हम सब कतय छी
समस्त सृष्टि – समस्त प्रकृति – समस्त स्थिति आदिक एकमात्र आधार भगवती आदिशक्ति जगदम्बा केर स्तुति मे ‘दुर्गा सप्तशती’ केर पाठ सब कियो बुझिते छी। भगवतीक विभिन्न अवतार आ दानव-दैत्यक संहार केर चरित्र वर्णन अछि। मधु-कैटभ केर बद्ध प्रथम चरित्र, महिषासुर आ ओकर सेनाक बद्ध मध्यम चरित्र आ फेर शुम्भ-निशुम्भ व ओकर विभिन्न सेना रक्तबीज आदिक बद्ध उत्तर चरित्रक संग देवता, ऋषि, मुनि, आदिक स्तुति समाहित दुर्गा सप्तशती अनमोल स्रोत हमरा सभक पास उपलब्ध अछि। विशेष काल यथा नवरात्र आदि मे भगवतीक पाठ त करबाके चाही, जँ नित्य पाठ आ मनन करब त एकर अद्भुत लाभ अपन जीवन मे उठायब। रूटीन बना लियऽ आ मातारानीक सब रूप केर प्रादुर्भाव ओकर कारण मे हम मानव व समस्त सृष्टिक कल्याण केर चरित्र केँ नीक सँ मनन करू।
लोक कहैत छैक वायरस (विषाणु) – एकटा हंटय नहि छैक आ कि दोसर फेर आबि जाइत छैक। एखन देखिये रहल होयब जे पिछला साल वला वेरिएन्ट सँ बेस खतरनाक वेरिएन्ट एहि साल आबि गेलैक कोरोना के। आर आब कोरोना संग-संग ब्लैक फंगस नाम के कोनो बीमारी आबि गेलैक। टेलिविजन पर दिन भरि चर-चर आ सामाजिक संजाल मे सेहो दिन भरि भर-भर देखिते छी। एहि चरचरी या भरभरी सँ समाधान कि निकलि रहल अछि? समाधानक बात जँ करब त नोट कय लेल जाउ जे हम-अहाँ हिन्दू धर्मशास्त्र केर अनेको दावी जे बेर-बेर सच होइत देखाइत अछि, त ओहि अनुरूप जे समाधानक मार्ग कहल गेल अछि वैह टा प्रभावी भऽ सकैत अछि।
दुर्गा भगवतीक अवतार दुरूह जीव महिषासुर केर वध करय लेल भेल। महिषासुरक जे कुरूपताक वर्णन पढब त बुझय मे आओत जे ई कोरोना आ ब्लैक फंगस सँ काफी जबरदस्त छल, ओ केवल मानवलोकहि टा के नहि अपितु देवलोक आ इन्द्र लोक तक अपन कब्जा जमेबाक कुचेष्टा करैत छल। हम सब जे सन्ध्या बन्धन व गायत्री उपासना करैत छी ताहि मे ७ टा लोक केर बात करैत छी – भूः, भुवः, स्वः, महः, जनः, तपः, सत्यः। वर्तमान स्थिति जे अछि हमरा सभक से भूलोक केर अछि, लेकिन हम सब अन्य लोक सँ प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप सँ प्रभावित होइत छी। हमरा लोकनिक जीवनचर्या मे सातो लोक मे व्याप्त शक्ति ‘जगदम्बा’ केर विभिन्न रूप रक्षा आ योग-क्षेम वहन करैत छथि। तेँ हम सब ‘माता’ कहि-कहि अपना लेल हुनका ध्यान करैत रहैत छी। से माता कहने छथिन देवता लोकनि केँ – कनी टा के आख्यान राखि रहल छीः
यदारुणाख्यस्त्रैलोक्ये महाबाधां करिष्यति॥५२॥
तदाहं भ्रामरं रूपं कृत्वाऽसंख्येयषट्पदम्।
त्रैलोक्यस्य हितार्थाय वधिष्यामि महासुरम्॥५३॥
भ्रामरीति च मां लोकास्तदा स्तोष्यन्ति सर्वतः।
इत्थं यदा यदा बाधा दानवोत्था भविष्यति॥५४॥
तदा तदावतीर्याहं करिष्याम्यरिसंक्षयम्॥ॐ॥५५॥
बहुत रास असुर आ ओकर दुरूहता केँ समाप्त (शमन) करय लेल हम अवतार लैत रहब। फल्लाँ समय फल्लाँ आओत त हम फल्लाँ रूप मे आबि ओकर संहार करब। आदि कहिकय ओ भरोस देलखिन देवता सब केँ जे अहाँ सब अपन कर्म – अपन भागक जिम्मेदारी निर्वाह करैत रहू। बाकी हम छी। हम देखब अहाँ सब केँ। डोन्ट वरी!!
उपरोक्त श्लोक केर भावार्थ मे चर्चा आयल अछि (दुर्गा सप्तशतीक ११म अध्याय) जे जखन अरुण नामक दैत्य तीनू लोक मे भारी उपद्रव मचायत, त हम तीनू लोक केर हित वास्ते छ: पैरवला असंख्य भ्रमर (भमड़ा) केर रूप धारण कय केँ ओहि महादैत्य केर वध करब। ओहि समय सब लोक “भ्रामरी” केर नाम सँ हमर स्तुति करत। एहि तरहें जखन-जखन संसार मे दानवी बाधा उपस्थित होयत – तखन-तखन अवतार लय केँ हम मैं दुष्ट सभक संहार करब।
एतय तीन टा लोक जल, थल आ नभ जाहि सँ हम धराधाम (मर्त्यभूमि) केर जीव सीधे सम्बन्ध रखैत छी तिनका वास्ते देवता (विभिन्न विभागक पदाधिकारी जे सर्वशक्तिमान केर सृष्टि केँ नियमित रूप सँ संचालित करबाक जिम्मेदारी निर्वाह कय रहल छथि) केर माध्यम सँ हुनकहि सभक स्तुति कयला उत्तर उपरोक्त वचन भगवती देलखिन।
आब हमर मन-मस्तिष्क मे एहिठाम किछु सवाल अछि। हम मानव अपन देवता (पदाधिकारी) केर प्रति कतेक जिम्मेदार छी आ कतेक नियम-निष्ठा सँ अनुशासित रहिकय अपन देवता लोकनि केँ प्रसन्न रखैत छी – एहि पर हमहीं सब मनन करब। हमरा लोकनिक बाप-पुरखा या ओ विद्वज्जन जे ई सारा शास्त्र-पुराण केँ सहेजकय रखलनि आ हमरा सब केँ एकटा निश्चित मार्ग निर्दिष्ट कय देलनि जे साल भरि ई काज करू, ई एना करू, ओ काज बन्धित छैक से नहि करू, जल पवित्र प्रयोग करू, छुआयल अन्न-जल ग्रहण नहि करू (छुतका आदिक कारण), फल्लाँ समय माछ-माँसक सेवन बन्द करू, व्रत मे ई सब करू, अनोना करू, एकसंझा करू, एकादशी, त्रयोदशी…. आदि अनेकों बातक जे एकटा सिलसिला चलि आबि रहल अछि ताहि प्रति हम-अहाँ आइ भौतिक सुखक चक्कर मे कतेक सजग रहिकय ओ काज सब पूरा कय रहल छी, एहि प्रश्न केर जवाब जरूर ताकय जाउ।
ॐ तत्सत्!
हरिः हरः!!