अनुत्तरित प्रश्न (सामाजिक सरोकार आ चिन्तन)
मैथिलीसेवी बागीश्वर झा प्रति श्रद्धाञ्जलि सुमन अर्पित – मैथिलीक एक समर्पित सृजनकर्मी स्व. बागेश्वर झाक ई दर्द
भले आब ओ अपने एहि संसार मे नहि छथि, मुदा हुनकर छोड़ल किछु प्रश्न ‘हाय मैथिली’ केर शीर्षक मे आइयो उत्तर केर अपेक्षा रखैत अछि।
के देत एकर जवाब? केकरा बुझल जाइत अछि असल जवाबदेह आ कि जिम्मेदार मैथिली लेल जवाब देबाक वास्ते?
पंडित गोविन्द झा जीबिते छथि। हुनकहु चिन्ता कतेको बेर कतेको विद्वानक मुंहें सुनि चुकल छी। लगभग १०० वर्षक समीप एक महापुरुष आ महान स्रष्टा गोविन्द बाबूक दावी त एतेक तक सुनलहुँ जे मैथिलीक मृत्यु होयबाक भविष्यवाणी कएने रहथि, लेकिन पिछला २०१९ मे पटना गेल रही ‘अन्तर्राष्ट्रीय मैथिल संस्था सम्मेलन’ मे भाग लेबय आ भेंट करय गेल रही महापुरुष संग हुनक आवास पर त फेर आशा सेहो देखेलाह जे नव पीढीक स्फुरणा सँ मैथिली एखन धरि जँ बाँचल अछि त आगुओ बाँचल रहत।
महान गायक रविन्द्र-महेन्द्रक जोड़ी मध्य स्वयं रविन्द्रनाथ ठाकुर वृद्ध रहितो सौभाग्यवश हमरा सभक बीच मौजूद छथि। मैथिली अकादमी आ वर्तमान अध्यक्ष दिनेशचन्द्र झा सर सँ लैत आरो कतेको पूर्व अध्यक्ष आ सरोकारवाला सब छथि आ बागीश्वर बाबूक अनुत्तरित प्रश्नक उत्तर ताकल जा सकैत छैक। आदरणीय मंत्रेश्वर बाबू आ मैथिलीक इनसाइक्लोपीडिया कहेनिहार हमरा सभक पूज्य आ आदरणीय मार्गदर्शक रमानन्द झा रमण सर सेहो हमरा सभक बीच मे छथि आ निरन्तर नव पीढी केँ मैथिलीक एक सँ एक व्यक्तित्व सभ केँ ओ मोन पाड़िते रहैत छथि, जीवित केँ ‘युग युग जिबथि’ शीर्षक मे, आ जे स्वर्गवासी भऽ गेलाह तिनका ‘मोन पड़ैत छथि’ शीर्षक मे।
आउ तकैत छी बागीश्वर बाबूक छोड़ल एहि अनुत्तरित प्रश्नक उत्तर!
हरिः हरः!!
बागीश्वर झा लिखित अन्तिम लेख – हुनक फेसबुक वाल सँ
हाय मैथिली
हम 1973 ई. मे जखन जमशेदपुर मे छलहुँ, एक गोट खण्डकाव्य लिखलहुँ। नाम छलैक ‘योग मे भोग’। एकर प्रथम पाठक छलाह प्रिय मंत्रेश्वर जी। हुनका नाम पसीन नहि पड़लनि। तखन हम ओकर नाम राखल संस्थिता। 1977 ई. मे रवींद्र-महेन्द्रक जोड़ी अपन कार्यक्रमक लेल ओतय आयल छलाह। आपस जयतथि बस सँ आ हमर साकची स्थित डेरा बसस्टैंडक लगे मे छल। बस भोर मे छलैक। अस्तु भरि राति कविता आ गीत चलैत रहल। हमहूँ संस्थिताक किछु पाठ कयल। रवींद्र जी जे ताहि दिन मैथिली अकादमीक सर्वेसर्वा छलाह। पाण्डुलिपि प्रकाशनक लेल लs गेलाह। एम्हर हमर बदली कश्मीर भs गेल छल। तीन सालक बाद जखन पटना घुरलहुँ तs पाण्डुलिपिक खोज-पुछारिक हेतु अकादमी गेलहुँ। पता लागल जे ठंडा बस्ता मे पड़ले अछि। खुफियागिरीक पृष्ठभूमि रहला कारणे जड़ि उखेनबा मे कोनो असौकर्य नहि भेल। पता लागल जे पछिला तीनू चयन समितिक मीटींग मे (एक मे प्रो.आनन्द मिश्र सेहो छलाहष) संस्थिता पास भs गेल आ छपलैक कोनो आन पोथी। ककरहु यदि संदेह हो तs ओ श्रद्धेय पं. गोविंद झा जी सँ पूछि सकैत छथि जे तखन मै. अकादमी मे छलाह।
हम पोथी आपस लs लेल। 2010 मे दिल्ली सँ ओकरा पुलोमा नाम सँ प्रकाशित कराओल जकर प्रति डां इंद्रकांत झा, डा. बासुकी नाथ झा आ किछु आन व्यक्तिक पास पटना मे अछि। जौं क्यो हमरा सन लेखक/ कवि केँ चालीस साल तक प्रतीक्षा करयलाक बादो सफलता नहि भेटैक तs आगि लागओ ओहि अकादमी मे।
हम एक बेर फेर अनघोल कs कs कहैत छी जे तफसीस हो जे ओहि तीन साल मे कोन-कोन पोथी विचाराधीन छल आ कोन विशेषताक लेल कोनो पोथी चुनल गेलैक आ आन छोड़ि देल गलैक। हम तs कहियो कोनो पोस्ट पर नहिए जायब, मुदा मित्र वर्ग केँ कहि कs राखबैक जे ई इंक्वाइरी अवश्य कराबथि। हम ओहि उजरा चेहरा सबहक असली रंग देखय चहैत छी जे देखावटी मे तs मैथिली प्रेमी, मुदा भीतर सँ डकैत अछि। अस्सीक लगधग पहुँचि रहल छी। कोनो महत्वाकांक्षा नहि। तद्यपि एहि न्यायक लेल मोन कचोटैत रहैत अछि। आबहु सब मिल के रोबहु भाई, मैथिली दुर्दशा न देखी जाई।