथि। २०११ सँ निरन्तर जारी एहि अभियान केर लोकप्रियता ‘स्वेच्छाचारिताक धर्म’ अनुसार बनैत अभैर रहल अछि।
एखन धरि प्राप्त लोकमत केर व्योरा निम्न अछिः
प्रश्नकर्त्ताः ऋषब कुमार झा पुछलनि अछि –
“मिथिला या मैथिली पर टेलीविजन में एक्को टा चैनल नय। एहि पर अपनेक सभक की विचार अछि?”
एहि प्रश्नक उत्तर मार्फत प्राप्त लोकमत पर नजरि दियौकः
केशव राजूः हेबाक चाही।
खुश्बू ठाकुरः हाँ।
प्रदीप झाः हमरा सभ के अछि। मैथिली आ मिथिला के जे किछु सम्मान अछि ओ नेपाल में अछि। भारत में सम्मान कोना भेटत जखन मैथिली भाषी केँ लाज होइत छनि मैथिली प्रयोग में।
निभा मिश्रः हेबाक चाही। ओना अपना बिहार चैनल पर साप्ताहिक मैथिली प्रोग्राम अबैया।
संतोष कुमार झाः ई बहुत दुखक बात। 🤔
उदय शंकर झाः आवाज़ उठायल जाय। जय माँ जानकी 🙏🙏
अनिल झाः हेबाक चाही।
पप्पू कुमारः सौभाग्य मिथिला। लेकिन आब नज़र ने अबाए या
माण्डवी झाः होइये के चाही।
प्रवीण कुमार मिश्रः जरूरी य कि एक चैनल मैथिली के भऽ जाय त बड नीक रहत।
दयानन्द झाः मिथिला चैनल के माध्यम सँ अपन समाज हित के, संस्कृति के और भाषा के विकास होयत और हम सब अलग-अलग क्षेत्र मे रहि रहल छी से युनाइट भऽ जायब।
आदित्य नाथ झाः होयबाक चाही।
संजय ठाकुरः होयबाक चाही।
उषा रानी दासः निश्चित रूप सँ हेबाक चाही।
सोनी मिश्रः होयबाक चाही।
रमेश कुमार मिश्रः एक टा सौभाग्य मिथिला चैनल अछि।
विनय झाः रमेश जी, ओ (सौभाग्य मिथिला) बन्द भऽ गेल।
ऋषब कुमार झाः रमेशजी, सौभाग्य मिथिला नय अछि।
रमेश कुमार मिश्रः भऽ सकैत छैक जे नहि हो। (सौभाग्य मिथिला सम्बन्धी गूगल सर्च के स्क्रीनशौट दैत)
ऋषब कुमार झाः रमेश जी, ओ बंद अछि।
नीतीश झाः रमेश जी, फूलबाबू हार मानि लेलक। मिथिलाक लालबबुआ सब से बेचारा बहुत कोशिश करलखिन “सौभाग्य मिथिला” के जिंदा रखबाक लेल लेकिन TRP नै मिलल मिथिला में।
रमेश कुमार मिश्रः नेपाल १ सँ सेहो मैथिली प्रोग्राम सब अबैत रहैत अछि।
नीरा झाः हेबाक चाही।
देव शंकर झाः बन्द भऽ गेल, कियाक त दर्शक के अभाव।
झा हेमन्त बापीः देवशंकर जी, नहि, मनोरंजन में बहुत कमी छल। मिथिला में निर्देशन आ अभिनय ओहे करै छैथ जिनका पास पाइ छैन्ह, कला के उचित स्थान नइ अछि, सब सुपर स्टार छैथ।
संजीव झा संजीवः मैथिली चैनल हेबाक चाही।
लक्ष्मण पंडितः मिथिला मिरर।
ऋषब कुमार झाः लक्ष्मण जी, टीवी पर नञ अछि।
लक्ष्मण पंडितः ऋषब जी, टीवी पर एकटा अय जनकपुर मे टीवी टुडे।
योग नाथ झाः एहि अर्थ युग में हम मैथिल बन्धु केँ अपन मातृभाषा प्रति उदासीनता मुख्य कारण अछि!!
ललित मिश्राः बहुत सुन्दर विचार अछि। जरूर हेबाक चाही।
पंडित मिथिलेश कुमार झाः हमरा मोन में मिथिला के चौतरफा बिकास लेल ललायित रहैछ।
ओंकार चौधरीः हेबाक चाही।
प्रेम चन्द्र झाः एकटा चैनल खुजल छलै, मैथिलसभके धीया-पूतासभ देखै नै देलकनि, विज्ञापन नै भेटलै बन्न करय पड़लै। आबक बच्चासभ बड्ड उकठ्ठी होइ छै, रिमोट बच्चेसभ लग रहै छै।
अर्चना झाः नेशनल टेलिविजन पर मैथिली के चैनल एकदम हेबाक चाही।
सोनू मिश्राः प्रणाम। बहुत बहुत शुभ विचार अछि।
सुनील कुमारः होना चाहिये।
राकेश झाः होबाक चाहिये।
पुष्पा कुमारीः बहुत सुन्दर विचार अछि। टीवी के माध्यम सँ नव पीढी लग अपन संस्कृति पहुँचत।
कुञ्ज बिहारी झाः जखन सौभाग्य मिथिला रहय त कतउ व्युअर्स त भेटबे नहि केलय, के अप्पन पैसा डूबायत!
उपरोक्त लोकमत सँ बुझब स्पष्ट अछि जे एतेक विशाल देश जेकर संविधानक आठम् अनुसूची मे पर्यन्त मैथिली केँ कुल २२ भाषा मध्य राष्ट्रीय भाषाक रूप मे मान्यता प्राप्त अछि, लेकिन ताहि भाषाभाषीक अपनहि भाषा प्रति कोनो खास लगाव-जुड़ाव नहि रहबाक कारण, दर्शक, विज्ञापन आ लगानी सभक घोर अभाव रहबाक कारण एखन धरि कोनो टा टेलिविजन चैनल संचालित रूप मे उपलब्ध नहि अछि। एहि भाषाभाषी मे अपन पीठ अपनहि सँ ठोकबाक प्रवृत्ति हावी रहैत अछि, परन्तु सब दिन आन-आन भाषा मे पढाइ-लिखाइ आ जीवनयापन करबाक नीयतिक चलते गुलामी मानसिकता एहि तरहें हावी भेल अछि जे नहिये निजी चैनल सफल भऽ सकल, नहिये सरकार एहि दिश कोनो ध्यान देलक। एकटा प्राचीन आ समृद्ध भाषा जेकरा पास अपन संस्कृति (मिथिला) हेबाक यथार्थ सत्य सम्पत्ति सेहो छैक, से एहेन लचरल अवस्था मे अछि से घोर चिन्ताक विषय थिक।
भारतक तुलना मे बहुत छोट देश, एतेक तक कि एकटा राज्य के क्षेत्रफल बराबरक देश रहितो मैथिली भाषाक लगभग एक दर्जन चैनल आ सैकड़ों कार्यक्रम – रेडियो संचार सहित सफलतापूर्वक चलि रहल अछि, लेकिन भारतीय मैथिलीभाषीक स्वयं केर भाषा प्रति उदासीनताक कारण भारत मे यैह उपक्रम असफल अछि। सोचय वाली बात छैक जे एना केना आ कियैक भेल छैक?