विवाह गृहस्थ जीवनके मूल आधार थिकैक । गृहस्थ जीवनमे उत्तम संतति उत्पन्न कए परिवार, समाज, देश एवम् विश्वकें धरोहरके रूपमे सर्वश्रेष्ठ योगदान देबाक सहस्त्रों उदाहरण इतिहासक पन्नामे अंकित अछि । उदाहरणस्वरूप अनेकों मनीषि-प्रभृति विश्वक मानस पटल पर अपन साधनामयी, ज्ञानमयी तथा उत्कृष्टमयी सेवा केर माध्यमें वंदित छथि । वैवाहिक बंधन सदृश पवित्र परंपराकें वर्तमान समयमे जाहि तरहें स्थापित विजातीय विवाह केर माध्यमें कुत्सित आ निम्नस्तरीय षडयंत्र चलि रहल अछि, सभ्य समाजक लेल अभिशाप थिक ।
विवाहक स्वरूपक जखन चर्चा करैत छी चाहे विजातीय, समजातीय वा गंधर्व विवाहक गप्प किऐक न हो, सर्वप्रथम कुल-खानदानक महान परंपराक विपरीत गृहस्थ जीवनक पवित्रताके खंडित कएल जा रहल अछि संगहिं सद्गुणक क्षरणसँ अपसंस्कृतिक दुर्गन्ध सगतरि पसरि रहल अछि घोर चिंताक विषय थिक । विजातीय विवाह समाजक विलक्षणताके खंडित तS करितहि अछि, बल्कि संबंधमे विकृतिक संग-संग पारिवारिक-सामाजिक जीवनमे दुर्गन्धके सेहो प्रसारित करैत अछि ।
अन्तर्जातीय विवाह वर्तमान समयमे सुरसा जेकाँ मुँह बौने ठाढ़ अछि । जातिक विषमताके तोड़बाक गप्प तS बड्ड नीक लगैत अछि मुदा एहि प्रकारक विवाहके सभ्य समाज कहियो स्वीकार नहि कS सकैत छथि । अन्तर्जातीय विवाहके जे कियो समर्थन करैत छथि ओ लोकनि पारिवारिक, सामाजिक एवम् सांस्कृतिक रोगसँ ग्रसित रहैत छथि ।
अस्तु, विज्ञान चाहे कतबो आगाँ बढ़ि जाय मुदा शास्त्र-पुराणमे लिखल गप्पके आई धरि चैलेंज नहि कS पाबि सकल अछि । अपना आपके अगड़ा जाति कहSवला समुदाय ककरा स्वार्थे अन्तर्जातीय विवाहक चर्चा सार्वजनिक रूपें करबाक साहस करैत छथि से नहि बुझि पाबि रहल छी ।
विज्ञान कोनो मनुक्खके खुन चढ़ेबासँ पहिने ओहि व्यक्तिक ब्लड ग्रुप किऐक टेस्ट करैत अछि ? तहिना हमर शास्त्र-पुरान, मूल, गोत्रके अन्वेषित करबाक बहुत पुरान परिपाटी बना विवाह-बंधनमे बँधबाक लेल कहने छथि ।
हमर व्यक्तिगत अभिमत अछि जे कोनो रूपें अन्तर्जातीय विवाहक समर्थन नहि कयल जेबाक चाही । संगहिं एहि तरहक विवाहमे भाग लेनिहारके सेहो विरोध कयल जेबाक चाही । ई बुझबामे थोड़बो भांगठ नहि जे एहि प्रकारक विवाहमे भाग लेनिहार व्यक्ति वा परिवारके सामाजिक कद समाजसँ कतेक दूर छन्हि । विजातीय विवाहसँ उत्पन्न संतान वर्णशंकर कहाबैत छथि । कुल-खानदान समेत स्वर्गस्थ पितर सेहो कष्ट पबैत छथि । गीतामे स्पष्ट संकेत अछि :
“संकरो नरकायैव कुलघ्रानां कुलस्य च ।
पतन्ति पितरो ह्येषां लुप्तपिण्डोकक्रिया ।।”
जय श्री हरि ।
– राजकुमार झा