“प्रकृति प्रेम सं भरल मिथिला के पाबनि-तिहार”

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आभा झा।                         

# प्रकृति प्रेम सं ओत-प्रोत मिथिलाक पाबनि तिहार

भारतीय संस्कृति में पर्यावरण संरक्षण के विशेष महत्व अछि।पर्यावरण शब्द के अर्थ अछि चारू कात के आवरण।पर्यावरण संरक्षण के तात्पर्य अछि कि हम अपन चारू दिस के आवरण के संरक्षित करी आर ओकरा अनुकूल बनाबी।।प्राचीन काल में जीवन के एक तिहाई भाग प्रकृति संरक्षण के लेल समर्पित छल जाहि सं कि मानव प्रकृति के भलीभाँति बूझि क ओकर समुचित उपयोग करि सकै आर प्रकृति के संतुलन बनल रहै।।पीपर के पूज्य मानि क ओकरा अटल सुहाग सं संबद्ध कैल गेल अछि।पीपर छाया प्रदान करैत अछि आर जीवनोपयोगी ऑक्सीजन प्रचुर मात्रा में छोड़ैत अछि।भोजन में तुलसी के भोग पवित्र मानल गेल छै जे कतेक रोग के रामबाण औषधि अछि।बेलक गाछ के भगवान शंकर के संग जोड़ल गेल छैन आर ढाक,पलाश,दूर्वा,कुश आदि वनस्पति के नवग्रह पूजा एवं अन्य धार्मिक अनुष्ठान के लेल उपयोगी कहल गेल अछि।प्रकृति में असंख्य प्रकार के जीव-जंतु,पशु-पक्षी
पेड़-पौधा आर सूक्ष्म जीव अछि।कोनो एक जीव के विलुप्त भेनाइ पर्यावरण आर मानव दुनु लेल खतरा के घंटी अछि।जातक कथा में एक ठाम कहल गेल छै कि जाहि गाछ के छांव में बैसी अथवा लेटी ओकर शाखा तक के नहिं तोड़ी।ई मित्र द्रोह आर पाप अछि।
मिथिला के संस्कृति में प्राचीन काल सं प्रकृति संरक्षण आर ओकर मान-सम्मान के बढ़ावा देल जा रहल छै।मिथिला के अधिकांश पाबैन प्रकृति सं जुड़ल अछि,चाहे ओ छठ पूजा में सूर्य के उपासना हो या चौरचन में चंद्रमा के पूजा के विधान।मिथिला के लोकक जीवन प्राकृतिक संसाधन सं भरल-पूरल अछि,हुनका प्रकृति सं जीवन के निर्वहन के लेल सब चीज भेटल छैन आर ओत के लोक एकर पूरा सम्मान करैत छैथ।अहि प्रकार मिथिला के संस्कृति में प्रकृति पूजा उपासना के विशेष महत्व अछि आर एकर अपन वैज्ञानिक आधार सेहो अछि।
जूड़शीतल पाबैन में पोखैर,इनार आदि के सफाई होइत छैक,ताकि हम बरसात में आबै वाला जल के ग्रहण करै जोगर बना सकी।अहि लिहाज सं ई मूलतः प्रकृति के पर्व अछि।शरद ॠतु के समाप्ति आर वसंत ॠतु के आगमन के काल पर्यावरण आर शरीर में बैक्टीरिया के वृद्धि के बढ़ा दैत अछि।होलिका सं निकलैत ताप शरीर आर आस-पास के पर्यावरण में मौजूद बैक्टीरिया के नष्ट करि दैत छै आर अहि प्रकार ई शरीर तथा पर्यावरण के स्वच्छ करैत अछि।धातृ भगवान विष्णु के पसंदीदा फल छैन।कार्तिक शुक्ल पक्ष के नवमी सं ल क पूर्णिमा तक भगवान विष्णु धातृ के गाछ पर निवास करैत छैथ तैं एकर पूजा करै के विशेष महत्व छैक।बड़क गाछ में सकारात्मक शक्ति आर ऊर्जा के भरपूर संचार रहैत अछि।वटवृक्ष के दीर्घायु आर अमरत्व के प्रतिनिधि मानल गेल अछि।मधुश्रावणी पूजा सेहो प्रकृति सं जुड़ल पाबैन अछि।अहि पाबैन में गाछ सं खसल फूल-पत्ती चुनल जाइत छै।भगवान शंकर पार्वती आर नाग-नागिन प्रकृति के देवता छैथ।दशमी के समय प्रकृति में एक विशिष्ट ऊर्जा रहैत अछि।अपन संस्कृति में देवी के ऊर्जा के श्रोत मानल गेल अछि।दुर्गा पूजा आर नवरात्र मानसिक-शारीरिक आर आध्यात्मिक शक्ति के प्रतीक अछि।मनुष्य के प्रकृति सं तालमेल,जे जीवन के नब सार्थकता प्रदान करैत अछि।कोजागरा पर्व आश्विन मास के पूर्णिमा यानी शरद पूर्णिमा क मनायल जाइत अछि।कोजगरा के राति जागरण के विशेष महत्व अछि।कोजगरा के राति में लक्ष्मी के संग ही आसमान सं अमृत के वर्षा होइत छै।शरद पूर्णिमा के राति चन्द्रमा सब सं बेसी शीतल आर प्रकाशमान प्रतीत होइत छैथ।मकर संक्रांति के दिन लोक अपन प्रचुर संसाधन आर अन्न-अनाज के नीक उपज लेल प्रकृति के धन्यवाद दैत अछि।

आभा झा
गाजियाबाद