बुचीरानी (मैथिली कथा)

कथा

– प्रवीण नारायण चौधरी

बुचीरानी
 
(ई एक काल्पनिक कथा थिक, एकर सरोकार कोनो व्यक्ति विशेष सँ नहि अछि। लेकिन ई बहुतो लोकक विचार सँ मेल खायत आ हुनका बेजा लागि सकैत अछि। तेँ बेजा मानि ली से हमर मनसा एकदम नहि। लेकिन समाजक नजरि पर सँ पट्टी हंटेबाक लेल लिखि रहल छी। एकरा अपना ऊपर एकदम नहि लेब। आग्रह।)
 
बात १९९० ई. के छी। बुचीरानी के ब्याह भेलनि। हुनकर पति कलकत्ताक एकटा कपड़ा दोकान मे साधारण सेल्समैन छलथिन। २ हजार टका मासिक वेतन रहनि। बुचीरानीक सासूर मे शेख-सम्पत्ति सेहो बड कम। धान-गहुँम के उपजा सँ परिवारक भरण पोषण संभव नहि रहनि। ताहि पर सँ ब्राह्मण परिवार। गामघर मे कतहु मेहनतियो-मजदूरी नहि कय सकैत छलीह। पतिक २ हजार टका मे अपने ऊपर १.५ हजार टका तहिया खर्च भऽ जाइत छलन्हि। ५०० टका बाबूक नामे मनिआर्डर पठबथि गाम। बुचीरानीक हाथ पर ५० टका ससूर देल करथिन। बुचीरानी ५० टका सौंसे बचा लेल करथि। साल भरिक ६०० टका के बचत हुनका लेल बड पैघ बचत रहनि। ससूर परिवार चलबथिन। येन-केन-प्रकारेण परिवार बहुत ढंग सँ बिना कर्ज-पैंच लेने चलि जायल करनि। घरहु केर उपजा आ बेटाक ५०० टका के नगदी सहयोग, परिवार खूब सुखी आ सम्पन्न मानल जाइत छल। जे केकरो सँ २ टका के कर्ज नहि करय तहिया सुखी परिवार मानल जाय। आइयो सिद्धान्त यैह छैक। अहाँ जतबे कमाउ, अपन घर ओतबे मे चलाउ आ संसार लग हाथ नहि पसारब त अहाँ सँ पैघ टाटो-बिड़लो नहि!
 
बुचीरानी केँ ब्याहक १० वर्ष मे ३ टा बच्चा भऽ गेल छलन्हि। परिवारक खर्चो बढि गेलनि। हाथक बचत केर पाइ सेहो धियापुताक बीमारी भेल समय निकलि गेल करनि। ससूर आ सासु सेहो क्रमिक रूप सँ मरि गेलखिन। आब बुचीरानी असगर आ ३ टा लेधुरिया बच्चा! पतिक तनखा ५०० टका बढल छलन्हि। बुचीरानी गामहि मे अपन पढाई के उपयोग करैत अपन बच्चा सभक संग आरो आसपड़ोसक बच्चा सब केँ अंगना मे ट्यूशन पढबय लगलीह। एतेक व्यवहारकुशल छलीह जे हिनका सँ सब कियो बात करय सँ लैत समय बितबैत लेल आतूर रहल करय। बुचीरानी केँ ट्यूशन सँ ५०० टका के आमदनी होबय लगलनि। ओ बड प्रसन्नचित्त रहैत बच्चा सब केँ पोसैत पढाइयो मे चन्सगर बना लेलीह। जेठकी बेटी मैट्रिक पास, छोटकी बेटी ८मा मे आ छोटका बेटा ५मा मे। पति ओहि कपड़ा दोकान मे काज करैत रहलाह। साल मे १ मास के छुट्टी भेल करनि। परिवार बड प्रसन्नता संग चलैत छल। सुखी परिवार – सम्पन्न परिवार मे हिनका लोकनिक प्रतिष्ठा छलन्हि गाम मे। आब पतिक तनखा मे आर १ हजार टका के बढोत्तरी भऽ गेल छलन्हि। ३५०० टका मे सँ अपना पर खर्च २५०० आ बचत के १००० बुचीरानी केँ पठा देल करथिन। बुचीरानी कुल आमदनी पति वला १००० आ ट्युशन के १००० जोड़ि २००० टका आ धान-गहुँम अपना खेतक जोड़ि बेसाहक दालि-तरकारी, तेल-मसल्ला करैत अपन गुजारा एतबहि सँ बड नीक जेकाँ कय लेल करथि। कतहु कानथि-बाजथि नहि। अपन माय सँ मितव्ययिताक संग गृहस्थी चलेबाक गुण सँ सम्पन्न बुचीरानी केँ लोक सब लक्ष्मी सेहो कहल करनि। गाम भरि मे हुनकर प्रशंसा होइन्ह।
 
