सरकारी नौकरी आ प्राइवेट नौकरी बीच तुलनात्मक समीक्षा

दहेज मुक्त मिथिला आ सरकारी नौकरी

 
(सरकारी नौकरी आ प्राइवेट नौकरी – एक तुलनात्मक अध्ययन)
– प्रवीण नारायण चौधरी

मिथिला मे दहेज प्रथा

 
हम सब एकटा जनजागरण अभियान मे छी, एकर नाम थिकैक ‘दहेज मुक्त मिथिला’। हमरा लोकनिक दावी अछि जे एहि समूह द्वारा बिना कोनो माँग के दुइ पक्ष आपस मे विवाह समान पुनीत सम्बन्ध जेकरा मिथिला मे कुटमैती कहल जाइछ से करैत छथि। विवाह त वास्तविक मे दुइ विपरीत लिंगी मानव केँ एकटा तहजीव मे एक संग होयबाक अधिकार दैत छैक जाहि सँ मानव जातिक ऐगला पीढी (सन्तति) केर आगमन होइत सृष्टि निरन्तरता मे रहैत छैक, लेकिन एहि विवाह लेल स्वयं मानव कय रंगक मापदन्ड निर्धारित कएने अछि जेकरा नीक जेकाँ मिलबैत अछि, जँचैत अछि, परखैत अछि… तखन जा कय दुइ प्राणी, एक महिला आ एक पुरुष बीच वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित कयल जाइछ। समस्त जीव-जन्तु मे मानव आ जानवर या फेर वनस्पति मे प्रजनन क्रिया सँ नव जीवन बीजारोपण व जन्म-आगमन होइत छैक। चूँकि मानवक जीवनशैली आन सब जीव-जन्तु आ गाछ-वृक्ष सँ भिन्न छैक, तेँ कनेक अलग आ किछु निश्चित जाँच प्रक्रिया उपरान्त विवाह तय होइछ। विवाह सँ पूर्व किछु लेन-देन आ व्यवहारिकता केँ पूरा करबाक नाम पर एकटा प्रथा चललैक जेकरा कहल जाइत छैक ‘दहेज प्रथा’। सुविधा प्रति साकांक्ष मानव ‘दहेज प्रथा’ केर विकास त बहुत किछु सकारात्मक तर्क सँ कयलक, आपसी सम्बन्ध केँ प्रगाढ करबाक आ एक समाज सँ दोसर समाज मे जेबाक लेल दहेजक सहारा सँ विवाहरूपी संस्थान केँ खूब लोकप्रिय आ दीर्घजीवी सेहो बनेलक… लेकिन धीरे-धीरे ई दहेज प्रथा अपन सकारात्मक स्वरूप सँ नितान्त अलग अत्यधिक नकारात्मक स्वरूप मे परिणति पबैत चलि गेल, जाहि कारण कतेको लोक बेटीक जन्म देनाय तक पाप मानि कोइखे मे भ्रूणक लिंग जाँच करबा-करबा कन्याभ्रूण केर हत्या जेहेन जघन्य पाप तक करय लागल। एहि दहेजक कारण कतेको विवाहित बेटी केँ जिन्दा जरा देल गेल, फाँसी पर लटका देल गेल आ अनेकों तरहक प्रताड़णा व हिन्साक शिकार बना देल गेल। दहेजरूपी लोभ मे फँसल समाज एकर सार्थकता व सकारात्मकता केँ पूर्णरूपेन कात कय सिर्फ आडम्बर, अहंता, अनधिकृत अधिकार आदिक अपराध केँ बढावा दैत चलि गेल। एहि तरहें एकटा नीक प्रथा पूर्णरूपेन कुप्रथा बनि गेल से कहि सकैत छी।
 
