स्वयं बचाउ आ राज्य पर दबाव बनाउ – ई अहाँक अधिकार थिक

मैथिली

– प्रवीण नारायण चौधरी

 
हम-अहाँ मैथिलीभाषी छी। जतेक मूल मिथिलावासी छी सभक भाषा मैथिली छी। मैथिली जेकर कतेको रास बोली छैक।
 
एक शब्दक अनेक पर्याय सहितक ई भाषा एतेक मीठ अछि जे विश्व भरिक कइएक भाषा मध्य एकर अपन खासियत केँ गानल जाइत छैक। एकर बहुत रास कारणो छैक। अपने सब हर्स्व आ दीर्घ स्वर मध्य हर्स्वक प्रयोग अधिक करैत छियैक। दीर्घ स्वरक आधिक्य रहला सँ बाजयकाल बेसी समय लागब आ ध्वनि मे जोर-जरब पड़बाक कारण भाषाक शालीनता घटि जाइत छैक।
 
जेना घरहि मे कियो मेंही आवाज मे गप करथि आ कियो कर्कश स्वर मे बाजय – दुनू मे मधुरताक फर्क होइत छैक, ठीक तहिना विश्वक आन भाषा मे आ मैथिली मे हर्स्व स्वरक आधिक्य रहबाक संग एकहि भाव-उद्गार प्रकट करय लेल अनेकों वैकल्पिक शब्द रहब, ताहि मे एतेक बेसी अपनापन आ स्वत्वक प्रयोग होयब हमरा लोकनिक भाषा केँ मीठास प्रदान करैत अछि।
 
एकरा किछु भाषाविज्ञ लयात्मक भाषा (lyrical language) केर श्रेणी मे सेहो रखैत छथि। कियैक तँ मैथिली बाजल जाइत समय कोनो कविता वाचन करबाक शैली मे लय, सुर आ ताल मिलाकय लोक स्वाभाविक रूप सँ बजैत अछि। बाजयकाल मे भावनाक प्रकटीकरण संग शारीरिक अभिव्यक्ति – अनुहार (चेहरा) के ओज आ मुखाकृतिक हृदयक भावना मे पवित्रता सेहो मैथिली केँ लयात्मक बनय मे सहायक होइते छैक, से सब कियो हृदयंगम् करब।
 
मैथिलीक आरो बहुत रास खासियत अछि। एक्कहि गाम मे किंवा एक्के परिवार मे पर्यन्त मैथिलीक विभिन्न रूप बाजल जाइछ। जाहि भाषाक जतेक बेसी बोली हो ओ ओतेक सम्पन्न आ दीर्घजीवी मानल जाइछ। कहबी छैक न – कोस कोस पर पानी बदले कोस कोस पर वाणी! कोनो कोनो गाम सेहो अपन खास बोली लेल जानल जाइत अछि। केकरो आवाज सुनिते कहि देल जाइत छैक जे ई दछिनाहा बुझाइत छथि या ई पछिमाहा। ई सब खासियत थिकैक। ई वास्तव मे सब भाषा मे होइत छैक।
 
लेकिन एकर किछु हानि सेहो छैक, बोलीक फर्कक नाम पर जाति व धर्मक नाम पर सियासी (राजनीतिक रोटी सेकनिहार) लोक समाज मे विभाजन आनिकय अपन गोटी लाल करय मे लागि गेल करैत अछि। कतेको पढ़ल-लिखल आ अपना केँ सम्भ्रान्त कहेनिहार लोकहु धरि दोसरक बोली पर कटाक्ष आ कुटिल टिप्पणी कय बैसैत अछि, जाहि सँ एहेन गलत राजनीतिक लाभ उठेबा मे सियासी लोक केँ आर सहजता भेटल करैत छैक।
 
ई प्राकृतिक न्यायक सिद्धान्त (Principle of Natural Justice) छैक जे बोली मे परिष्करण शिक्षा, संस्कार, योग्यता, वैचारिकता आ विवेकशीलता आदि सँ प्रभावित होइत छैक, तेँ पढल-लिखल, बे-पढल-लिखल, कम-पढल-लिखल, बेसी पढल-लिखल लोक अनुसारे हरेक भाषाक बाजल जेबाक शैली मे भिन्नता होइत छैक आर तेँ बोली व्यक्तिक निजी क्षमता पर आधारित हेबाक कारणे अलग-अलग होयब स्वाभाविक होइत छैक। तेँ स्पष्ट छैक जे मैथिली मे सेहो अनेकों बोली छैक।
 
