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“सत्यवान- सावित्री”

सुभद्रा झा               

बड्ड नीक विषय–“वट-सावित्री व्रत कथा”। ई त प्राचीन काल स चलल आबि रहल अछि।जेठ मास्क अमावस्या दिन जतेक अहिबाती छथि, ओ सभ अपन सिंदूर के सलामती लेल विषहरिक (पांचो बहीननिक) पूजा बडक गाछ तर करैत छथि। एहन मान्यता छै जे अहि दिन यदि मोन स विषहरिक अराधना कएल जाए त यमराज षेहो विवश भ जाई छथिन। प्राचीन कालक कथा एना छै—- सावित्री के सिंदूर (सत्यवान) के प्राण यमराज अपना संगे नेने जाई छलखिन किया त हुनक आयु पूरा भ गेल रहनि। सावित्री के वैधव्य काल आबि गेल रहनि मुदा हुनका ई रूप (वैधव्य) स्वीकार नहि छलनि। ओ यमराजक पाछु-पाछु बिदा भेली। यमराज जी नाना प्रकारे हुनका डराब के कोशिश केलैथ मुदा सब व्यर्थ। तखन ओ (यमराज जी) कहलखिन जे हम अहाँक पतिव्रत धर्म स बड्ड प्रसन्न भेलऊ–माँगू वरदान। सावित्री मंगलैथ जे हम स्वस्थ रही। यमराज तथास्तु कहि बिदा भेला। सावित्री पुन: पाछु चलै लगली। यमराज जी कहलखिन जे आब जुनि हमरा पाछु आऊ। वापस चलि जाऊ। सावित्री कहलखिन जे हमरा पुत्रवती क आशीर्वाद द दिय, हम घुरि जायब। बिन सोचल यमराज जी पुन: तथास्तु कहि बिदा भेला। सावित्री हुनक पछोड नहि छोरलैथ। आब यमराज जी कनि रोष मे बजलैथ जे आब त सब किछ द देलऊ। आब किया हमर पाछु अबै छी अहाँ? जी अपने यथार्थ कहल मुदा पुत्रवती के आशीर्वाद देल अपने हमर स्वामी के संगे नेने जाई छी त हमर पुत्र कोना क प्राप्त हैत? आब यमराज जी के अपन गलती के एहसास भेलनि। अत्यंत प्रफुल्लित भ के सत्यवान के प्राण घुरा देलखिन आ कहलखिन जे आई स जे अहिबाती जेठ महीना के अमावस्या दिन विषहरिक पूजा शुद्ध मोन स बडक गाछ तर करती– हुनक सुहाग के सदैव रक्षा हेतैन आ ओ अखंड सौभाग्यवती रहती। ताहि दिन स सभ अहिबाती ई अखंड पूजा करैत छथि।बहुत ठाम उपवासक प्रथा सेहो छै। बरसाइत दिन अहिबाती सभ अपन वर के बीएन स पंखा हाँकैत छथि जाहि स हुनक स्वामी शीतल रहथिन आ हुनक खुर छू क आशीर्वाद सेहो लैत छथि। बरसाइत दिन अहिबाती के नून नहि खेबाक विधान छै। नव बियाहुलक बरसाइत बड्ड विधि विधान स पूजल जाई छनि।अहि क्रम में सात टा बाँसक बीएन,कनिया-पुत्रा, माटिक बनल विषहरि, नैहर आ सासुरक बनल गौरी, सात रंग के फल, चना फुलाएल,मधुर-मिठाई, बेलपत्र, फूल-पत्ती,नाना प्रकार के नैवेद्य, अक्षत आ धूप इत्यादि।सबस पहिने पवनैतिन गौरी पूजा के,विषहरिक पूजा करै छथि, साठगांठ ब्रम्हा जी के पूजा करैत, गीत-नादक ध्वनि संग पहिने कनिया-पुत्राक विवाह करबैत छथि तखन यदि वर पाछु बैसल रहै छथिन त हुनको (पवनैतिन के) सिंदूरदान होई छनि।ओकर बाद पवनैतिन सात बेर सात रंगक फल अथवा सात टा आमक संग बडक गाछ के चारू भाग घुमैत छथि आ संग में डोर सेहो लपटैत जाई छथि।तकर उपरांत कथा कहनिहारि कथा कहै छथिन।पूजा के उपरांत पवनैतिन सात टा अहिबाती के संग बैसि क खीर खाइ छथि।खाइ स पहिने ओ अपना हाथे सभ अइहब के खीर दैत छथिन। सभ अहिबाती के अखंड सुहाग बनौने रहैथ, येह कामना संग आब हम इति करै छी। 🙏🙏

 

 

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