मिथिला समाज मे दहेजक पर्यायवाची शब्द जे काफी सकारात्मक-सार्थक माने सेहो दैत अछि से ‘दान’ केर रूप मे प्रचलित रहल। लेकिन विगत गोटेक दशक मे एतहु ‘दान’ जे स्वैच्छिक आ स्वयं-सामर्थ्य अनुसार होइछ तेकर विपरीत लोक केँ डीह-डाबर बेचबइयो कय दहेजक मांग पूरा करेबाक परिस्थिति उपस्थित कय देबाक अत्यन्त विचित्र लेकिन सामाजिक स्वीकार्यता संग आरम्भ कय देल गेल। जे मिथिला विदेहराज जनक आ जगज्जननी जानकीक पुनीत भूमि रहल, जतय वेद आ आध्यात्मक संग न्याय, मीमांसा, वैशेषिक, सांख्य संग योग व वेदान्तक षट्दर्शन संरक्षित-संवर्धित-प्रवर्धित होइत रहल से आइ दहेज कुप्रथाक पराकाष्ठा मे जकड़ल देखाय दैछ, समाज मे खुलेआम दहेज लेनिहार आ दहेज गननिहारक प्रशंसा आ हकार दय-दय केँ साँठ-सगुन आदिक प्रदर्शन करबाक घोर निन्दनीय कार्य कयल जाइछ। कतबो राज्य दहेज बंधित कएने अछि, लेकिन जे समाज स्वयं कोनो प्रथा केँ अपन स्टेटस सिम्बल बनेने हुअय आ दहेजहि केर आधार पर नीक घर आ वर भेटबाक भ्रमजाल मे फँसल हो, ओतय सारा कानून, मर्यादा आ नियमादि बदतर ढंग सँ फेल (असफल) सिद्ध भेल अछि।
 
एहि दहेज प्रथा केँ बढावा देबाक काज कयलक ‘सरकारी नौकरी’। चूँकि सरकारी नौकरी मे सरकारी नौकर केर मालिक ‘सरकार आ सरकारक विधान’ (विधिक शासन अनुसार सरकारक संचालन हेबाक सिद्धान्त) कारगर छैक – कोनो व्यक्ति नहि बल्कि सर्विस कोड सँ तय कयल बातक महत्व होइत छैक, जखन कि प्राइवेट (निजी) नौकरी मे मालिक सदिखन कियो प्राइवेट औनर (निजी व्यक्ति/स्वामी) होइछ जे कखनहुँ अपन मर्जी आ करारनामाक शर्त अनुसार निर्णय लय नौकरी सँ बेदखल कय सकैत छैक – बस एहि मुख्य अन्तर ‘स्थायित्व’ व ‘अस्थायित्व’ केर कारण ‘सरकारी नौकरी करयवला दूल्हा’ केर मांग मिथिला मे अत्यधिक छैक। प्राइवेट नौकरी मे सरकारी नौकरीक अपेक्षा उल्लेखनीय लाभ व बढबाक अवसर रहितो एक ‘अस्थायित्व’ केर चलते लोक एकरा प्राथमिकता मे नहि रखैत अछि। मिथिलाक्षेत्रक लोक केर प्रवृत्ति मे बिन काजहु केने सरकारी खजाना सँ माल (तनख्वाह) भेटैत रहबाक बात त एहि मांगरूपी भांग मे अफीम घोरबाक काज कय दैत छैक। एक लोक दोसर केँ उदाहरण दैत देखा जायत जे देखियौन फल्लाँ केँ… फल्लाँ सरकारी कौलेज मे प्रोफेसर छथि, क्लासो नहि कहियो लेबय पड़ैत छन्हि आ घर बैसले लाख टका वेतन कमा रहल छथि। बेसीतर शिक्षक, कार्यालय मे किरानी, कैशियर, लेखापाल, टाइपिस्ट, स्टेनो, सहायक आदिक पद वला सरकारी नौकर सभक मोटामोटी यैह हाल भेटैत छैक। औफिस मे काज करनिहारक त आर चांदी कटैत रहैत छैक, ओकरा त ‘आउट इनकम’ माने घूस कमेबाक सेहो खूब अवसर भेटैत छैक। चाहे कोनो विभाग मे ओ कियैक नहि रहय, यदि पब्लिक केँ सेवा प्रदान करैत अछि त निश्चिते पब्लिक ओकरा सँ काज लेबय अओतैक आ बिना घूस-कमीशन या दस्तुरी (बान्हल सुविधा शुल्क, अन्डर टेबुल के माल) लेने बिना काज नहि होइत छैक से सब जनैत अछि। जे जाहि पद पर अछि तेकरा तेहने आमदनी। सरकारक खजाना सँ जे माल भेटलैक से एक, बाहरी लोक सँ जे झिटलक से दोसर…! बिन कार्यालय गेने यानि बिना काज केने जे माल बनेलक सेहो त एहने भ्रष्ट आमदनी भेलैक। सरकारी नौकरी मे मोट तौर पर ई सब तरहक कमाई लोकक दिमाग मे घर कय गेल छैक। प्राइवेट मे त दिन-राति चौबीसो घन्टा किदैन मे डन्टा वाली बात! मालिकक सोझाँ सुट-सुट करबाक दयनीयता, ताहि पर सँ बान्हल तन्ख्वाह! आउट इनकम के सम्भावना त नहिये के बराबर! सरकारी नौकरी मे केन्द्रीय वेतनमान, ग्रेच्युइटी, पीएफ, बोनस, छुट्टी… आ आर कतेको सुविधा। सब कारपोरेट कानून के मुताबिक गारन्टी भेटत।
 