बुचीरानीक बड़की बेटी के नाम छलैक स्कूल मे। ओकरा आगू पढेबाक मोन रहितो बुचीरानी अपने लग राखि एकटा कौलेज मे नाम लिखबा ओकरा पढय लेल प्रेरित कयलीह। कहलखिन जे शहर मे रहिकय पढाई करमे ओतेक पाय त अछि नहि, तखन घरहि मे रहिकय पढमे आ किछु बनि जेमे त तोरे कमाइ सँ छोटकी आ बौआ दुनू के शहर मे पढायब। कहय छै न जहाँ सुमति तहाँ सम्पत्ति नाना – ओ छौंड़ी माय के सब बात मानल करय। ओ गामहि मे रहिकय आइ.ए. पास कय गेल। फेर ओकर तकदीर सेहो काज केलकैक। ओकरा बैंकिंग कम्पीटिशन मे नाम निकलि गेलैक। गाम सँ नजदीके एकटा बैंक मे पोस्टिंग भऽ गेलैक। आब त आर चारूकात बुचीरानीक नाम सुप्रतिष्ठित भऽ गेलैक। ओकर पति सेहो एतबा प्रसन्न जे गाम आबि खूब धूमधाम सँ सत्यनारायण भगवानक पूजा कय ब्राह्मण भोजन सेहो करौलथि।
 
आब बेटी सभक विवाह लेल दुनू प्राणी विचार कय रहल छलथि। एक सँ एक कथा आगू सँ उचैर-उचैर कय अबैत छलन्हि। लेकिन बुचीरानी बेटीक विवाह लेल अपने पति समान ईमानदार आ कर्मठ युवक केर खोज मे छलीह। हुनका लग जतेक कथा अबैत छलन्हि से बड़का-बड़का घर सँ, ओ मोने-मोन हँसिकय टारि देल करथि। हुनका बड़का घरक बड़का बात केर कय गोट खिस्सा माय सँ सुनय लेल भेटल रहनि। ओ सतर्क छलीह। अपन पति सँ अपन मोनक बात कयलीह। पति केँ हुनकर आइडिया पहिने त कनेक अटपटा जेकाँ लगलनि लेकिन बाद मे ओ गहिराई बुझि ओहेन वर-घर केर सुझाव बुचीरानी केँ देलथि। कलकत्ते मे अपनहि समान कपड़ा दोकान मे काज करनिहार एकटा साधारण लेबर (मोटा उठेनाय, कपड़ा चोपेति-चोपेति सजाकय रखनाय, आदि काज करनिहार मिथिलाक एक सज्जन ब्राह्मण) केर बेटा बड़ा हृष्ट-पुष्ट-शील-सौरव केर धनी छलथि, ओहि वर आ घर मे बेटीक विवाह तय कय देलनि।
 
बहुते लोक सब बुचीरानीक एहि निर्णय पर बड खिसियेलाह। लेकिन बुचीरानी सब केँ हँसिकय कहि देथिन जे बड़का घरक बड़का बात मे हम कतय सँ सकब। भने हुनके संग काज करनिहार घर-वर ठीक कयलहुँ, बेटी केँ मानदान होयत आ अपने समान एकटा आर अभावग्रस्त परिवार मे बेटी रहत त दुनू परिवार मिलिजुलि विकास बाट पर बढब। से तहिना भेलैक। आब बुचीरानी, हुनकर बेटी, पति, समैध, जमाय, समधिन सब कियो घुट्ठी मे घुट्ठी जोड़िकय एक-दोसर परिवार संग ततेक मधुर सम्बन्ध बनौलीह जे लोक सब अवाक् रहि गेल। सब आलोचक आ विदुषक सब ठामक ठाम रहि गेल, लेकिन बुचीरानीक बुद्धिमत्ता आ जमीनी सोच आब २ परिवार केँ विकासोन्मुख बना देलक। एहि तरहें बुचीरानीक दोसर बेटी मेडिकल मे नाम निकालि संसार केँ आर चकित कय देलक। भाइ केँ सेहो दुनू बहिन मिलिकय बहुत नीक इंजीनियरिंग कौलेज मे पढेलक। एहि परिवारक चर्चा चारूकात छैक। लेकिन कतेको लोक केँ आब एकरा सभक चमक-दमक देखि ईर्ष्या होइत छैक, से तरह-तरह के बात करैत छैक। मुदा बुचीरानी लेल धैन सन्! ओ त ई देखि रहल अछि जे बाल-बच्चा सब सही रस्ता पर अछि, पति स्वस्थ छथि, कुटुम्ब सब अपने समान विचारधाराक भेटलाह। दुनियाक बाजब पर हम कियैक जाय!
 
अस्तु! बुचीरानीक कथा आजुक घोर भौतिक सुख आ शहरी परिवेश मे रहबाक ललक रखनिहार लेल एकटा छोट उदाहरण थिक। लोक त ई बुझैत अछि जे मिथिलाक सब बुधियार परदेशे चलि गेल… लेकिन ई बुझनाय सरासर गलत छैक। हर गाम मे कतेको बुचीरानी आइयो आबाद अछि, तेँ मिथिला जिन्दाबाद अछि, आर रहबो करत। लेखक ई बात अपन सर्वेक्षण आ अनुभव केर आधार पर लिखिकय दय रहल अछि समाज केँ, खासकय ओहि लोभी-लालची केँ जे मिथिलाक मौलिक बुद्धिमत्ता केँ कमजोर आँकैत अछि आर बाहरी संसार संग लिहू-लिहू मे लागि अपन भाषा, संस्कृति आ परम्परा केँ नाश कय रहल अछि।
 
कहानी केहेन लागल से प्रतिक्रिया जरूर लिखब। प्रणाम!!
 
हरिः हरः!!