आइ सँ लगभग १४० वर्ष पूर्वहि महान् आयरिश विद्वान् – डा. जार्ज अब्राहम् ग्रियर्सन सेहो मैथिलीक अनेकों बोली हेबाक तथ्य अपन शोधालेख मार्फत दुनियाक सोझाँ रखलन्हि। बाद मे हुनकहि द्वारा १९०३ ई. सँ १९२८ ई. धरिक कइएक भाग (Volumes) मे प्रकाशित भारतीय भाषिक सर्वेक्षण (Linguistic Survey of India) मे सेहो मैथिली भाषाक सम्बन्ध मे विशद चर्चा कयल गेल अछि।
 
लेकिन मैथिलीक दुर्भाग्य सेहो एहि ब्रिटिश औपनिवेशिक काल मे भारत केँ स्वतंत्र करबाक संघर्ष आ हिन्दी केँ सम्पूर्ण हिन्दुस्तान केर एक राष्ट्रीय भाषाक रूप मे अंगीकार करबाक प्रखर आन्दोलन, पूर्वक प्रचलित गुरुकुल आ संस्कृत शिक्षा पद्धति केँ छोड़ि ब्रिटिश इंडिया द्वारा संचालित प्राइमरी, मिडिल व हाई स्कूल मार्फत शिक्षा ग्रहण करबाक बाध्यकारी व्यवस्था, अंग्रेजी भाषा सिखबाक अनिवार्यता, तत्कालीन छोट-छोट रियासत (Princely States) यथा दरभंगा, बेतिया, पुर्णिया, आदि द्वारा राजकाजक भाषा बदलबाक आ अंग्रेजी या हिन्दी अपनेबाक बाध्यकारी व्यवस्था, एम्हर अदालती भाषा मे उर्दूक आधिक्य केँ छँटाई करैत अंग्रेजीक अनिवार्यता आदि कतेको कारण सँ मैथिली भाषा सुव्यवस्थित रूप सँ नहिये राजकाज मे, नहिये अदालत मे, नहिये शिक्षा मे, नहिये संचार मे – कतहु भऽ कय नहि रहल। यैह थिकैक मैथिलीक मूल दुर्भाग्य!
 
कहियो विद्यापति समान महान् सपूत आ राजधर्मक प्रखर निर्वाहक राजा शिव सिंह केर मित्र सह मंत्री तत्कालीन राजकाजक भाषा – विद्वानक भाषा संस्कृत केँ दरकिनार कय लोकहित लेल मैथिली (तत्कालीन रूप अवहट्ठ) केँ अंगीकार कयलनि। के नहि जनैत छी विद्यापतिक ओ महावाक्य “देसिल वयना सब जन मिट्ठा – तेँ तैसओं जंपओं अवहट्ठा’। यैह कारण छैक जे विद्यापतिक रचना नहि सिर्फ विद्याध्यायी विद्वत् वर्ग बल्कि निरक्षक सर्वहारा समाजहु द्वारा स्वीकार कयल गेल, तेँ ओ जन-जन केर कंठ धरि पहुँचि गेलाह, साधारण गृहिणी महिला लोकनि हुनक कृति केँ अपना लेलीह – आर महाकवि कोकिल एहि ठाम ‘जनकवि’ सेहो बनि गेलाह।
 
ई बात अलग छैक जे विद्यापति केँ तत्कालीन शिक्षित आ उच्चवर्गक विद्वान् लोकनि द्वारा बहुत फझीहत भोगय पड़लन्हि – लेकिन विद्यापतिक दृढसंकल्प आ ठेस्सापन (challenging attitude) केर कारण ओ सब सँ लड़ि लेलनि आ आमजनक हित मे मैथिली केँ स्थापित कय देलनि, एकर प्रमाण हुनकहि रचना मे एना भेटैत अछि –
 