हालांकि आब जखन सरकारी संस्थानक हालत पातर भेलैक आ निजी संस्थान सभक ओकादि सरकारियो सँ नीक… तखन अवस्था तेजी सँ बदलि रहल देखाइछ… लेकिन एखनहुँ पुरान आ रूढिवादी विचारक लोक लेल सरकारी नौकरीक आकर्षण बहुत अलग आ सर्वोपरि छैक। सरकारी नौकरीक संख्ये कतेक? हम किछु तथ्यांक पर ध्यानाकर्षण चाहब – वर्तमान समय बिहार राज्य सरकार केर वैकेन्सी (सरकारी नौकरी) केर संख्या पर नजरि देबैक त लगभग ३० हजार पद लेल बहालीक बात छैक। बिहार केर जनसंख्या नहियो किछु त ८ करोड़ त पक्के हेबाक चाही। मिथिलावासीक जनसंख्या सेहो ५ करोड़ त छहिये। आब बताउ जे ३० हजार पद लेल ३० लाख अभ्यर्थी प्रतिस्पर्धा करतैक, कतेको घूस-पैरवी लगतैक, पद प्राप्ति लेल होड़ मे कियो जीतत, बेसी हारत। (सन्दर्भः https://www.sarkari-naukri.in/jobs-by-state/jobs-in-bihar/)
 
दोसर बात आजुक समय मे प्राइवेट कम्पनी केँ नियुक्ति मे कारपोरेट कानून – श्रम ऐन केँ बेस ध्यान रखबाक कड़ा नियम सब लागू कयल गेलैक अछि। करारनामा मे देल गेल शर्त विपरीत कोनो मालिक अपन मनमर्जी सँ कोनो कर्मचारी पर कार्रबाई नहि कय सकैत अछि। माने जे पहिनुका स्वरूप सँ बहुत पैघ बदलाव आबि गेलैक अछि आब प्राइवेट जौब्स मे। ताहि पर सँ सरकारी निकाय केर फेल्योर के कथा-गाथा आ सरकार द्वारा विभिन्न सरकारी संस्थान सभक निजीकरण – नहि पूरा त आंशिक निजीकरण, पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (ट्रिपल पी) केर नीतिक अवलम्बन, घाटा मे चलि रहल पैघ-पैघ पब्लिक सेक्टर युनिट (पीएसयू) सभक विनिवेशीकरण, एहि सभ सँ सरकारी नौकरीक महत्व आब प्राइवेट जौब्स केर समीप आबि गेल छैक। मुदा मिथिलाक ओहेन लोक जेकरा जेबी मे बेटीक विवाह लेल किछु पाइ जमा छैक, जेकरा पास अफरात दौलत या सम्पत्ति छैक, जे स्वयं एहि मानसिकता केँ पोसने अछि जे हम अपन बेटी लेल सरकारी नौकरी आ स्थायित्व सहितक जमाय करब, तेकरा लेल आजुक बदलाव आ परिवर्तित युग धैन सन!
 
