“मिथिलाक पहचान : माछ, पान और मखान”

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शिव कुमार सिंह।                     

“मिथिला में माछक महत्व”

मिथिला में माछक बहुत पगि महत्व अय।मिथिला मेँ माछ बहुत प्रसिद्ध अछि।मिथिला के पान मखान और माछ बहुत नामी अछि। माछक वर्णन खट्टर ककाक तरंग में बहुत नीक सँ कयल गेल अछि।

माछ अपना मिथिलांचल में शुभ मानल गेल अछि। चतुर्थी में माछक प्रचलन छै। द्विरागमन में तऽ कनिया सँ पहिले माछे कटाओल जाई छै।श्राद्ध कर्म में तेरहवीं कऽ माछ बनाओल जाई छै।परम्परा छै जँ तेरहवीं कऽ माछ नय खायब, तऽ एक साल तक माछ नय खा सकै छी।मिथिला के महान पावनि जितिया में सेहो एक दिन के विध माछ मरूआ के होई छै। तेँ कहि सकै छी जे मिथिला में माछक बहुत महत्त्व अछि।

किछ जगह माछ बाड़ल सेहो जाई छै।जेना अपना ओहीठाम मानल जाई छै विधवा स्त्री के माछ नय खेबाक चाही।माछ तामसिक भोजन छै, तेँ विधवा स्त्री केँ वर्जित करक चाही।ओना आब कतेको लोक अय परम्परा के नय मानै छै,माछ खेनाय बंद नय करय छै।

माछ स्वास्थ्य के लेल सेहो उत्तम छै।अय में भरपूर मात्रा में प्रोटीन, कैल्शियम,फास्फोरस,विटामिन सब पाउल जाईत अछि।शरीर के ताकतवर और मजबूत बनबय छै।माछ खेला सँ मानसिक विकास सेहो होइ छै।बुद्धि बढ़य छै,दिमाग चंचल होई छै।

कतेक लोक माछ के नाम पर लोक के भ्रमित करै छै।माछ नय खेबाक चाही,शाकाहारी भोजन करक चाही।तरह तरह के लोक तर्क दय छै।मुदा लोक के बुझक चाही प्राचीने समय सँ माछ के बहुत महत्व देल गेल छै।शुभ मानल जाई छै। तऽ फेर ई गलत कोना भेल।आहाँ अगर नय खाय छी ,शाकाहार भोजन करय छी तऽ नीक बात छै,मुदा जे खाय छथिन हुनका आहाँ गलत कोन सिद्धांत सऽ कहि रहल छियै।हमहुँ माछ नय खाय छी,शाकाहारी छी।लेकिन जे खाय छथि हुनका सँ कोनो एतराज नय और होबाको नय चाही।ई तऽ अपन मिथिलाक पहचान थिक।