बालचंद विज्जावइ भासा –
दुहु नहि लागइ दुज्जन हासा।
ओ परमेसर हर सिर होइ
ई निच्चय नाअर मन मोहइ॥
 
अर्थात् बाल-चन्द्रमा आ विद्यापतिक भाषा, एहि दुनू पर दुष्टहु (दुर्जन) केँ पर्यन्त हँसी नहि लागि सकैत अछि। जेना बाल-चन्द्रमा (दुतियाक चान) स्वयं परमेश्वर (देवाधिदेव महादेव) केर माथ पर शोभैत छन्हि, तहिना ई भाषा (मैथिली) सहृदयी स्वजन केर मोन केँ मोहय वला अछि।
 
बुझि सकैत छी जे ई पद्य मार्फत ओ किनका बुझेलनि अछि। ई जवाब निश्चितप्राय अपन प्रखर प्रतिद्वन्द्वी विद्वान् पक्षधर मिश्र ओ हुनका द्वारा प्रेरित समस्त विद्वत समाज लेल स्वयं मिथिलापति शिवसिंह केर सोझाँ मे पूर्ण ठेसल स्वर मे कहल गेल स्पष्ट अछि।
 
कहबाक तात्पर्य हमर यैह अछि जे एहि विशाल धराधामक अलग-अलग भूभाग मे प्रचलित अलग-अलग भाषा अनुसार ओहि भूभागक लोक केर पहिचान करबाक सर्वोच्च-सर्वप्रथम आधार भाषा होइत छैक। हम मिथिलावासीक भाषा मैथिली थिक। कतबो हमर भाषा केँ अंगिका, बज्जिका, ठेंठी, जोलही, सूर्यपुरिया, पछिमाहा, छिकाछिकी, ऐँठी, पेंठी आ एखन नेपाल मे किछु ढेर होशियार लोक द्वारा मगही आदिक संज्ञा दय छोट करबाक काज कयल जायत – हमर मौलिकता आ मिठासपूर्ण मातृभाषा मैथिली कमजोर नहि होयत।
 
मैथिली अपन स्वस्फूर्त सृजनकर्म सँ आइ धरि जिबैत अछि। लगभग ७०० वर्ष सँ संघर्षरत अछि। विद्यापतिक कालखंड १३५०-१४५० ई. उपरान्त एकर स्वर्णकाल कहिया धरि रहल ताहि पर हमरा आरो अध्ययन करय पड़त। धरि स्वयं विद्यापति द्वारा अपन प्रिय राजा शिव सिंह केँ यवन-शासक – दिल्ली दरबार पहुँचि मैथिलीक पदावली प्रस्तुत करैत जाहि तरहें कैदमुक्त (freed from imprisonment) कय मिथिला राज केँ पुनः राजा लौटा देलाह, त एकरा हम निश्चित स्वर्णकाल कहि सकैत छी। एक विद्यापति यदि करोड़ों जनमानस मे अपन देसिल वयनाक रचना सँ स्थापित भऽ जाइत छथि त निश्चित मैथिली केँ प्राप्त समर्थन आ जनताक जोश व स्वीकार्यता सिद्ध करैत छैक, यैह त भेल स्वर्णकाल। ओना, विद्वान् लोकनि अपन आरो तर्क आ विचार राखि सकैत छथि।
 