किछु तथ्यांक पर नजरि दियौक –
 
कोरा डट कम पर पूछल गेल एक प्रश्न (२०१८ ई. केर) सन्दर्भ लेल राखब – प्रश्न पूछल गेल छैक भारत मे सरकारी नौकरी कतेक छैक, प्राइवेट नौकरी कतेक छैक – एकर जवाब मे रिजर्व बैंक अफ इंडिया केर पूर्व प्रबन्धक (२००१ सँ २००८) श्री पीएम गोविन्दन नामपुतिरी दैत कहलखिन अछि कि सरकारक नौकरी ३.७५% आ सुसंगठित निजी क्षेत्र मे ३.५०%, एकर अतिरिक्त ४२% कृषि क्षेत्र मे, आर बाकी ५०% जेहेन विशाल जनसंख्या असंगठित निजी क्षेत्र, स्वरोजगार, देहाड़ी मजदूर, रिक्शा, ठेला, कुली, कबाड़ी, फेरीवला, ड्राइवर आदि अछि भारत मे – ई २०१८ ई. केर स्थिति थिकैक। (सन्दर्भ लेलः https://www.quora.com/What-is-the-percentage-of-government-jobs-and-private-jobs-in-India-in-2018)
 
आब हम सब २०२१ मे छी। कतेक बदललैक स्थिति से केकरो सँ छुपल नहि अछि। ‘मेक इन इंडिया’ कहिकय सरकार पूँजी निवेश लेल वैदेशिक लगानी आमंत्रित करैत छैक। स्टार्ट अप कहिकय सरकार छोट-छोट पूँजी निवेश मे देशक युवा सब केँ प्रोत्साहित करैत छैक। एकर अलावे उद्यमिता विकास केर योजना दय, सहकारिता विकास केर योजना सब दय-दय छोट-छोट स्तर पर ऋण आदिक सहयोग सँ पशुपालन, कुटीर उद्योग, हस्तकला, चित्रकला (आर्ट-क्राफ्ट) आदि केँ बढावा दैत छैक। स्त्री सशक्तिकरणक कतेको नीति आ नियम आनिकय स्वरोजगारक प्रवृत्ति केँ बढावा दैत छैक। करोड़ों लोक केँ एहि सब मे सहभागिता दैत राष्ट्र सकल उत्पाद (जीडीपी) केँ बढा रहलैक अछि। भारत जेहेन विकासशील देश मे जीडीपी निरन्तर ऊँचाई दिश जा रहलैक अछि से सबटा निजी क्षेत्र केँ प्रोत्साहित कय केँ, सरकार आब रेलवे स्टेशन केर व्यवस्थापन आ कि एयरपोर्ट केर व्यवस्थापन लेल सेहो प्राइवेट सेक्टर केँ लीज (पट्टा) पर बड़का-बड़का मुम्बई, लखनऊ आदिक एयरपोर्ट्स पर्यन्त दय देलकैक। बेर-बेर हल्ला सुनिते छी जे रेलवे परिचालन सेहो प्राइवेटाइज कय देल जेतैक। बुलेट ट्रेन अओतैक ता धरि निश्चित किछु तेहने पैघ परिवर्तन भऽ जाय त कोनो अतिश्योक्ति नहि होयत।
 
तथापि – जाहि अभिभावक केँ सुतले-सुतले सरकारी पैसा कमाइ होयबाक भान माथ मे घर कय गेल हो ओकरा के रोकि सकैत अछि?
 
