“शहरी मैथिल सबकें विवाह पद्धति”

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अंजू झा।                   

 

संगीक बेटी ब्याह के आयल निमंत्रण,
देखि कार्ड भेल मोन प्रसन्न।
कार्ड खोलिकऽ जखन देखल,
ब्याहक जगह होटल में लिखल।
होटलक नाम पढ़ि भेल गुमान,
संगिक लेल बढ़ल सम्मान।

जहिया ब्याहक दिन निश्चित छल,
हमहूँ सपरिवार पहूंँचलौं होटल।
होटलक दृश्य अति मनभावन,
साज सज्जा में छल ओ अनुपम।

सब अतिथि समय पर पहूँचल,
कन्या वर पक्ष एके ठाम बैसल।
हमहूं जा सम्मिलित भऽ गेलौं,
सब संग जल्दी घुईल मिल गेलौं।

हास परिहास के दौर शुरू भेल,
वरियाति अबै के समय आबि गेल।
होटलक शोभा कहल ने जाई
दिया बातीके राईत बुझाई।

सजि धजि कऽ कन्या जे उतरल
हुनका आगु अप्सरा कमतर।
श्रृंगार हुनक छल अति अनूपा,
लागथि देवी दिव्य स्वरूपा।

कनियांक माय एली अपन सासूक पास,
जे गवै छली गीत बिना कुनो भाष।
देबय बला कियो संग ने साथ
गप्प छोरैथ सब, बिन लेने साँस।

मांँ विध पहिले कुन करबियै
कन्यांक माय अपन सास सं पुछलैन।
गीत खत्म कऽ सासू बजलैन
पहिले कहू धिया कुमारि गौड़ी पुजलैन।

सुनतहि भऽ गेल दौड़ा-दौड़ी,
कन्या केना आब पुजती गौड़ी।
गौड़ी पूजा लिस्ट में नै छल,
तैं सरवा ने सुपारी आयल।

कन्या माँके सब ताना मारथि
कन्यांक दादी किछु ने बाजथि।
कन्यांक पीसी लेली सम्हारि,
मौसी के देली मजाकक गाईर।

कहलैन समयक नाजुकता बुझू,
बेटी गौड़ आंचर पर पूजू।
सुनि कऽ बेटी मूंँह मुस्केली,
फेर आंचल पर गौड़ी पुजली।

तखन बराती आयल दलान,
वरके मोहन रूप विलक्षण ज्ञान।
परिधानक तऽ बात ने पुछू,
मिथिलाक संस्कार भेल बड़ पाछू।

ने सिर पाग ने धोती ललका,
शेरवानी सेहरा पहिरने लड़का।
ने चानन ने आंँखि में काजर,
दोपटा जगह ओढ़नी ओढ़ने वर।

परिछनक डाला छल पूर्ण सजल
गीत नाद संग दुल्हा परिछल।
नैना जोगिन ओठंगर भेल,
विधक नाम पर देखलौं खेल।

आब आयल बेदी के बारी,
बड़ के घेरलैथ सरहोजि,सारी।
पंडिजी सेहो चटपटिऐ छलाह,
बिन लावा के फेरा लगेला।

दाई माई कहलैन लावा छिटबियौ,
पंडित जी कहला ईसब आब रहैऐ दियौ।
अहि विधाने भेल ब्याह संपन्न,
वर कनियांक संग सब भेल मगन।

आब भेल मऊहक के बेर,
बिन थारी करब कोना फेर।
चाहक कप में दही चिन्नी एलै,
अहि तरहें विध पूरा भेलै।

जखन आयल विदागरिक बेर,
कन्या पक्ष उदाश भऽ गेल।
होटल सं बेटी गेली सासूर,
कनियां माय कनैत भेली व्याकूल।

ब्याहक भेल खतम झमेला,
पाहून सब सेहो अपन घर गेला।
धियाक बाप अपन माय लग बैसला,
पहिले दुनू धिया लेल कनला।

बेटा कहलैन माँ भेल ब्याह सम्पन्न,
बीच में तऽने कोनो आयल अड़चन।
विध व्यवहार रीत सब भेल,
केलौं कन्यांदान मनोरथ पूरा भेल।

माँ बेटाक सिर पर रखलैन हाथ,
कहलैन चिंता के ने कोनो बात।
गौरीशंकर किरपा(कृपा) करैथ,
संसार बेटी के सुख सं भरैथ।

गाम छोरि जे शहर के भेलौं,
अपन संस्कार के अपने छोरलौं।
आब रीति-रिवाज के बात कहां
ने ओ नगरी ने ओ ठांव! ने वो ठांव!!
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स्वरचित 🖊️