मुदा मैथिली संघर्ष सेहो समानान्तर रूप सँ राज्यक स्वीकार्यता लेल करैत देखा रहल अछि। यवन-शासनकाल, मुगलकाल, ब्रिटिशकाल, आर एतेक तक कि स्वतंत्र भारतहु मे १९४७ सँ २००३ ई. धरि संघर्षक गाथा बहुत रास अछि। एहि पर अलग सँ लिखल जाय त एकटा ग्रन्थ बनि जायत। तहिना नेपाल मे पर्यन्त विद्यापतिक प्रभावक्षेत्र रहब – सप्तरी, सिरहा, धनुषा, महोत्तरी, आदि आर ताहि सँ पूर्व साक्षात् नान्यदेवक कालहि सँ सिमरौनगढ़ मे राज्य स्थापित करबाक ऐतिहासिक-पुरातात्विक आधार, ज्योतिरिश्वर ठाकुर समान महान वर्णरत्नाकर रूपी विश्वक पहिल इनसाइक्लोपीडिया रचनाकार, तदोपरान्त काठमांडू धरि मल्लकालीन राजा लोकनिक समय मे दरबारक राजकाजक भाषा, मनोरंजनक भाषा मैथिली रहबाक कारण ई सब भले स्वर्णकाल मे गनाय, मुदा शाहवंशीय राजाक कालखंड मे अबैत-अबैत मैथिली दोसर भाषा बनि जाइत अछि आर फेर नेपालहु मे प्रजातंत्रक प्रवेश वर्ष २००७ विक्रम संवत साल (१९५० ई.) सँ एखन धरि राजकीय हैसियत लेल ई संघर्षे कय रहल अछि। बड़ा मुश्किल सँ आंशिक शिक्षा मे आ लेखन-प्रकाशन आदिक प्रोत्साहन लेल विद्यापति पुरस्कार कोषक माध्यम सँ मैथिली किछेक डेग हुकरैत बढि सकल अछि। बाकी, संघर्षक सिलसिला जारी अछि।
 
नेपालक मधेसवादी राजनीतिज्ञ लोकनि शासकवर्गक एकल भेष-भाषा विरूद्ध, विभेदकारी शासन विरूद्ध, उत्पीड़न आ सीमान्तकृत करबाक विरूद्ध तीक्ष्ण संघर्ष करैत दोसर दर्जाक नागरिक सँ मूलधारा मे समान राष्ट्रीयताक गौरवपूर्ण अस्मिता लेल ‘मधेस आन्दोलन’ सँ बहुत हद तक अधिकार प्राप्त कयलनि अछि। लेकिन विडंबना केहेन छैक से देखू, एकल भाषा नेपाली सँ निकलिकय पुनः हिन्दी भाषा केँ सम्पर्क भाषाक नाम पर मधेसक एकजुटता लेल झापा सँ कंचनपुर धरिक मधेसी केँ एक करबाक सपना देखैत पुनः मातृभाषाक अवहेलना कयलनि। मैथिली एतहु हरायल आ भोथियायल गेल।
 
आइ विशुद्ध मिथिलाक्षेत्रक ८ जिला सहितक एकटा प्रान्त ‘प्रदेश-२’ केर गठन होइत नेपाल संघीय लोकतांत्रिक गणतंत्र बनि चुकल अछि, केन्द्र सँ भाषिक सम्मान लेबाक आ मैथिली केँ स्थापित करबाक बात त दूर, प्रदेश-२ जतय ५०% सँ बेसी मैथिलीभाषी अछि ओतहु ‘राजकाजक भाषा, शिक्षाक भाषा, संचारक भाषा, फिल्मक भाषा’ आदि राज्य द्वारा स्वीकृति नहि प्राप्त कय सकल अछि। प्रदेश २ मे एखनहुँ संवैधानिक व्यवस्था अनुरूप ‘एकल भाषा – खसभाषा (नेपाली)’ मात्र चलि रहल अछि। मैथिलीक संघर्ष जारी अछि।
 
आत्मघाती राजनीतिक सोच आ विखंडनकारी सत्ताभोगी जनता केँ विभाजित करबाक मनसाय सँ मैथिलीक गमइया बोली केँ आ किछु निश्चित जाति-समुदायक बोली केँ ‘मगही’ कहिकय दुष्प्रचारित सेहो करैत अछि। अदूरदर्शी विचारक वर्ग आ आत्मघाती राजनीतिक व्यूह रचनाकर्ताक एतय बहुल्यता देखाइत अछि। मैथिलीक बोलीक आधार पर विभाजन आ मैथिली केँ कमजोर करबाक षड्यन्त्र शासकवर्ग ऊपर सँ करैत अछि जाहि सँ संघीय अधिकार मे मैथिलीक हिस्सेदारी नेपाली पछाति दोसर सर्वाधिक नहि हुअय आ मैथिलीभाषी बेसी सरकारी सेवा आयोग पास करैत हाकिम-हुकुम नहि बनय, बस ततबे टा के क्षुद्रता मे ई षड्यन्त्र भेल अछि। बिल्कुल तहिना प्रदेशहु मे मैथिली केँ बाभन-कायस्थक भाषा मानि आन जाति केँ भ्रमित कयल जा रहल अछि। अरे! भाषा कदापि जाति केर नहि भूगोल केर होइत छैक। एहि प्राकृतिक सिद्धान्तक विपरीत बौद्धिक आ वैचारिक निर्णय केँ आत्मघाती नहि कहब त दोसर की!
 