आब बड लम्बा भेल – हम समेटय चाहब लेख केँ! हम ई कहब जे सरकारी नौकरी मे जे सब लाभ छैक से प्राइवेट मे काज करनिहार लोक चुटकी बजाकय कय सकैत अछि। पेन्सन स्कीम लेल भारतीय जीवन बीमा निगम, स्टेट बैंक अफ इंडिया, भारतीय डाक विभाग व अनेकों बैंक तथा इन्स्योरेन्स आइ लोकक छोट-छोट पूँजी जमा करबैत नीक रिटर्न केर गारन्टी करिते छैक। ई बात अलग छैक जे बैंक मे जतेक पाइ लोक जमा कय ३%-४% केर सेविंग इन्टरेस्ट कमायत, किंवा फिक्स्ड डिपोजिट पर ५-६% केर उच्च ब्याज रिटर्न्स कमायत, बरु ताहि रकम सँ फोरेस्ट्रेशन करय, कृषि मे निवेश करय, त हमरा बुझने १००% बेसी कमायत, किंवा रियल इस्टेट मे या शेयर मार्केट मे जोखिम तहत केर लगानी करत त आरो उन-सँ-दून कमाई करत। लेकिन से एतेक नजरि खोलबाक फुर्सत केकरा छैक? बस सरकारी दूल्हा आनिकय अपन बेटी नहियो काज करत त जमाय बाबूक तन्ख्वाह आ आउट इनकम सब सँ परिवारक भविष्य उज्ज्वल रहत ई रूढिवादी विचारधारा हमरा सभक मिथिला मे आइयो किछेक सम्पन्न आ टकावला लोक मे भेटिये जायत। लेकिन हमर अध्ययन कहैत अछि जे आब एहेन मेन्टलिटी के लोक बामोस्किल १-२% मात्र छथि, तेँ सरकारी-सरकारी के तरकारी बनेबाक बहुत बेसी जरूरत नहि छैक। अनेरो के मुद्दा मे माथा उलझेनाय भेलैक ई।
 
आखिरी मे – ई तुलना जरूर देखूः एक कंटेन्ट हेड अंकित शुक्ला बड़ा रोचक ढंग सँ लिखलनि अछि –
 
#सरकारी_नौकरी सरकार द्वारा नियंत्रित कयल जाइछ जखन कि प्राइवेट नौकरी केँ कंपनीक फाउंडर खुद नियंत्रित करैत छथि।
 
# सरकारी नौकरी परमानेंट और प्राइवेट नौकरी टेम्पोरेरी होइछ।
 
# सरकारी नौकरीक अपेक्षा प्राइवेट नौकरी मे काज अधिक होइत छैक।
 
# सरकारी नौकरी मे अहाँक ग्रोथ सरकार पर निर्भर करैत अछि जखन कि प्राइवेट नौकरी मे ई ग्रोथ अहाँक स्किल पर निर्भर करैत अछि।
 
# सरकारी नौकरी मे एक निश्चित आयुक बाद अहाँ काज नहि कय सकैत छी जखन कि प्राइवेट नौकरी मे अहाँ जाबत धरि चाहब काज कय सकैत छी।
 
# सरकारी नौकरी केर अपेक्षा प्राइवेट नौकरी मे ग्रोथ तेज़ी सँ होइत छैक।
 
# सरकारी एम्प्लॉय केर भुगतान सरकार द्वारा कयल जाइत छैक जखन कि प्राइवेट नौकरी मे भुगतान कंपनी द्वारा कयल जाइत छैक।
 
आशा करैत छी जे ई लेख पढिकय बहुतो लोकक माथा मे रहल अनावश्यक आकर्षण आ भ्रम केर स्थिति सँ मुक्ति भेटत। प्राइवेट जौब केर आर बहुत रास लाभ आ सुविधा संग आजुक समय मे स्वयं के सेटल करबाक नियम पर फेर कहियो विस्तार सँ जानकारी करबयवला लेख सेहो लिखब, जखन कि सरकारी नौकरीक संख्या आ प्राप्तिक कठिनाई पर ओहू दिन तुलनात्मक समीक्षा अपने सब लेल राखब। ईहो एकटा कारण छैक जे आजुक समय मे बेसी लोक सरकारी केर फेरा मे नहि पड़ि सीधा अपन करियर प्राइवेट लाइन मे बेसी नीक सँ जमबैत अछि। ॐ तत्सत्!
 
हरिः हरः!!