अपन परम्परा मे हमर माय आ हम
(सन्दर्भ – दिनचर्या आ स्वास्थ्य)

अपने सब मिथिलावासी दिन मुताबिक देवता विशेषक आराधना करैत आबि रहल छी। हमरा त ओतेक नहि बुझल अछि लेकिन माय-काकी-बाबी सब केँ देखैत रहलियनि अछि। शैन-रवि, सोमवारी, मंगलबारी, एकादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी… विभिन्न तरहक दिन, विभिन्न तरहक देवता आ विविध आराधना। हम सब त दिन मे चारि बेर खाली भोकसब टा जनलहुँ…!
आइ वृहस्पति दिन – हिन्दी मे गुरुवार कहल जाइछ, देवता लोकनिक गुरुवर वृहस्पति छथि आर हुनकहि प्रति समर्पित सप्ताहक एक दिन अपन पुरखा लोकनि निर्णय कय केँ निर्धारित कएने छथि। आजुक दिन केर बहुत रास महत्व शास्त्र मे वर्णित अछि।
दिनक महत्व अनुसार सेहो जीवनशैली हुए एहेन बात अपन मिथिला मे जेठ-श्रेष्ठ सब करैत एला अछि। हमर माय केँ देखैत छी, एखन धरि अपन ७म् दशक केर जीवन मे शरीर हल्लूक रखने अछि।
मिथिलाक प्राचीन परम्परा अनुसार कय तरहक व्रत आ आसक्ति सँ मुक्ति केर अभ्यास करैत अछि। ओकर ब्लड प्रेशर, सूगर, थायराइड, आदि सब किछु नियंत्रित छैक।
हम ई सब किछु नहि कय सकलहुँ, एखन ५म् दशक केँ छुबय सँ ४ वर्ष पहिनहि सँ ब्लड प्रेशर केर गोटी खा रहल छी। माय केँ देखैत छी जे एखनहुँ ओ अपन शरीर केँ कखनहुँ गैर-जरूरी विश्राम नहि दैत अछि, लुरुखुरु-लुरुखुरु काज स्वस्फूर्त भाव सँ करिते रहैत अछि। पुतोहु कतबो कहि देथुन जे ई काज माँ नहि करिहथि, मुदा माँ लेल ओ काज बिना कोनो श्रम केँ पूरा करबाक तत्परता एखनहुँ देखैत छी।
बारी मे कय रंग के तरकारी – घेरा, झुंगनी, रामझुंगनी, बोरी, मिर्चाइ, टमाटर, गेनहारी, पटुआ… आर तेकर बाद लत्ती सरियेलहुँ, कखनहुँ फूलक गमला, कखनहुँ भगवती घर, कखनहुँ हनुमानजी चौरा आ अंगना केँ निपब… आह! कतेक कहू! एतबा नहि! माय लेल ५ किलोमीटर चलनाय आइयो कोनो न कोनो बहन्ने होइते टा अछि।
कहियो-कहियो माय सेहो बीमार पड़ि जाइत अछि। कि होइ छौ? माथ ऊपर मुंहे घिचैत अछि, देह मे झुनझुन्नी भरि रहल अछि, उठल नहि भऽ रहल अछि… उठैत छी त होइ यऽ खसि पड़ब…! हमर माय के यैह सब बीमारी!! कय बेर इलाज करेबाक लेल डाक्टर साहेब सब लग लय गेलियैक, अनेकों जाँच करैत छथिन, खून, पिशाब, खखार… सब दुरुस्त। हँ, बेर-बेर कहैत छथि जे वृद्धावस्थाक बीमारी जेना नस सम्बन्धी रोग… हमरा लोकनिक जन्महि केर समय जे फाइलेरिया भेल छलैक से… लेकिन फेर २-३ दिन मे टनमना गेल करैत अछि। सुतल-पड़ल नीके नहि लगैत छैक। ई सारा तन्दुरुस्ती शरीरक साधना सँ सिद्ध होयबाक कारण छैक।
हम सब वर्तमान सन्तति दबाइ फाँकि रहल छी। बीपी, सूगर, कि-कहाँ… शरीर मे अनेकों रोग केँ घर बनि गेल रहैत अछि आ दबाइ फाँकि-फाँकि बैलेन्स मिलबैत छी। धरि अपन परम्परागत दिनचर्या केँ ध्यान नहि रखैत छी। अपना केँ बेसी बुधियार बुझैत छी, खूब व्यस्त रहैत छी…. माय सब पुरान जमानाक लोक, हम सब नव आधुनिक युग के अपना केँ अतुलनीय बुझि रहल छी। लेट सुतनाय, लेट उठनाय, भैर दिन ओकारी-बोकारी करैत मोबाइल पर भिड़नाय…! आर कि रहि गेल अछि हमरा सभक काज? टका कमा लैत छी, बस भऽ गेलैक। जे जतेक बेसी टका कमेलहुँ से ततेक बेसी बुधियार। हाय टका… होय टका… हेल्लो टका!! टका-टका-टका!!
शनि-रवि केँ वीकेन्ड्स होइत अछि, खूब तरल-तड़ल मारनाय एहि वीकेन्ड्स केर खासियत होइछ हमरा सभक लेल। सोम सँ शुक्र धरि ‘टका-टका’ आ घर मे अन्हेरक बात लेल ‘धका-मुका’!! तनाव भरल जिनगी जीबि रहल छी। फेसबुक पर फेस के लफड़ा, बात के रगड़ा बात के झगड़ा…. लागल रहैत छी। मिथिला गेल निखत्तर मे, बाप-पुरखाक शिक्षा गेल तेलहन्डी मे। कि फर्क पड़ैत अछि हमरा सब केँ? हाहुत्ती पैसल अछि टका कमाय के – चाहे जाहि विधि कमाय।
माय कहैत छैक – राम की बनाई बात सोही बात करिये, जाही विधि राखे राम ताहि विधि रहिये, आ हम सब कहैत छी ‘राम तेरी गंगा मैली हो गई पापियों के पाप धोते धोते’। सीताजी के वकील बनिकय रामजी पर फौदारी करैत छियैक। सीताजी केँ न्याय दियाबय लेल अपन-अपन बुद्धि जोतय छियै। कतेक बुधियार, कतेक होशियार हम-अहाँ! छै न बात विचार करयवला!!
ताहि पर सँ आबि गेल अछि कोरोना!! ई सार कोरोना त आर बुझू किदैन भऽ गेल अछि। आइ लगभग डेढ साल सँ कोरोना ई, कोरोना ओ, कोरोना कि… भैर दिन टीवी पर, सोशल मीडिया मे, डब्ल्यू-एच-ओ सँ लैत विभिन्न देशक सरकार, विज्ञान आ स्वास्थ्य विभाग सब बौखि रहल अछि, मुदा कोरोना एकरा सब संग अपन नव-नव वैरिएन्ट्स आ म्युटेन्ट्स सभक संग चोर-नुकैया खेला रहल अछि। कतेको लोक एहि बीच असमय एहि लोक सँ परलोक चलि गेलाह… बेसी बेर कोरोना केँ दोख दय कय हम सब निवृत्त भऽ गेलहुँ।
शरीरक गणित हम सब वर्तमान मोडर्न मेडिकल युग मे नीक बुझि रहल छियैक आ कि हमरा सभक पुरखा बुझैत छलखिन? एक बेर फेर सँ ओहि दिन मुताबिक आहार, विहार आ साधना विचार केर समय त नहि आबि गेल? हम एखन निरन्तर यैह सब सोचि रहल छी। चरैवेति-चरैवेति!!
हरिः हरः!!