मैथिली संघर्षरत अछि। मैथिलीक संघर्षक अवस्था अपनहि प्रदेश बिहार मे सेहो एहेन छैक जे शिक्षकक बहाली तक नहि कयल जा रहल छैक। दरभंगा मे रेडियो स्टेशन मैथिलीक वास्ते स्थापित कयल गेलैक प्रसार भारती द्वारा आ एतहु सँ बहुल्य कार्यक्रम हिन्दीक संचालित करैत मैथिली केँ सदा-सदा लेल मृत्युक जाल मे ओझरेबाक लेल छोड़ि देल गेल छैक। डीडी मैथिलीक मांग किंवा डीडी बिहार मे मैथिलीक अधिकार समानुपातिक-समावेशिक आधार पर सेहो दीतैक त किछु बात होइतय… लेकिन सब ठाम हिन्दीक अफीम बाँटि सौंसे समाज केँ वर्णसंकर बना देल गेल छैक। बसहु मे यात्रा करब आ साँझ पड़िते एकटा ग्रामीण साधारण महिला प्रचलित भाषा हिन्दी बजती आ कहती ‘यौ ड्रेभर सेहाब, कनी बौउल बाड़ि दीजिये’।
 
जखन-जखन राज्य द्वारा कोनो भाषा विशेष प्रति शत्रुता रहैत छैक त स्वाभाविक रूप सँ ओहि भाषाभाषी समाजक मोन मे अपनहि भाषा प्रति रुझान घटैत चलि जाइत छैक। स्पष्टे छैक जे आइ मैथिलीभाषी अपन मातृभाषाक प्रयोग, पढाई, प्रदर्शन आदि सँ आत्मगौरवक बदला हीनताबोध आ लज्जानुभूति करय लागल अछि। कथित अगुआ समाज त एकरा आर तेजी सँ विनाश करय दिश लागि गेल अछि। ओ सब त स्पष्टे कहत जे हिन्दी बजलहुँ त मध्यम स्तरक विद्वान् भेलहुँ आ अंग्रेजी बाजि लेलहुँ तखन त बेरे पार भऽ गेल बुझू, आब त अहाँ विश्वस्तरक ग्लोबल स्कौलर बनि गेलहुँ। एहेन आत्मश्लाघा सँ नहि जानि केकर कतेक उन्नति भऽ रहलैक अछि, धरि श्रेष्ठक अनुकरण मे आम जनता – आम समाज त आर वर्णसंकर होइत लास्ट मे डीजे गीत पर मुड़न आ विवाह सब करय लागल अछि। ब्राह्मणहु परिवारक लोक अपन मैथिलीक पारम्परिक गीतनाद बिसरिकय आब सरेआम डीजे गीत पर नचैत देखल जाइछ। एहि संकरता सँ डर होबय लागल अछि जे मिथिला सभ्यता जे एतेक युग सँ जियैत रहल अछि से एहि कलिकाल मे मृत्युक वरण कय लेत, जीर्ण भऽ जायत, समाप्त भऽ जायत।
 
तेँ, अन्त मे हमर एतबा आग्रह – जाहि मैथिली मे जानकीतत्त्वक प्रचूरता अछि तेकरा स्वयं त नहिये टा लतियाउ… राज्य आ राजनीति केँ सेहो सही सूझ आबय ताहि लेल संघर्ष तेज करू। अन्यथा अर्जुनक ओ कथ्य जे जाहि घरक स्त्री दुषित भऽ जाय आ वर्णसंकरक उत्पत्ति भऽ जाय त ओहि कुल-परिवारक विनाश निश्चिते बुझू – ई मिथिला-मैथिली लेल अवश्यम्भावी सच भऽ जायत। ॐ तत्सत्! लेख लम्बा भेलैक, लम्बे माथ लेल लिखबे केलहुँ… लम्बा प्रतिक्रिया सेहो वांछित अछि। 🙂
 
हरिः हरः!!